कब्जे या आधिपत्य की बहाली के लिए शीर्षक का दावा करने वाला व्यक्ति कर सकता है केस दायर, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पढ़ें

LiveLaw News Network

9 Aug 2019 4:42 AM GMT

  • कब्जे या आधिपत्य की बहाली के लिए शीर्षक का दावा करने वाला व्यक्ति कर सकता है केस दायर, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पढ़ें

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कोई भी व्यक्ति जिसके पास प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर पूर्णकालिक शीर्षक है,वह निर्वासन या बेदखली की स्थिति में कब्जे या आधिपत्य की बहाली के लिए सूट या केस दायर कर सकता है।

    जस्टिस अरूण मिश्रा ,जस्टिस एस.अब्दुल नजीर और जस्टिस एम.आर शाह की पीठ ने कहा कि प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर शीर्षक के अधिग्रहण की दलील वादी द्वारा सीमा अधिनियम के अनुच्छेद 65 के तहत ली जा सकती है और एक वादी पर किसी भी अधिकार के उल्लंघन के मामले में परिसीमा अधिनियम 1963 के तहत वाद चलाने के लिए कोई प्रतिबंध नहीं है।

    कोर्ट ने इस मुद्दे पर विचार किया था कि क्या प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर शीर्षक का दावा करने वाला व्यक्ति शीर्षक की घोषणा और अपने कब्जे की सुरक्षा के लिए एक स्थाई निषेधाज्ञाा के लिए परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 65 के तहत केस या सूट दायर कर सकता है ताकि वह प्रतिवादी को उसके कब्जे में हस्तक्षेप से रोक सके या अवैध बेदखली के मामले में कब्जे की बहाली पा सके या जब उसका शीर्षक किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बेदखली के कारण समाप्त हो?

    प्रतिकूल कब्जे के तर्क को तलवार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है वादी और ढाल के रूप में प्रतिवादी

    गुरूद्वारा साहब बनाम ग्राम पंचायत ग्राम सिरथला मामले में दिए गए फैसले सहित दो जजों की बेंच के उस फैसले को पीठ ने खारिज कर दिया,जिसमें कहा गया था कि वादी द्वारा प्रतिकूल कब्जे के आधार पर शीर्षक के लिए कोई घोषणा की मांग नहीं की जा सकती है क्योंकि प्रतिकूल कब्जे को प्रतिवादी द्वारा ढाल के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है,न कि वादी द्वारा एक तलवार के तौर पर। इस फैसले को खारिज करने के बाद पीठ ने रविंदर कौर ग्रेवाल बनाम मंजीत कौर के मामले में यह निर्णय दिया-

    '' हम मानते हैं कि एक व्यक्ति,जिसके पास कब्जा है,उसको अन्य व्यक्ति द्वारा हटाया नहीं जा सकता है,बशर्ते ऐसा उचित कानूनी प्रक्रिया से या एक बार प्रतिकूल कब्जे की 12 साल की अवधि समाप्त हो गई हो,तभी किया जा सकता है, यहां तक कि उसे निकालने या बेदखल करने का अधिकार मालिक को भी नहीं रहता है और कब्जा रखने वाले मालिक को वहीं अधिकार, शीर्षक और हित प्राप्त हो जाता है,जो निवर्तमान मालिक या व्यक्ति,जैसा भी मामला हो,के पास थे,जिसके खिलाफ वह नियत या निर्धारित था।

    हमारी राय में, परिणाम यह है कि एक बार जब अधिकार, शीर्षक या हित प्राप्त हो जाते है तो इसे अधिनियम के अनुच्छेद 65 के तहत वादी द्वारा तलवार और प्रतिवादी द्वारा ढाल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है और कोई भी व्यक्ति जिसके पास प्रतिकूल कब्जे के आधार पर पूर्णकाल शीर्षक है,वह बेदखली किए जाने की स्थिति में कब्जा वापिस पाने के लिए केस या सूट दायर कर सकता है।

    किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कानून हाथ में लेने के कारण बेदखली किए जाने के मामले में,अनुच्छेद 64 के तहत कब्जे के लिए दायर सूट या केस सुनवाई योग्य है,भले ही शीर्षक उसे प्रतिकूल कब्जे के तहत की क्यों न मिला हो।

    इसी प्रकार, अन्य अनुच्छेदों के तहत भी, अपने अधिकारों में से किसी के उल्लंघन के मामले में, एक वादी, जिसके पास प्रतिकूल कब्जे के आधार पर पूर्णकाल शीर्षक है,वह मुकदमा दायर कर सकता है या उसका सूट या केस बनाए रख सकता है। जब हम उस मामले में प्रतिकूल कब्जे के कानून विचार करते है ,जिसमें यह सार्वजनिक उपयोग की संपत्ति पर हुआ हो तो अदालतों को प्रतिकूल कब्जे का अधिकार प्रदान करने में अप्रसन्नता होती है।''



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