क्या हैं महिलाओं के लिए वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर? कैसे कर रहे हैं काम

LiveLaw News Network

5 Nov 2019 2:34 AM GMT

  • क्या हैं महिलाओं के लिए वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर? कैसे कर रहे हैं काम

    - पलक जावा

    एक महिला द्वारा किसी भी तरह की हिंसा झेलने पर उसे तुरंत कई तरह की सहायता की जरूरत पड़ सकती है, जैसे मेडिकल सपोर्ट, कानूनी सहायता, कई बार अस्थायी रूप से रहने के लिए स्थान, मानसिक और भावनात्मक सहयोग आदि।

    ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि एक महिला को ये सभी सहयोग एक स्थान पर मिल जाएं और उसे अलग-अलग संस्थाओ के पास भटकना न पड़े। यही परिकल्पना है वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर की, जो महिला को वे सभी सहयोग और मदद देते हैं, जो मुश्किल पलों में उसे चाहिए होते हमहिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की वन स्टॉप सेंटर स्कीम के तहत महिलाओं के लिए ऐसे सेंटर बनाने की योजना है।

    क्या हैं वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर

    वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर का मतलब है एक ऐसी व्यवस्था जहां हिंसा से पीड़ित कोई भी महिला सभी तरह का सपोर्ट एक ही छत के नीचे, एक साथ पा सके। अस्पतालों में इन सेंटर्स को चलाया जाता है, जहां मेडिकल ऐड, लीगल ऐड, अस्थायी रूप से रहने के लिए स्थान, केस रजिस्टर करने के लिए सहयोग, काउंसिलिंग सभी एक स्थान पर उपलब्ध होती है। अगर हॉस्पिटल में ही सेंटर नहीं खोला जा सकता है तो अस्पताल के 2 किलोमीटर के एरिया में सेंटर खोला जा सकता है या किसी सुधार गृह में इसे चलाया जा सकता है।

    जस्टिस उषा मेहरा कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट में भी ऐसे सेंटर स्थापित करने की ज़रूरत पर जोर दिया था।

    कौन जा सकता है सेंटर?

    यहां किसी भी प्रकार की हिंसा झेल रही महिला, बलात्कार, लैंगिक हिंसा, घरेलू हिंसा, ट्रैफिकिंग, एसिड अटैक विक्टिम, विच हंटिंग, दहेज़ सम्बंधित हिंसा, सती, बाल यौन शोषण, बाल विवाह, भ्रूण हत्या आदि के मामलों से पीड़ित कोई भी महिला जा सकती है।

    सेंटर कैसे मदद करता है ?

    महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की वन स्टॉप सेंटर स्कीम के तहत संचालित ऐसे सेंटर हेल्पलाइन नंबर (जैसे-181, 1090) के साथ काम करता है और मंत्रालय ने यहां निम्नलिखित सहायता उपलब्ध करवाने की योजना बनाई है और इसके अनुसार-

    FIR/NCR/DIR आदि में सहयोग :

    सेंटर महिला को FIR आदि दायर करने, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161(3), 164(1), 275(1), 231(1) के तहत बयान रिकॉर्ड करने में मदद करें, ऐसा प्रावधान है। इसके लिए वीडियो कांफ्रेंस की सुविधा भी सेंटर में हो।

    मनोवैज्ञानिक/ मानसिक सहयोग

    सेंटर में एक काउंसलर ऑन- कॉल उपलब्ध होगी। शारीरिक हिंसा के अतिरिक्त मानसिक तौर पर भी महिलाएएं समस्याएं महसूस करती हैं। अत: सेंटर में मानसिक सहयोग के लिए काउंसलर उपलब्ध करवाने की योजना है।

    शेल्टर- वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर में हिंसा से पीड़ित महिला अपने बच्चों के साथ अस्थायी रूप से रह सकती है| सेंटर एक-मंज़िला इमारत है, जिसमें अस्थायी रूप से रहने हेतू मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जाने का प्रावधान है। लम्बे वक़्त के लिए यदि आश्रय की जरुरत हो तो फिर उन्हें स्वाधार गृहों आदि में उनके लिए व्यवस्था की जा सकती है।

    कानूनी सहायता - नियमों के अनुसार डिस्ट्रिक्ट लीगल अथॉरिटी के वकील या अन्य वकील सेंटर के पैनल में होते हैं, जो महिला को विधिक सहायता प्रदान करते है।

    मेडिकल सपोर्ट

    2013 के क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट के तहत हर सरकारी, प्राइवेट हॉस्पिटल का कर्तव्य है कि वह यौन शोषण या एसिड अटैक विक्टिम को नि: शुल्क ट्रीटमेंट उपलब्ध करवाएं। अत: सेंटर पर एम्बुलेंस, पैरा मेडिक और हॉस्पिटल रेफेर करने का प्रावधान है। हॉस्पिटल को इस सम्बन्ध में 2014 के दिशा निर्देशों की पालना करनी अनिवार्य है।

    महिला की MLC (Medico legal care) की कॉपी उसे अनिवार्यत: उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। विवरण के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं। https://mohfw.gov.in/sites/default/files/953522324.pdf)

    समस्याएं

    निर्भया फंड का इस्तेमाल करते हुए देश भर में 3 फेज़ में ये सेंटर स्थापित करने की योजना है, लेकिन वास्तविकता इन सब से दूर है। शोधों में यह बात सामने आ रही है कि ये सेंटर उचित रूप से कार्य नहीं कर रहे हैं। लोगों में ऐसी व्यवस्था की जानकारी का अभाव, सेंटर पर उचित इंफ्रास्ट्रक्टचर का अभाव, संवेदनशील और ट्रेनिंग प्राप्त स्टाफ का अभाव आदि कई समस्याएं इस पूरी व्यवस्था के उद्देश्य को ही असफल बना रही हैं। निर्भया फंड के उचित इस्तेमाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देश दिए हैं।

    यह स्कीम बेहद असंतोषजनक रूप से कार्यरत है। कई सेंटर अभी स्थापित नहीं किये गए है या अभी चालू नहीं हैंं। देश के विभिन्न राज्यों में चल रहे सेंटर की लिस्ट यहांं प्राप्त कर सकते हैं।

    http://nari.nic.in/sites/default/files/170-Operational OSCs-10.1.2018.pdf

    (पलक राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय दिल्ली की भूतपूर्व छात्रा हैं। लेख में सुरभि करवा ने सहयोग किया है।)

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