NI अधिनियम की धारा 143A (अंतरिम मुआवज़ा) को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े ]

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17 April 2019 5:45 AM GMT

  • NI अधिनियम की धारा 143A (अंतरिम मुआवज़ा) को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े ]

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट ऐक्ट (एनआईए) की धारा 143A को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं है जबकि 148 के प्रावधान उन लंबित अपीलों पर लागू होंगे जिस दिन इसके प्रावधान को लागू करने की अधिसूचना जारी की गई।

    न्यायमूर्ति राजबीर सहरावत ने कहा कि अधिनियम कि धारा 143A ने आरोपी के ख़िलाफ़ एक नया दायित्व तय किया है जिसका प्रावधान वर्तमान क़ानून में नहीं था। लेकिन धारा 148 को यथावत रहने दिया गया है; और कुछ हद तक इसे आरोपी के हित में संशोधित किया गया है।

    वर्ष 2018 में इस अधिनियम दो नए प्रावधान जोड़े गए। इसमें पहला है धारा 143A जिसके द्वारा निचली अदालत को आरोपी को अंतरिम मुआवज़ा देने का आदेश जारी करने का अधिकार दिया गया है पर यह राशि 'चेक की राशि' से 20% से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। एक अन्य धारा 148 जोड़ा गया जो अपीली अदालत को आरोपी/अपीलकर्ता को यह आदेश देने का अधिकार देता है कि वह निचली अदालत ने जो 'जुर्माना' या 'मुआवजा' चुकाने को कहा है उस की 20% राशि वह जमा करे।

    वर्तमान मामले में कोर्ट के समक्ष जो अपील लंबित है वे निचली और अपीली अदालतों के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील है। अधिनियम की नई धारा 143A के प्रावधानों को आधार बनाकर फ़ैसले दिए गए जिसे अब चुनौती दी गई है।

    कोर्ट ने कहा, "चूँकि अधिनियम का जो संशोधन हुआ है उसमें इस नए प्रावधानों को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं है विशेषकर लंबित मामलों में। इसलिए लंबित मामलों के बारे में जो कि इन प्रावधानों के लागू होने के पहले से मौजूद हैं, के बारे में इन नए प्रावधानों के आधार पर फ़ैसला नहीं दिया जा सकता।

    कोर्ट ने कहा,

    "…अंतरिम मुआवज़ा जो कि किसी मामले में करोड़ों रुपए भी हो सकता है और ऐसे व्यक्ति के लिए जो कुछ लाख रुपए भी मुश्किल से जुगाड़ सकता है, इस धारा का परिणाम तबाही पैदा करने वाला हो सकता है…इसलिए इस प्रावधान को ज़्यादा से ज़्यादा आगे होने वाले इस तरह के मामलों में लागू किया जा सकता है क्योंकि वर्तमान मामले में आरोपी इस बात से अवगत होगा कि वह जो कर रहा है उसका परिणाम क्या हो सकता है …पर ये प्रावधान उन मामलों में लागू नहीं हो सकते जहाँ अदालती कार्रवाई उस समय शुरू हुई जब ये संशोधित प्रावधानों का अस्तित्व भी नहीं था।

    अदालत ने धारा 148 के बारे में कहा कि किसी दोषी व्यक्ति से जुर्माने या मुआवजे की राशि वसूलने का प्रावधान सीआरपीसी में धारा 148 के अस्तित्व में आने से पहले से ही मौजूद है। ये प्रावधान दोषी/अपीलकर्ता को ज़्यादा राहत देने वाला है।


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