एनडीपीएस एक्ट : कोर्ट को संतुष्ट होना चाहिए कि कबूलनामा स्वैच्छिक है और अभियुक्त को उसके अधिकारों से अवगत कराया गया है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

17 Sep 2019 10:27 AM GMT

  • एनडीपीएस एक्ट : कोर्ट को संतुष्ट होना चाहिए कि कबूलनामा स्वैच्छिक है और अभियुक्त को उसके अधिकारों से अवगत कराया गया है,  सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    "यहां तक कि अगर यह स्वीकार्य भी है, तो भी अदालत को संतुष्ट होना होगा कि यह एक स्वैच्छिक बयान है, जो किसी भी दबाव से मुक्त है और यह भी कि अभियुक्त को स्वीकारोक्ति/संस्वीकृति दर्ज कराने से पहले अपने अधिकारों से अवगत कराया गया था।"

    सुप्रीम कोर्ट ने देखा है कि, भले ही जांच अधिकारियों को दिए गए बयानों को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत स्वीकार किया जाएगा, परंतु अदालत को संतुष्ट होना होगा कि यह एक स्वैच्छिक बयान है, जो किसी भी दबाव से मुक्त है और यह भी कि अभियुक्त को स्वीकारोक्ति दर्ज कराने से पहले अपने अधिकारों से अवगत कराया गया था।

    मोहम्मद फासरीन बनाम राज्य में, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत अभियुक्त की सजा, मुख्य रूप से उस स्वीकारोक्ति/संस्वीकृति बयान पर आधारित थी जो उसने व उसके सह-अभियुक्त ने जांच अधिकारी को दिया था।

    न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने गौर किया कि यह मुद्दा कि क्या एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत दर्ज एक बयान को एक स्वीकारोक्ति बयान के रूप में माना जा सकता है, भले ही जिस अधिकारी ने ऐसा बयान दर्ज किया हो उसे पुलिस अधिकारी के रूप में नहीं माना जा सकता है, 'तोफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य' के मामले में एक बड़ी पीठ के पास भेजा दिया गया था।

    पीठ ने कहा कि-

    "इस मामले के निर्णय के लिए, हम इस आधार पर आगे बढ़ते हैं कि स्वीकारोक्ति स्वीकार्य है। यहां तक कि अगर यह स्वीकार्य है, तो भी अदालत को संतुष्ट होना होगा कि यह एक स्वैच्छिक बयान है, जो किसी भी दबाव से मुक्त है और यह भी कि अभियुक्त की स्वीकारोक्ति दर्ज कराने से पहले उसे उसके अधिकारों से अवगत कराया गया था। परंतु इस मामले में रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री नहीं लाई गई है। यह भी अच्छी तरह से तय है कि एक स्वीकारोक्ति, विशेष रूप से एक कबूलनामा यदि उस समय दर्ज किया गया हो जब अभियुक्त हिरासत में है, तो वह सबूतों की एक कमजोर कड़ी है और ऐसे मामले में कुछ पुष्ट प्रमाण होने चाहिए।

    इस मामले में,पीठ ने कहा कि, इस तरह की कोई भी सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं लाई गई है, जिसके आधार पर अदालत अपनी संतुष्टि दर्ज कर सके कि कबूलनामा स्वैच्छिक था। पीठ ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि 2 स्वीकारोक्ति बयानों के अलावा - जो सह-अभियुक्त और अभियुक्त ने दिए थे, अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता को अपराध से जोड़ने के लिए कोई सबूत नहीं जुटाए हैं।"

    तुफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य में क्या हुआ

    वर्ष 2013 में न्यायमूर्ति ए. के. पटनायक और न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी की 2 न्यायाधीश पीठ ने इन मुद्दों को बड़ी पीठ के पास भेज दिया था।

    * क्या एनडीपीएस अधिनियम के तहत मामले की जांच करने वाला अधिकारी, पुलिस अधिकारी के रूप में योग्य होगा या नहीं?

    * जांच अधिकारी द्वारा अधिनियम की धारा 67 के तहत दर्ज बयान को इकबालिया बयान (confessional statement) माना जा सकता है या नहीं, भले ही उस अधिकारी को पुलिस अधिकारी न माना जाए?

    पिछले साल, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने रजिस्ट्री को कहा था कि वह भारत के मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में यह बात लाए कि तूफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य में संदर्भ अभी भी लंबित है। इसके बाद, इस मामले की सुनवाई 17 जनवरी 2019 को CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 न्यायाधीशों की पीठ ने की थी। इस तारीख के बाद इसे सूचीबद्ध होते नहीं देखा गया है।



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