अभियुक्त जानबूझकर गिरफ़्तारी से बच रहा है, बिना इस शंका के लुक आउट नोटिस जारी नहीं किया जा सकता, बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

6 Sep 2019 10:59 AM GMT

  • अभियुक्त जानबूझकर गिरफ़्तारी से बच रहा है,  बिना इस शंका के लुक आउट  नोटिस जारी नहीं किया जा सकता, बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

    बाॅम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अफजल जफर खान को राहत देते हुए उसके खिलाफ सीबीआई के ACB कार्यालय की तरफ से जारी लुक आउट नोटिस को सस्पेंड कर दिया है। इसी के साथ खान को तीर्थयात्रा के लिए सऊदी अरब और यूएई जाने की अनुमति दे दी गयी है।

    जस्टिस रंजीत मोरे और जस्टिस एन. जे. जमादार की 2 सदस्यीय पीठ इस मामले में खान की तरफ से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें खान ने उसके खिलाफ 22 जून 2018 को जारी किए गए लुकआउट नोटिस का विवरण मांगा था और उसे रद्द करने की भी मांग की थी।

    दलीलें

    सीबीआई के वकील हितेन वेनेगांवकर ने पीठ को यह सूचित किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लुकआउट नोटिस इसलिए जारी किया गया है क्योंकि उनको आशंका है कि वह फरार हो जाएगा और उसके खिलाफ चल रहे केस में पेश होने के लिए वह भारत वापस नहीं आएगा। याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी और 420 और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 की धारा 13(2), जिसे 13(1) के साथ पढ़ा जाए, के तहत केस दर्ज है।

    इस केस में 20 लोगों को आरोपी बनाया गया है और याचिकाकर्ता का नाम 18वें नंबर पर है। सीबीआई के वकील ने पीठ को बताया कि इस स्टेज पर किसी तरह के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी लंबित है।

    याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील सुजय कांतावाला ने यह दलील दी कि 3 अप्रैल 2012 को सीबीआई ने उसके मुविक्कल के घर पर छापेमारी की थी और 20 जून 2018 को सीबीआई ने उसके मुविक्कल से पासपोर्ट की काॅपी व उसका फोटोग्राफ मांगा था। याचिकाकर्ता ने अपने पासपोर्ट की काॅपी व अपनी फोटो ई-मेल के जरिए भेज दी थी। 15 अगस्त 2018 को याचिकाकर्ता को हिरासत में ले लिया गया और इमीग्रेशन अधिकारियों ने उसे भारत से बाहर जाने से रोक दिया। उसे बताया गया कि ऐसा सीबीआई की तरफ से जारी लुक आउट नोटिस के चलते किया गया है। जिसके बाद 24 दिसम्बर 2018 को याचिकाकर्ता ने सीबीआई से यह प्रार्थना की थी कि उसे लुक आउट नोटिस का विवरण उपलब्ध करा दिया जाए या उसकी काॅपी दे दी जाए, परंतु ऐसा नहीं किया गया।

    कांतावाला ने दलील दी कि इस मामले में 7 साल पहले प्राथमिकी दर्ज की गई थी और इस प्राथमिकी के दर्ज होने के बाद उसका मुविक्कल 17 बार विदेश की यात्रा पर जा चुका है। उसने अपनी सभी यात्राओं की जानकारी भी उपलब्ध कराई है। इतना ही नहीं इस मामले की जांच के लिए वह 8 बार सीबीआई के समक्ष पेश हो चुका है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहा है।

    कांतावाला ने सुमेर सिंह सालकन बनाम असिस्टेंट डायरेक्टर एवं अन्य के मामले में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का भी हवाला दिया। दलील दी कि प्रतिवादी बिना किसी सबूत के लुक आउट नोटिस जारी नहीं कर सकता है। इसके लिए सीबीआई को यह साबित करना होगा कि याचिकाकर्ता जानबूझकर गिरफ़्तारी से या मामले की सुनवाई में पेश होने से बच रहा है।

    फैसला

    दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि-

    ''दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला, सुप्रीम कोर्ट द्वारा मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया मामले में दिए गए फैसले पर आधारित है। हाईकोर्ट द्वारा सुमेर सालकान मामले में दिए गए फैसले का अनुकरण, मद्रास हाईकोर्ट ने चेरूवथुर चक्कुट्टी थम्पी @ सीसी थम्पी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया एवं अन्य के मामले में किया। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सुमेर सालकान मामले में दिए गए फैसले में यह एकदम साफ कर दिया गया था कि जांच एजेंसी आईपीसी या अन्य कानून के तहत संज्ञेय अपराध के मामले में लुकआउट नोटिस तभी जारी कर सकती है, जब आरोपी गैर जमानती वारंट जारी होने व अन्य अनिवार्य उपाय अपनाए जाने के बाद भी जानबूझकर गिरफ़्तारी से बच रहा हो या मामले की सुनवाई के लिए पेश न हो रहा हो और इस बात की संभावना हो कि आरोपी जांच या सुनवाई से बचने के लिए देश छोड़कर भाग सकता है।

    इस मामले की परिस्थितियों को देखने के बाद हमारा यह मानना है कि किसी अपराध में प्राथमिकी दर्ज होने के 6 साल बाद लुक आउट नोटिस जारी नहीं किया जा सकता है। विशेषतौर पर जब प्रतिवादी के पास अपनी आशंका को सही साबित करने के लिए जब कोई प्रमाण या सबूत मौजूद ना हो। इसलिए लुकआउट नोटिस दीर्घकालीन या टिकने लायक नहीं है और उसे रद्द कर दिया जाना चाहिए।''

    हालांकि कोर्ट ने अभी 11 अक्टूबर 2019 तक इस लुक आउट नोटिस को रद्द न करने की बात कही है। इसके बजाय इस नोटिस को 10 दिन के लिए, यानी 2 सितम्बर से 11 सितम्बर के बीच की अवधि के लिए सस्पेंड कर दिया है ताकि याचिकाकर्ता अपनी यात्रा पर जा सके। उसके बाद याचिकाकर्ता द्वारा जांच में सहयोग करने के लिए कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह निर्देश दिया है कि वह इस यात्रा से लौटकर आने के बाद 1 महीने तक किसी विदेश यात्रा पर न जाए।


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