क्रूरता तलाक का एक मज़बूत आधार, लेकिन क्रूरता होती क्या है? यहां जानिए

Sharafat Khan

5 Sep 2019 4:42 AM GMT

  • क्रूरता तलाक का एक मज़बूत आधार, लेकिन क्रूरता होती क्या है? यहां जानिए

    हिन्दू विवाह अधिनियम 1955( 1976 के विवाह अधिनियम द्वारा संशोधित) में तलाक लेने के कुछ आधार बताए गए हैं। इन आधारों में लैंगिक संभोग, क्रूरता, अभित्याग, कोढ़, रतिजन्य रोग, मानसिक विकृतता, धर्म परिवर्तन, संसार परित्याग और अन्य आधार सम्मिलित हैं। जब विवाह में रहना पाति पत्नी के लिए संभव न हो तो हिन्दू विवाह अधिनियम 1955( 1976 के विवाह अधिनियम द्वारा संशोधित) की धारा 13 की उपधारा 1 में तलाक के इन आधारों में से किसी एक आधार पर पति या पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं।

    यह देखने में आया है कि तलाक के अधिनियम में उल्लेखित इन आधारों में से क्रूरता को आधार बनाकर तलाक के कई आवेदन अदालत में आए हैं। अधिनियम में कहीं भी यह परिभाषित नहीं किया गया है कि क्रूरता क्या होती है? क्रूरता को हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 में संशोधन के समय मानसिक प्रताड़ना को भी क्रूरता माना गया। पहले क्रूरता का अर्थ शारीरिक प्रताड़ना तक ही सीमित था। शारीरिक प्रताड़ना तो कुछ हद तक साबित की जा सकती है लेकिन मानसिक प्रताड़ना को साबित करना और भी कठिन हुआ। क्रूरता तलाक का एक मज़बूत आधार है लेकिन यह जानना आवश्यक है कि क्रूरता का दायरा क्या है?

    क्या होती है क्रूरता :

    अधिनियम में क्रूरता की परिभाषा तो नहीं दी गई है लेकिन विधिक अर्थों में क्रूरता तब मानी जाती है जब जीवन को, स्वास्थ्य को, शारीरिक अथवा मानसिक खतरा हो तो उसे क्रूरता के दायरे में रखा जाएगा। किसी केस में क्रूरता क्या होगी, इसका अंतिम फैसला उपलब्ध तथ्यों के आधार पर न्यायालय द्वारा ही किया जाएगा। न्यायालयों ने अपने कई निर्णयों में समय समय पर क्रूरता के बारे में बताया है। हालांकि क्रूरता की कोई विशेष परिभाषा तो नहीं दी गई लेकिन प्रकरण के तथ्य और परिस्थिति के अनुसार क्रूरता पर न्यायालय ने अपना मत दिया है।

    जियालाल अग्रवाल बनाम सरलादेवी AIR 1978 के वाद में कहा गया कि प्रत्येक मामले में निजी तथ्यों के आधार पर क्रूरता निश्चुत की जाएगी। क्रूरता की प्रतिपादना अलग समय और स्थान पर व्यक्ति के सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों तथा अन्य बातों के परिपेक्ष्य में बदलती रहती है।

    इस संदर्भ में बंबई उच्च न्यायालय का एक ऐतिहासिक निर्णय है। विनित एच जोगेलकर बनाम वैशाली विनीता जोगेलकर AIR 1998 के फैसले में न्यायालय ने कहा कि क्रूरता के बारे में कोई विशेष परिभाषा नहीं दी जा सकती। यह परिस्थितियों और व्यक्ति के आचरण के आधार पर निश्चित की जाती है।

    एक अन्य वाद श्रीमति सुलेखा बैरागी बनाम प्रोफेसर कमलाकांत बैरागी AIR 1980 में न्यायालय ने कहा कि क्रूरता सरल अर्थ में उपचार का अधिकारी नहीं बनाती है जब तक कि शरीर या मस्तिष्क को उससे यह भय नहीं बना रहता कि विवाह के दूसरे पक्षकार के साथ रहना खतरे से युक्त होगा।

    इस तरह सदन सिंह बनाम श्रीमति रेशम सिंह AIR 1982 के वाद में यह निर्धारित किया गया कि किसी के विरुद्ध जारता का झूठा आरोप लगाना हिंदू विवाह अधिनियम की धारा (10)1 के अर्थ में क्रूरता है। इस वाद से यह पता चलता है कि विवाह में कटुता आने पर पति-पत्नी एक दूसरे पर जारता का झूठा आरोप लगाते हैं तो दूसरा पक्षकार इस आरोप के झूठा होने पर खुद को क्रूरता का पीड़ित साबित कर सकता है।

    क्रूरता साबित करना आवश्यक

    कोई भी ऐसी बात जिससे पति या पत्नी का अपमान होता हो और उसे मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना होती हो, उसे वह क्रूरता के रूप में प्रस्तुत कर सकता है। केस के तथ्य और परिस्थिति के अनुसार न्यायलाय इस संबंध में क्रूरता का निर्धारण करेगा। इस तरह यह पता चलता है कि तलाक के केस के तथ्य और पारिस्थिति अलग होती हैं और इनके आधार पर ही पक्षकारों के लिए क्रूरता क्या है इसका निश्चय किया जा सकता है।

    क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग करने वाले पक्षकार यादि न्यायालय में क्रूरता साबित नहीं कर पाएं तो उनका तलाक का आवेदन रद्द हो जाएगा। इस संदर्भ में एक आंध्रा हाईकोर्ट का एक केस है, नवल किशोर सोमानी बनाम पूनम सोमानी 1998 इस केस में अदालत ने तलाक का आवेदन इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि पति अपनी पत्नी के खिलाफ क्रूरता साबित नहीं कर सका। अदालत ने दोनों को अपने दो वर्षीय बच्चे के साथ रहने की हिदायत दी।

    पक्षकारों को लग सकता है कि उनका पार्टनर उनके साथ क्रूरता कर रहा है किंतु...

    विवाह के पक्षकारों को लग सकता है कि उनका पार्टनर उनके साथ क्रूरता कर रहा है किंतु क्रूरता के आधार पर दिए गए तलाक के आवेदन के साथ साथ वे सभी तथ्य और परिस्थितियां भी प्रस्तुत करनी होती हैं, जिनके आधार पर न्यायालय को यह संतोष हो सके कि क्रूरता हुई। एस हनुमंत राव बनाम एस रमानी AIR 1999 सुप्रीम कोर्ट 1319 के मामले में न्यायालय ने मानसिक क्रूरता के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। इस वाद में विवाह के समय दिये गए मंगलसूत्र को पत्नी ने अपने गले से उतार दिया। पति ने इसे अपने खिलाफ मानसिक क्रूरता कहा और इस आधार पर तलाक की मांग की। अदालत ने यह मांग खारिज करते हुए निर्णय दिया कि मंगल सूत्र उतारना मानसिक क्रूरता के दायरे में नहीं आता।

    यह समझना आवश्यक है कि क्रूरता का दायरा सीमित नहीं है बल्कि यह प्रत्येक प्रकरण की प्रकृति के अनुसार न्यायालय द्वारा तय की जाती है। ऐसा भी हुआ है जिसे पक्षकार क्रूरता समझते हों, वह न्यायालय की दृष्टि में क्रूरता न हो।

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