धारा 498A के तहत शिकायत बरकरार रह सकती है भले ही विवाह शून्य (Void) हो: जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय

SPARSH UPADHYAY

3 Jan 2021 10:11 AM GMT

  • Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K

    जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने हाल ही में माना है कि भले ही शिकायतकर्ता महिला की किसी पुरुष के साथ शादी शून्य (Void Marriage) है, फिर भी पुरुष और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ रणबीर दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 498 ए [क्रूरता का अपराध] के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति संजय धर की पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों पर भरोसा करते हुए आगे कहा कि जब कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ वैवाहिक व्यवस्था में प्रवेश करता है, तो "वह धारा 498-A RPC में निहित 'पति' की परिभाषा के अंतर्गत होता है, चाहे विवाह की वैधता कुछ भी हो"।

    न्यायालय के समक्ष मामला

    अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं (माता-पिता, बहन और अभियुक्त कुलदीप कुमार की पत्नी) ने धारा 498-A RPC के तहत अपराध के लिए एफआईआर को चुनौती दी, जो प्रतिवादी-शिकायतकर्ता महिला ने दायर की थी (वह महिला जो यह दावा कर रही थी कि वह कुलदीप कुमार की पत्नी है)।

    याचिकाकर्ता नंबर 1 और 2 आरोपी कुलदीप कुमार के माता-पिता हैं और याचिकाकर्ता नंबर 3 उसकी बहन है।

    याचिकाकर्ता नंबर 4, आरोपी कुलदीप कुमार की कानूनी रूप से पत्नी है, हालंकी उसे प्राथमिकी में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया था, पर उसने अपने पति की ओर से एफआईआर को चुनौती दी।

    प्रतिवादी 2-शिकायतकर्ता महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि उसने एक कुलदीप कुमार के साथ विवाह में प्रवेश किया था और उसके पति और उसके रिश्तेदारों (तात्कालिक मामले में याचिकाकर्ता) उसे परेशान करते थे और उसके साथ क्रूरता करते थे और उसे पीटा जाता था और उसे वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया गया था।

    यह भी आरोप लगाया गया था कि उसका कथित पति (आरोपी कुलदीप कुमार) सेना में कार्यरत हैं, लेकिन उसके द्वारा महिला को कोई रखरखाव खर्च नहीं दिया जा रहा है और दहेज के सामान की मांग को लेकर भी आरोप लगाए गए थे।

    इस शिकायत के आधार पर, प्राथमिकी दर्ज की गई और मामले में अन्वेषण शुरू कर दिया गया।

    FIR को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई

    याचिकाकर्ताओं ने मुख्य रूप से इस अहदार पर एफआईआर को चुनौती दी कि कुलदीप कुमार एक विवाहित व्यक्ति हैं और उनकी पहली पत्नी (याचिकाकर्ता संख्या 4) के जीवनकाल में दूसरी शादी करने की कोई गुंजाइश नहीं थी।

    यह तर्क दिया गया कि चूंकि शिकायतकर्ता-महिला कुलदीप कुमार की कानूनी रूप से पत्नी नहीं थी, इसलिए, याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धारा 498-A RPC के तहत अपराध नहीं बंता है।

    याचिकाकर्ताओं के लिए पेश वकील के अनुसार, हिंदू कानून के अनुसार, एक व्यक्ति को अपनी पहली पत्नी के जीवन काल के दौरान दूसरी शादी करने से रोक दिया जाता है और यदि वह ऐसा करता है, तो दूसरा विवाह शून्य विवाह होगा।

    कोर्ट का आदेश

    रीमा अग्रवाल बनाम अनुपम और अन्य (2004) 3 एससीसी 199 एवं ए. सुबाष बाबू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और एक अन्य, (2011) 7 एससीसी 616 के मामलों में शीर्ष अदालत द्वारा सुनाए गए फैसलों पर भरोसा करते हुए बेंच ने कहा,

    "भले ही प्रतिवादी नंबर 2 (शिकायतकर्ता) कानूनी रूप से आरोपी कुलदीप कुमार की पत्नी नहीं है, फिर भी, याचिकाकर्ता नं. 1 से 3, जो कि आरोपी कुलदीप कुमार के रिश्तेदार हैं, उनपर और साथ ही कुलदीप कुमार पर भी, एफआईआर में प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा लगाए गए आरोपों के आधार पर धारा 498-ए आरपीसी के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है।"

    इसके अलावा, अदालत ने पाया कि एफआईआर में प्रथम दृष्टया लगाए गए आरोपों ने आरोपी कुलदीप कुमार और याचिकाकर्ता नंबर 1 से 3 के खिलाफ धारा 498-ए आरपीसी के तहत अपराध कायम किया है।

    इस पृष्ठभूमि में, पूर्वगामी कारणों के लिए, अदालत ने प्राथमिकी के अन्वेषण में हस्तक्षेप करने के लिए कोई अच्छा आधार नहीं पाया।

    केस का शीर्षक - करनैल चंद और अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य एवं अन्य [CRMC 560/2018 CrlM No. 1496/2020]

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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