बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिया सिविक बॉडी को निर्देश, दीवार ढहने से मरने वाली सब्जी विक्रेता की मां को अंतरिम मुआवजे के रूप में दिए जाएं दो लाख रुपए, पढ़िए फैसला

LiveLaw News Network

14 Aug 2019 6:50 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिया सिविक बॉडी को निर्देश, दीवार ढहने से मरने वाली सब्जी विक्रेता की मां को अंतरिम मुआवजे के रूप में दिए जाएं दो लाख रुपए, पढ़िए फैसला

    प्रतिवादी की तरफ से भी ऐसी कोई दलील नहीं दी गई कि भारी बारिश,भूकंप या कुछ अन्य प्राकृतिक कारणों से दीवार ढ़ह गई थी। ऐसे में साफ है कि निमार्ण की ठीक से देखभाल नहीं की गई।

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरसी नगर परिषद को निर्देश दिया है कि वह उस सब्जी विक्रेता की बुजुर्ग मां को अंतरिम मुआवजे के तौर पर दो लाख रुपए दे, जिसकी मौत बरसी में दीवार गिरने से आई चोट के कारण हो गई थी। यह घटना 16 मई 2015 को बरसी, सोलापुर जिला, महाराष्ट्र में हुई थी, जिसमें 50 वर्षीय एक महिला मंगल कांबले की मौत हो गई थी।

    जस्टिस अकिल कुरैशी और जस्टिस एस.जे कथावाला की दो सदस्यीय पीठ इस मामले में मृतका के बड़े भाई अनिल कांबले की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। गिरने वाली दीवारी परिषद् द्वारा बनाए गए एक शौचालय की थी।

    याचिकाकर्ता के अनुसार मृतका मंगल कांबले घटना के समय 50 साल का थी। वह अविवाहित थी और अपनी मां व अन्य परिजनों के साथ रहती थी। वह उनके परिवार को वित्तिय सहायता करने का एक जरिया थी और विशेषतौर पर बूढ़ी मां के लिए। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह घटना इसलिए हुई क्योंकि परिषद् अपनी संपत्ति की ठीक से देखभाल नहीं कर रही थी और उसके प्रति लापरवाही बरती। इसलिए वह उचित मुआवजा दिए जाने की प्रार्थना करता है।

    याचिकाकर्ता के वकील मनोज शिरसत ने दलील दी कि नगर पालिका परिषद् ने घटना के एक महीने बाद दीवार ढ़हने वाले इलाके में रहने वाले लोगों को पत्र लिखा और बताया कि परिषद् इस घटना में मरने वाली के परिजनों को मुआवजा देने पर विचार कर रहा है और घटना के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

    इसके बाद 15 अक्टूबर 2015 को परिषद ने बरसी सिटी पुलिस स्टेशन के पुलिस सब-इंस्पेक्टर को पत्र लिखा और बताया कि गिरने वाली दीवार को निर्माण बहुत पुराना था, इसलिए उन्हें उस दीवार के निर्माण के संबंध में तैयार की गई फाइल नहीं मिल रही है।

    वहीं परिषद् की तरफ से पेश वी.वी सेठ ने दलील दी कि अगर घटना के तथ्यों को चुनौती नहीं दी जाती है तो परिषद् की लापरवाही को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।इसलिए याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

    मामले में पेश तथ्यों का देखने के बाद कोर्ट ने पाया कि-

    '' इमारत के ढ़हने का कोई भौतिक या सांसारिक कारण नहीं हो सकता है बशर्ते जब तक कि वह पुरानी और जीर्ण न हो। इतना ही नहीं प्रतिवादी की तरफ से भी ऐसी कोई दलील नहीं दी गई कि भारी बारिश,भूकंप या कुछ अन्य प्राकृतिक कारणों से दीवार ढ़ह गई थी। ऐसे में साफ है कि निमार्ण की ठीक से देखभाल नहीं की गई।

    कम से कम रिकार्ड पर पेश तथ्यों से कोई अन्य निष्कर्ष संभव नहीं है। परिषद अपनी स्वंय की निर्मित इमारत को बनाए रखने के लिए अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है ताकि आस पास के क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों का जीवन खतरे में न पड़े। ऐसे में परिषद् को

    पीड़िता की दुर्भाग्यपूर्ण हुई मौत के लिए मुआवजे देने की जिम्मेदारी लेनी होगी। घटना के समय भी मृतका की मां की काफी बुजुर्ग होगी। ऐसे में वह मृतका पर निर्भर थी और इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। विशेषतौर पर इस तथ्य को जानते हुए कि मृतका अविवाहित थी।''

    हालांकि,पीठ ने कहा कि मुआवजे की गणना करने का कर्य एक रिट याचिका में नहीं किया जा सकता है। इसलिए याचिकाकर्ता को निर्देश दिया गया है कि वह अपनी मां की तरफ से मुआवजे की मांग के लिए उचित दीवानी कार्रवाई दायर करे। इसी बीच, परिषद् को निर्देश दिया था कि वह अंतरिम मुआवजे के तौर पर दो लाख रुपए दे।



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