दिल्ली हाईकोर्ट ने CIC को मौत की सज़ा पाए 7/11 के मुंबई बम विस्फोट के आरोपी को आईबी रिपोर्ट की प्रति देने पर दुबारा विचार करने को कहा [निर्णय पढ़े]

Rashid MA

21 Jan 2019 3:51 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने CIC को मौत की सज़ा पाए 7/11 के मुंबई बम विस्फोट के आरोपी को आईबी रिपोर्ट की प्रति देने पर दुबारा विचार करने को कहा [निर्णय पढ़े]

    मुंबई में ट्रेन में हुए 7/11 हमले में मौत की सज़ा पाए एक आरोपी ने गुप्तचर ब्यूरो द्वारा गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर की प्रति आरटीआई द्वारा माँगी है ताकि वह यह साबित कर सके कि इस मामले में जसे ग़लत फँसाया गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि उसकी यह अपील मानवाधिकार के तहत आता है और उसने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) से कहा है कि वह उसकी अर्ज़ी पर दुबारा ग़ौर करे। पहले उसकी अर्ज़ी यह कहते हुए खारिज की जा चुकी है की आईबी आरटीआई के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

    न्यायमूर्ति विभू भाखरू ने अपीलकर्ता एहतेशाम क़ुतुबुद्दीन सिद्दीक की अपील स्वीकार करते हुए यह बात कही।

    इस मामले में एहतेशाम को 11 जुलाई 2006 को मुंबई के उपनगरीय ट्रेन में हुए बम विस्फोटों का दोषी बताया गया है और उसे मौत की सज़ा हुई है। इस हमले में 200 लोगों की जान गई थी। एहतेशाम का कहना है कि उसे उसे ग़लत सबूतों के आधार पर क़सूरवार घोषित किया गया है और इसका आधार गृह मंत्रालय को आईबी की वह रिपोर्ट है जो 2009 सौंपी गई थी।

    सीआईसी ने जब उसकी याचिका ख़ारिज कर दी तब उसने हाईकोर्ट में अपील की है।

    "…इस बात में कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता जो सूचना माँग रहा है वह मानवाधिकार के कथित उल्लंघन से सम्बंधित है। उसका कहना है कि उसे प्रतिवादी द्वारा ग़लत साक्ष्यों के आधार पर फँसाया गया है जबकि प्रतिवादी यह जानता है कि याचिकाकर्ता 7/11 के इस विस्फोट कांड में शामिल नहीं है," न्यायाधीश बखरू ने कहा।

    सीआईसी की दलील को अस्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि "यह निर्णय ग़लत है क्योंकि सूचना मानवाधिकार के हनन का है।"

    आरटीआई अधिनियम की धारा 24(1) के अनुसार अगर ऐसी कोई सूचना माँगी गई है जो मानवाधिकार से जुड़ा है तो सूचना CIC से कहने पर ही दी जा सकती है, न्यायमूर्ति बखरू ने कहा। निश्चित रूप से यह CIC को जाँच करना है कि इस तरह की सूचना संगत है कि नहीं। अगर CIC को लगता है कि यह सूचना संगत नहीं है तो फिर इस तरह की सूचना नहीं दी जा सकती है।

    पृष्ठभूमि

    एहतेशाम को जुलाई 2006 में मुंबई के आतंकवाद विरोधी दस्ते ने ट्रेन में हुए बम विस्फोट के सिलसिले में गिरफ़्तार किया था।

    एहतेशाम ने कोर्ट से कहा कि जाँच के दौरान यह बताया गया कि मुंबई ट्रेन धमाके में इंडियन मुजाहिद्दीन का हाथ है और आईबी ने उसके बारे में सूचना एकत्र किया था और इस बारे में एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को 2009 में सौंपा था।

    उसने कहा कि इस बम विस्फोट में इंडियन मुजाहिद्दीन का हाथ था न कि उन लोगों का जिन पर पहले आरोप लगाए गए थे।

    एहतेशाम पर इस मामले में मुक़दमा चला और उसे 2015 में मौत की सज़ा सुनाई गई। इस सज़ा के ख़िलाफ़ बॉम्बे हाईकोर्ट में उसकी अपील लंबित है।

    आईबी की रिपोर्ट की कॉपी के लिए उसने 04.09.2017 को आरटीआई आवेदन दिया। पर उसकी यह अपील यह कहते हुए ख़ारिज कर दी गई है की आईबी इस सूचना के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उसकी पहली अपील भी ख़ारिज कर दी गई थी जिसके बाद उसने CIC में अपील की जिसने उसके आवेदन को मार्च 26, 2018 को ख़ारिज कर दिया।


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