बाॅम्बे हाईकोर्ट ने किया फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार,फैमिली कोर्ट ने दिया था 75 साल के बुजुर्ग को आदेश डीवी एक्ट के तहत दे 72 वर्षीय पत्नी को एक लाख रुपए मुआवजा [आर्डर पढ़े]

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23 April 2019 1:46 PM GMT

  • बाॅम्बे हाईकोर्ट ने किया फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार,फैमिली कोर्ट ने दिया था 75 साल के बुजुर्ग को आदेश डीवी एक्ट के तहत दे 72 वर्षीय पत्नी को एक लाख रुपए मुआवजा [आर्डर पढ़े]

    पिछले दिनों ही बाॅम्बे हाईकोर्ट ने एक फैमिली कोर्ट या पारिवारिक विवाद न्याय के एक आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। फैमिली कोर्ट ने एक 75 वर्षीय बुजुर्ग को निर्देश दिया था कि वह अपनी 72 वर्षीय पत्नी को डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005(घरेलू हिंसा अधिनियम 2005) के तहत एक लाख रुपए मुआवजे के तौर पर दे।

    जस्टिस अखिल कुरैशी व जस्टिस सारंग कोटवाल की दो सदस्यीय खंडपीठ ने इस मामले में सुभाष आनंद नामक व्यक्ति को राहत देने से इंकार कर दिया। याचिकाकर्ता पति सुभाष आनंद ने इस मामले में मुम्बई स्थित फैमिली कोर्ट के 18 सितम्बर 2018 के आदेश को चुनौती दी थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की पत्नी को इस बात की भी अनुमति दी थी िकवह उस घर के पहले तल पर रह सकती है,जबकि याचिकाकर्ता ग्राउंड फलोर पर रहता है।

    कोर्ट ने कहा कि कई सालों से उन दोनों के बीच में वैवाहिक विवाद चल रहा है। मामले का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू ये है िकवह उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने कग बाद प्रतिवादी पत्नी ने गोरगांव कोर्ट के समक्ष आपराधिक अर्जी दायर कर दी और उसमें पति के द्वारा घरेलू हिंसा करने की शिकायत की है।

    फैमिली कोर्ट के समक्ष दायर इस अर्जी में प्रतिवादी पत्नी ने मांग की थी कि उसके पति को मुम्बई के वालकेश्वर स्थित उसके वैवाहिक घर से उसे बाहर निकालने से रोका जाए।

    फैमिली कोर्ट ने बुजुर्ग महिला की इस अर्जी को स्वीकार करते हुए कई निर्देश जारी किए थे। जिसमें याचिकाकर्ता पति व उसके नौकरों को घर के पहले तल पर जाने से भी रोका गया था। ताकि महिला उस फलोर पर रह सके और घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 17 व 19 के तहत उसके अधिकारों की रक्षा की सके।

    अपने आदेश में फैमिली कोर्ट ने कहा था कि-

    प्रतिवादी पति को निर्देश दिया जाता है कि वह अधिनियम की धारा 22 के तहत याचिकाकर्ता पत्नी को एक लाख रुपए मुआवजे के तौर पर दे। क्योंकि उसने याचिकाकर्ता महिला को मानसिक तौर पर परेशान किया है और उसे भावुक तौर पर भी दुख पहुंचाया है।

    याचिकाकर्ता पति के वकील पंडित केसर ने दलील दी कि उसके मुविक्कल ने इस बात पर सहमति जता दी है िकवह अपनी प्रतिवादी पत्नी को घर से बाहर नहीं निकालेगा। जबकि प्रतिवादी महिजा के वकील चांदना सालगाओंकर ने दलील दी कि पहले भी याचिकाकर्ता पति गाली-गलौच व बुरा आचरण कर चुका है। इसलिए फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।

    शीर्ष कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश में मामूली संशोधन किए है,परंतु उस आदेश पर रोक लगाने से इंकार करते हुए कहा कि-

    हमने फैमिली कोर्ट के आदेश को देखा है। वहीं मामले में पेश अन्य कागजातों को भी देखा है। जब पति खुद इस बात पर राजी हो गया है िकवह अपनी पत्नी को अपने घर से नहीं निकालेगा,ऐसे में फैमिली कोर्ट के उन निर्देश का कोई मतलब नहीं है,जिसमें रोक संबंधी निर्देश जारी किए गए थे।


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