सीआरपीसी की धारा 243 के तहत अगर आवेदन दिया जाता है तो निचली अदालत नोटिस जारी करने के लिए बाध्य है बशर्ते आवेदन से न्याय का उद्देश्य पराजित नहीं होता : दिल्ली हाईकोर्ट

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12 July 2019 9:40 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 243 के तहत अगर आवेदन दिया जाता है तो निचली अदालत नोटिस जारी करने के लिए बाध्य है बशर्ते आवेदन से न्याय का उद्देश्य पराजित नहीं होता : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी की धारा 243 के तहत दाख़िल आवेदन के बारे में निचली अदालत के लिए यह अनिवार्य है कि वह नोटिस जारी करे बशर्ते कि इसका कोई कारण बताया गया हो और कहा गया हो कि आवेदन देने में देरी हुई है या इससे न्याय का उद्देश्य पराजित होता है। यह आदेश निचली अदालत के एक आदेश के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई में कहा गया। निचली अदालत ने सीआरपीसी की। धारा 91 और 311 के तहत दस्तावेज़ पेश करने और गवाहों को पेशी के लिए बुलाने की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी थी।

    आरोपी, भारतीय आदिम जाति सेवक संघ (बीएजेएसएस) के महासचिव ने यह याचिका दायर की थी जिन पर सरकारी अनुदान का दुरुपयोग करने का आरोप बीएजेएसएस के अधिकारियों ने लगाया था। अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज किए जाने के दौरान सीआरपीसी की धारा 91 के तहत दायर की गई थी जिसमें कुछ दस्तावेज़ और बीएजेएसएस की कार्यकारिणी समिति का प्रस्ताव पेश करने की अनुमति माँगी गई थी। यह आवेदन लंबित रहा और बाद में जब आवेदनकर्ता ने इस आवेदन को इस आधार पर वापस लेने का आग्रह किया कि बचाव पक्ष के गवाहों की पेशी के दौरान इसे पेश करने की अनुमति दी जाए, इसे ख़ारिज कर दिया गया। जब बचाव पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज करने की कार्रवाई समाप्त हो गई, आरोपी ने आवेदन देकर न केवल दस्तावेज़ पेश करने की अनुमति माँगी बल्कि इन दस्तावेज़ों के सत्यापन के लिए गवाहों को भी पेशी की माँग की।

    इस आवेदन को निचली अदालत ने इस आधार पर ख़ारिज कर दिया कि जिन दस्तावेज़ों को पेश करने की बात कही गई थी उनके विवरण नहीं दिए गए थे। निचली अदालत ने यह भी कहा कि चूँकि गवाहियों के पड़ताल की माँग नहीं की गई थी, और यह अभियोजन स्तर पर हो चुका था, गवाहों को दुबारा बुलाने से प्रक्रिया में देरी होती जिसमें आवेदन के विलंब से दायर होने के कारण पहले ही देरी हो चुकी थी। फिर, उन लोगों के नामों का ज़िक्र नहीं किया गया था जिनके पास ये दस्तावेज़ हो सकते थे और इन दस्तावेज़ों की प्रतियों को सूचना का अधिकार के तहत हासिल करने का कोई प्रयास भी नहीं किया गया था।

    हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 91 के तहत कोर्ट को यह अधिकार है कि वह किसी भी दस्तावेज़ को पेश करने का आदेश दे सकता है जबकि धारा 311 के तहत अदालत किसी भी व्यक्ति को गवाह के तौर पर उससे पूछताछ के लिए मामले की कार्यवाही के किसी भी स्तर पर बुला सकता है भले ही उसकी पहले किसी भी रूप में पेशी क्यों न हो गई हो।.

    हाईकोर्ट ने कहा कि जिन दस्तावेज़ों की माँग की गई थी वे उचित निर्णय के संदर्भ में संगत थे और इनके लिए पहले ही आवेदन दिए जा चुके थे। चूँकि निचली अदालत ने उस समय याचिकाकर्ता को इस बात की अनुमति दे दी थी कि वह संबंधित रिकॉर्ड पेश कर सकता है और गवाहों को बचाव के दौरान पेशी के लिए बुला सकता है, इसलिए इस आवेदन को बाद में इस आधार पर ख़ारिज नहीं किया जा सकता कि इससे मुक़दमे के फ़ैसले में देरी हो जाएगी या आवेदन देने में देरी हो गई है । हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आवेदनकर्ता ने उन दस्तावेज़ों के विवरण भी दिए थे जिनको पेश करने की अनुमति माँगी गई थी।

    अदालत ने कहा,

    "सीआरपीसी की धारा 243 के तहत निचली अदालत के लिए यह ज़रूरी है कि वह इस बारे में नोटिस जारी करे अगर आरोपी अपने बचाव में गवाह की पेशी या दस्तावेज़ पेश करने की अनुमति माँगता है। इस आवेदन को सिर्फ़ इस आधार पर ख़ारिज किया जा सकता है अगर वह अफ़सोसनाक है, इसे दायर करने में देरी हुई है या अगर यह न्याय के उद्देश्य को पराजित करता है"।

    अदालत ने निचली अदालत की इस दलील को ख़ारिज कर दिया कि धारा 243 के तहत इस आवेदन की अनुमति देना अदालत के विवेक पर निर्भर है या अगर वह अगर वह अफ़सोसनाक है, इसे दायर करने में देरी हुई है या अगर यह न्याय के उद्देश्य को पराजित करता है।

    हाईकोर्ट ने निचली अदालत को निरस्त कर दिया और आरोपी की अर्ज़ी स्वीकार कर ली।


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