स्वतंत्रता सेनानियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के तहत विवाहित बेटी, नाती व नातिन के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता : उत्तराखंड हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi

7 Jun 2019 12:15 PM GMT

  • स्वतंत्रता सेनानियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के तहत विवाहित बेटी, नाती व नातिन के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता : उत्तराखंड हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

    Uttarakhand High Court

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने यह कहा है कि बेटियों की बेटी या बेटा (यानी बेटी से पैदा नाती या नातिन) भी स्वतंत्रता सेनानी के परिवार के रूप में आश्रितों की परिभाषा के तहत आएंगे और स्वतंत्रता सेनानियों के लाभ के लिए बनाई गई योजनाओं का फायदा उठाने में उनसे लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।

    "नहीं किया जा सकता भेदभाव"

    जस्टिस शरद कुमार शर्मा ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी की बेटी, नातिन या नाती के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। अदालत ने 5 एक जैसी याचिकाओं का निपटारा करते हुए ये कहा।

    अदालत में दाखिल इस प्रमुख याचिका में याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार की कार्रवाई को चुनौती दी थी जिसमें भारत सरकार और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं और उत्तर प्रदेश लोक सेवा (आरक्षण) शारीरिक रूप से विकलांगों व स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित और भूतपूर्व सैनिक) अधिनियम, 1993 के तहत स्वतंत्रता सेनानी के आश्रितों को मिलने वाले लाभों से इनकार कर दिया गया था।

    सरकार का मत
    सरकार ने कहा था कि नातिन (बेटियों की बेटी) को मृतक स्वतंत्रता सेनानी के आश्रितों के तौर पर परिवार की परिभाषा में शामिल नहीं किया जाएगा।

    याचिकाकर्ता के तर्क

    याचिकाकर्ता के वकील तपन सिंह ने यह तर्क दिया कि याचिकाकर्ता बेटी की बेटी है और मृतक स्वतंत्रता सेनानी के परिवार की सदस्य है भले ही ये तथ्य हो कि उसने दूसरे व्यक्ति से शादी कर ली है। इसलिए लिंग या दूसरी जगह शादी करने के आधार पर उसे स्वतंत्रता सेनानी योजना के तहत लाभ उठाने से वंचित नहीं किया जा सकता।

    "पोते शामिल, तो नातिन या नाती क्यों नहीं१"

    सिंह ने यह भी तर्क दिया कि जब पोते (यानी बेटे का बेटा) को स्वतंत्रता सेनानी के आश्रितों की परिभाषा में स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में शामिल किया गया है तो बेटी के बेटे या बेटी भी इस योजना के तहत लाभ के लिए हकदार होंगे।

    ईशा त्यागी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले का जिक्र

    उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ईशा त्यागी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में फैसले पर भरोसा किया, जहां अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के अनुदान के लिए बेटा- बेटी में भेदभाव होने पर सवाल उठाया गया था और इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन कहा गया था।

    ईशा त्यागी में डिवीजन बेंच ने यह कहा था कि अनुकंपा नियुक्ति के अनुदान में शादीशुदा बेटी भी परिवार की परिभाषा के तहत आएगी और भी अनुदान की हकदार होगी।

    ईशा त्यागी मामले की उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि

    उच्च न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे में ईशा त्यागी का मामला इससे पहले उत्तराखंड उच्च न्यायालय की फुल बेंच के सामने भी आया था जिसमें पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि की थी। इस फैसले में यह कहा गया था कि मरने वाले कर्मचारी की विवाहित बेटी, उसका बेटा या बेटी नियुक्ति का दावा कर सकते हैं और नियम के तहत लिंग के आधार पर उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।

    यह लिंग भेदभाव भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है और अंततः यह आयोजित किया गया था कि उन्हें भी डाइंग एंड हार्नेस रूल्स, 1974 की धारा 2 (सी) के तहत निहित परिवार की परिभाषा के रूप में शामिल किया जाएगा।

    जस्टिस शर्मा ने यह कहा, "यह न्यायालय फुल बेंच द्वारा प्रस्तावित अनुपात के तहत बेटियों की बेटी या बेटा यानी नातिन या नाती को स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित के तौर पर परिवार मानने में सहमत है और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता और स्वतंत्रता सेनानियों के लाभ के लिए बनी योजनाओं में उन्हें भी शामिल किया जाएगा।"

    कोर्ट ने सरकार को यह निर्देश दिया है कि अगर कोई दूसरी कानूनी बाधा ना हो तो याचिकाकर्ताओं द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के तौर पर विभिन्न योजनाओं के तहत किए गए दावों पर विचार करे।


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