पति/बच्चों का पत्नी/माँ के साथ रहने का अधिकार मौलिक अधिकार है : दिल्ली हाईकोर्ट ने पाकिस्तानी महिला को भारत छोड़ने के नोटिस को निरस्त किया [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi

3 Jun 2019 3:38 AM GMT

  • पति/बच्चों का पत्नी/माँ के साथ रहने का अधिकार मौलिक अधिकार है : दिल्ली हाईकोर्ट ने पाकिस्तानी महिला को भारत छोड़ने के नोटिस को निरस्त किया [निर्णय पढ़े]

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में काम उम्र के बच्चों का अपनी माँ और पति का अपनी पत्नी के साथ रहने का अधिकार भी शामिल है। कोर्ट ने एक भारतीय नागरिक से शादी करने वाली पाकिस्तानी नागरिक को 'भारत छोड़ने के नोटिस' को निरस्त कर दिया।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि "परिवार" समाज की स्वाभाविक और मौलिक इकाई है और इसलिए राज्य के मनमाने हस्तक्षेप से इसकी पवित्रता को बचाए रखने का हक़ है।

    पृष्ठभूमि

    नौशीन नाज़ पाकिस्तानी नागरिक हैं और उन्होंने एक भारतीय मोहम्मद जावेद से शादी की और उनके दो बच्चे हैं जो दिल्ली के स्कूलों में पढ़ते हैं। इस महिला को वर्ष 2015 में भारत में रहने के लिए लंबी अवधि का वीज़ा मिला था।

    उसको 07.02.2019 को भारत छोड़ने का नोटिस थमा दिया गया और मंत्रालय ने उसे नोटिस मिलने के 15 दिनों के बाद भारत छोड़ देने को कहा।

    हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस नोटिस को चुनौती देने वाली उनकी याचिका ख़ारिज कर दी थी और कहा कि इस महिला को इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वीज़ा देने का अधिकार पूरी तरह भारत सरकार का विवेकाधिकार है।

    उसकी अपील पर खंडपीठ ने अलग विचार व्यक्त किया कि भारत छोड़ने की नोटिस की व्यापक व्याख्या से नौशीन की 'जीवन का अधिकार' प्रभावित होता है। पीठ ने कहा एकल पीठ इस बात को नज़रंदाज़ कर दिया कि एक माँ होने के कारण उस पर इसका क्या असर होगा। पीठ ने कहा कि नौशीन दो बच्चों की माँ है और और ये बच्चे भारतीय नागरिक हैंऔर वह एक भारतीय नागरिक की पत्नी है। नौशीन को भारत छोड़ने का नोटिस देने का मतलब होगा परिवार का टूटना और इसकी वजह से तीन भारतीयों के अधिकारों पर असर पड़ेगा।

    "हमारी राय में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में उन छोटे बच्चों का अपनी माँ के साथ और एक पति का अपनी पत्नी के साथ रहने का अधिकार भी शामिल है; और राज्य की किसी एकक को यह अधिकार नहीं है कि वह नौशीन के बच्चों और उसके पति को उनके इन अधिकारों से एक पेन से कुछ लिखकर वंचित कर दे जिसमेंमनमानेपन की बू आती है जिसके पीछे क़ानून की ताक़त नहीं है और जिसमें प्राकृतिक न्याय की आधारभूत शर्तों को पालन किया गया है ना और उसे यह मौक़ा दिया गया कि उसके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों का जवाब देने का उसको मौक़ा दिया जाए।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "…हमारी राय में "परिवार" समाज का स्वाभाविक और मौलिक इकाई होने के कारण, राज्य के निरंकुश हस्तक्षेप से उसको बचाव का अधिकार प्राप्त है।"

    बेंच ने जिन तथ्यों की ओर ध्यान दिलाया वे हैं :

    · नौशीन की लंबी अवधि की वीज़ा 08.06.2020 तक वैध है। उसने भारतीय नागरिकता के लिए भी आवेदन दिया है जो कि लंबित है।· नौशीन को अभी तक मंत्रालय या किसी अन्य अथॉरिटी की ओर से कोई नोटिस नहीं दिया गया है जिसमें उस पर लंबी अवधि की वीज़ा की शर्तों के उल्लंघन का आरोप हो;

    · नौशीन का एलटीवी कभी रद्द नहीं किया गया;

    कोर्ट ने कहा कि मंत्रालय का निर्णय ख़ुफ़िया जानकारी पर आधारित है…जिसका ख़ुलासा नहीं किया गया है कि उसमें क्या है और किस आधार पर नोटिस जारी किया गया है।

    पीठ ने कहा कि वीज़ा देना अथॉरिटी का विशेषाधिकार हो सकता है पर वैध एलटीवी पर इस देश में रह रहे व्यक्ति के अधिकार को सीमित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती बशर्ते कि इसका कोई ज़रूरी आधार हो। पीठ ने भारत छोड़ने के आदेश के इस नोटिस को निरस्त कर दिया और मंत्रालय और संबंधित अथॉरिटी को निर्देश दिया कि वे नौशीन कीनागरिकता के आवेदन पर निर्णय के बारे में क़ानून के अनुरूप बताएँ।


    Tags
    Next Story