राज्य सज़ा में छूट के दावों के नियमों को कड़ा कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के नियमों को वैध ठहराया [निर्णय पढ़े]

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22 April 2019 3:53 PM GMT

  • राज्य सज़ा में छूट के दावों के नियमों को कड़ा कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के नियमों को वैध ठहराया [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान प्रिजन्स (शॉर्टनिंग ऑफ सेंटेंस) रूल, 2006 के नियम 8 (2) (i) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। उक्त नियम में यह प्रावधान किया गया है कि ऐसे कैदी जिन्हें ऐसे अपराध के तहत आजीवन कारावास की सजा हुई है जिसमें मौत की सजा का भी प्रावधान होता है या उसे मिली मौत की सजा को अदालत द्वारा आजीवन कारावास में तब्दील किया गया है, उसकी सजा और समय से पहले रिहाई के लिए दाखिल आवेदन पर सरकार रिहाई कर सकती है।

    इसमें एक और नियम यह है कि इसे तभी माना जाएगा जब उसने रहम की अवधि को छोड़कर 14 वर्सज की वास्तविक कारावास की सजा काट ली हो, लेकिन इसमे जांच या मुकदमे के दौरान जेल में बिताई अवधि को शामिल किया जा सकता है बशर्ते ऐसे कैदी ने कम से कम 4 वर्ष की छूट अर्जित की हो।

    राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस नियम को 2 आधारों पर रद्द किया था: पहला यह कि अधिनियम की धारा 59 (2) द्वारा अपेक्षित नियमों को राज्य के विधानमंडल के समक्ष नहीं रखा गया था जिससे इसे वैधानिक बल प्रदान नहीं किया गया और दूसरा यह कि नियमों को आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 433-ए के विपरीत नहीं बनाया जा सकता जो मारू राम बनाम भारत संघ मामले में संविधान पीठ के फैसले पर आधारित था।

    राजस्थान राज्य ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष हाई कोर्ट के इस निर्णय को चुनौती दी थी। जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने राजस्थान बनाम मुकेश शर्मा मामले में कहा कि बिल लाने से पहले विधानमंडल के समक्ष नियमों को रखने की कोई आवश्यकता नहीं है और इसे लागू करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

    पीठ ने कहा, "जैसे ही" शब्द का उपयोग किसी भी परिणाम के अभाव के साथ शामिल नहीं होता जिससे यह प्रावधान निर्देशक बनता है और अनिवार्य नहीं है।

    उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए पीठ ने संविधान पीठ के मारू राम फैसले का जिक्र करते हुए आगे कहा: "14 वर्षों की हिरासत के पूरा होने पर उचित रूप से छूट अधिकार का मामला नहीं है बल्कि उस संबंध में बनाए गए नियमों के अधीन है। यह निर्दिष्ट परिस्थितियों में उसी के पूर्ण खंडन सहित, राज्य नीति के विषय के रूप में, किसी भी राज्य को नियम 8 (2) (i) द्वारा छूट के दावों पर विचार करने के तरीके से प्रतिबंध लगाने से रोकता है।"


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