अलग तिथि पर सज़ा से पूर्व सुनवाई आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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19 April 2019 11:49 AM GMT

  • अलग तिथि पर सज़ा से पूर्व सुनवाई आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिस दिन सज़ा सुनाई जाती है उसी दिन सज़ा पर होने वाली सुनवाई आयोजित करने पर कोई रोक नहीं है बशर्ते कि आरोपी और अभियोजन अपनी-अपनी दलील पेश करने को तैयार हैं।

    न्यायमूर्ति एनवाई रमना,न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौदर और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि सीसीपी की धारा 235 (2) का उद्देश्य आरोपी को सज़ा को आसान बनाने का मौक़ा देना है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि निचली अदालत धारा 235(2) के तहत आवश्यक शर्तें तभी पूरी कर सका है जब वह इस मामले की सुनवाई एक-दो दिन के लिए स्थगित कर दे।

    आरोपी X बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में पुनरीक्षण याचिका में एक मामला यह उठाया गया कि निचली अदालत ने सज़ा सुनाने से पहले याचिकाकर्ता की सुनवाई अलग से नहीं की और यह धारा सीआरपीसी की धारा 235(2) का उल्लंघन है।

    पीठ ने कहा :

    "हमारा मानना यह है कि अगर धारा 235(2) का उद्देश्य पूरा हो रहा है और अगर आरोपी को सज़ा के बारे में अपना पक्ष रखने का पूरा मौक़ा मौखिक या सबूतों के द्वारा दिया गया है तो जिस दिन सज़ा सुनाई गई है उसी दिन इसकी सुनवाई पर कोई रोक नहीं है…"

    कोर्ट ने आगे कहा कि अगर निचली अदालत सज़ा दिए जाने पर होने वाली सुनवाई में किसी तरह की कोई प्रक्रियागत अनियमितता बरतती है तो इस ग़लती को अपीली अदालत सुनवाई का पूरा मौक़ा देकर सुधार सकती है।

    पीठ ने इस बारे में कुछ दिशानिर्देश दिए जो इस तरह से थे -

    • धारा 235(2) के तहत सार्थक सुनवाई का मतलब सामान्य स्थिति में सुनवाई के लिए दिए गए समय या दिन की संख्या से नहीं है। इसकी गुणवत्ता को देखा जाना चाहिए न कि मात्रात्मक रूप में।
    • निचली अदालत को सीआरपीसी की धारा 235(2) के अनुरूप काम करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए।
    • सुनवाई के लिए कम समय मिलने या अन्य बातों के बारे में अपीली अदालत से कोई भी राहत पाने के लिए आरोपी को अपीली अदालत को इस बारे में विश्वास दिलाना होगा।
    • कुछ वास्तविकताओं को देखते हुए अपीली अदालत अगर उचित समझती है तो वह स्वतंत्र जाँच का आदेश दे सकते है।
    • अगर आरोपी इस तरह का कोई आधार अपीली अदालत के समक्ष पेश नहीं कर पाता है तो अपीली अदालत कुछ भी करने के लिए बाध्य नहीं है।


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