कर्मचारियों को वेतन निर्धारण के लिए होने वाले निर्णय प्रक्रिया से जुड़ने का कोई अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi

14 Feb 2019 4:37 PM GMT

  • कर्मचारियों को वेतन निर्धारण के लिए होने वाले निर्णय प्रक्रिया से जुड़ने का कोई अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी बैंक के कर्मचारी को यह अधिकार नहीं है कि वह वेतन निर्धारण प्रक्रिया से अपने को जोड़े।

    न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि बैंक अपने अधिकारियों के लिए जो वेतन निर्धारित करता है बैंक के अधिकारी उससे बंधे होते हैं और स्थाई समिति का निर्णय बैंक के कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन के बारे में लिए जाने वाले निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा है।

    एसबीआई के एक कर्मचारी ने अपने वेतन के पुनर्निर्धारण के बारे में बैंक के निर्णय को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। बैंक ने स्थाई समिति द्वारा अनुमोदित फ़ार्मूले के आधार पर उसका वेतन निर्धारित किया था। हाईकोर्ट ने कर्मचारी की याचिका स्वीकार कर ली।

    एसबीआई की अपील पर पीठ ने कहा कि वेतन भारत सरकार के निर्देश के अनुरूप निर्धारित किया गया है। पीठ ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट का यह कहना कि कर्मचारी का स्थाई समिति के साथ किसी भी तरह का गोपनीयता का क़रार नहीं है, टिकाऊ विचार नहीं है। पीठ ने कहा,

    "बैंक का कर्मचारी होने के नाते याचिकाकर्ता वेतन के बारे में बैंक के निर्णयों से बंधा है। स्थाई समिति का निर्णय बैंक के कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन के बारे में होने वाले निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा है। बैंक के कर्मचारियों को वेतन निर्धारण प्रक्रिया के साथ जुड़ने का कोई अधिकार नहीं है। अगर मामला वेतन के औचित्य पर उठे सवाल से जुड़ा है तो न्यायिक समीक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए कोर्ट इस निर्णय प्रक्रिया की समीक्षा कर सकता है"।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि वेतन सभी सरकारी बैंकों के कर्मचारियों के लिए बिना किसी भेदभाव के निर्धारित किए गए हैं। वेतन में कमी किए जाने के निर्णय को ग़लत ठहराकर हाईकोर्ट ने ग़लती की है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कर्मचारी से यह वादा कभी नहीं किया गया कि उसकी पोस्टिंग के दौरान $1965 के उसके वेतन में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। वेतन में बदलाव किया गया पर इसका अर्थ यह नहीं है कि उसे इसके ख़िलाफ़ कोई अधिकार मिल जाता है कि वह इससे मनमाना और अनुचित बताकर उसको चुनौती दे। यह कहते हुए पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया।


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