सिर्फ़ इसलिए कि ऑपरेशन के बाद घर पहुँचकर मरीज़ की मौत हो गई, ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर को दोषी नहीं माना जा सकता : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

8 Feb 2019 5:10 AM GMT

  • P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man

    Punjab & Haryana High Court

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक सरकारी डॉक्टर के ख़िलाफ़ मामले को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि सिर्फ़ इसलिए कि ऑपरेशन के बाद घर पहुँचने पर मरीज़ की मौत हो गई, इसे डॉक्टर की लापरवाही नहीं माना जा सकता।

    न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह ने कहा, "डॉक्टर योग्य है और वह एमबीबीएस और एमएस (जनरल सर्जरी) है। यह नहीं कहा गया है कि वह नशे में था और उसने ऐसे उपकरणों का प्रयोग किया जिनसे सर्जरी नहीं की जा सकती है। उसने कई मामलों में सर्जरी किया है…

    …आईपीसी की धारा 304A, के तहत यह साबित करना ज़रूरी है कि उसका काम जल्दबाज़ी और लापरवाही भरा था। डॉक्टर ने सर्जरी किया और घर जाने के बाद उसको बहुत ही तीव्र दर्द हुआ, यह इस निष्कर्ष के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि डॉक्टर ने लापरवाही से ऑपरेशन किया।"

    इस बारे में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर मनीष बनाल ने याचिका दायर कर यह मांग की थी कि उसके ख़िलाफ़ धारा 304A के तहत दर्ज मामले को निरस्त किया जाए।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसकी बहू याचिकाकर्ता डॉक्टर की लापरवाहियों की वजह से मर गई। मृत महिला का नसबंदी का ऑपरेशन याचिकाकर्ता डॉक्टर ने किया था। सरकारी वाहन से अस्पताल से घर पहुँचने पर इस महिला ने पेट में तीव्र दर्द की शिकायत की। उसे वापस अस्पताल लाया गया पर वह रास्ते में ही मार गई।

    कोर्ट ने हालाँकि कहा कि पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में इस बात को नकारा गया है कि ऑपरेशन में किसी तरह की गड़बड़ी की वजह से इस महिला की मौत हुई है। रिपोर्ट में उसकी मौत का कारण आंतरिक रक्त स्राव बताया गया है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ कार्रवाई से पहले अनुमति की ज़रूरत है। कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता एक सरकारी डॉक्टर है। वह सरकारी कार्य कर रहा था और नसबंदी का ऑपरेशन कर रहा था। कई ऑपरेशन किए गए हैं। इसलिए याचिकाकर्ता पर मुक़दमा चलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अनुमति लिए जाने की ज़रूरत है। इससे पहले की कोर्ट इस मामले का संज्ञान ले, इस डॉक्टर के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए पूर्व अनुमति की ज़रूरत है।"

    इसलिए कोर्ट ने डॉक्टर की याचिका स्वीकार कर ली और उसके ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर को निरस्त कर दिया।


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