आश्रय का अधिकार है एक मौलिक अधिकार,राज्य का संवैधानिक कर्त्तव्य है कि वह गरीबों को घर की जगह उपलब्ध कराएं-इलाहाबाद हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

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20 July 2019 1:57 PM GMT

  • आश्रय का अधिकार है एक मौलिक अधिकार,राज्य का संवैधानिक कर्त्तव्य है कि वह गरीबों को घर की जगह उपलब्ध कराएं-इलाहाबाद हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह माना है कि आश्रय का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और यह राज्य का संवैधानिक कर्तव्य बनता है कि वह गरीबों को घर की जगह उपलब्ध कराए।

    सरकारी जमीन पर अतिक्रमण से जुड़ा मामला
    जस्टिस सूर्या प्रकाश केशरवानी ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए की है। इस जनहित याचिका में यह मांग की गई थी कि सरकारी जमीन पर रह रहे 4-4 अलग-अलग लोगों को वहां से निकाला जाए क्योंकि इन सभी ने अतिक्रमण किया है।

    कोर्ट ने निकाला मजदूरों के पक्ष में निष्कर्ष
    कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह सभी लोग गरीब है और पिछड़ी जाति से संबंध रखते है। इनके पास अपनी खेती नहीं है और दूसरों के खेतों में मजदूरी करते है। आवासीय पट्टे पर सक्षम अधिकारी ने इनको वर्ष 1995 में बहुत छोटे प्लाट दिए थे। उन्हीं पर इन्होंने अपने घर बना रखे है। यह उस जगह पर वर्ष 1995 से रह रहे है, ऐसे में कोड 2006 की धारा 67ए के तहत इनको संरक्षण प्राप्त है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर राज्य अधिकारी यह निर्णय करते है कि इनको उस जगह से हटाना है तो ऐसे में इनके घरों को हटाने से पहले राज्य को इनको दूसरी उपयुक्त जगह रहने के लिए देनी होगी।

    "आश्रय के अधिकार का मतलब केवल एक व्यक्ति के सिर पर छत का अधिकार नहीं"
    जज ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि आश्रय के अधिकार का मतलब केवल एक व्यक्ति के सिर पर छत का अधिकार नहीं हैं। बल्कि एक मानव की रहने और विकास करने के लिए सभी जरूरी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का अधिकार है।

    कोर्ट ने कहा कि-
    ''एक मानव के लिए शेल्टर या आश्रय, यह सिर्फ उसके जीवन व अंगों के संरक्षण के लिए नहीं है। यह एक घर है, जहां उसको शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक तौर पर पलने का मौका मिले। ऐसे में आश्रय के अधिकार में पर्याप्त रहने का स्थान, सुरक्षित और उपयुक्त सुविधाएं, साफ-सुथरा, पर्याप्त रोशनी, शुद्ध हवा, पानी, बिजली, शौच व अन्य सिविक सुविधा जैसे सड़क आदि शामिल है। ताकि वह आराम से अपने काम-काज की जगह पर जा सके। ऐसे में आश्रय के अधिकार का मतलब सिर्फ किसी व्यक्ति के सिर पर छत होने का अधिकार नहीं है। बल्कि वह सभी बुनियादी सुविधाएं भी है जो उसके एक मानव के तौर पर रहने और विकसित होने के लिए जरूरी है। दलितों व जनजाति के लोगों को देश की मुख्य जीवन धारा से जोड़ने के लिए उनको यह सभी सुविधाएं व मौके उपलब्ध कराना राज्य की ड्यूटी है। न्यूनतम संपत्ति के बिना किसी की भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं हो सकती है।
    'सभी को पर्याप्त आश्रय की सुविधा' का उद्देश्य यह भी है कि मुख्य सरकारी सहायता को सबसे अधिक जरूरतमंद आबादी समूहों के बीच आवंटित किया जाना चाहिए।''

    नीति निदेशक तत्व का भी दिया गया हवाला
    राज्य की नीति के निदेशक सिद्धांत का हवाला देते हुए पीठ ने यह कहा कि यह राज्य का कर्तव्य बनता है कि वह उपयुक्त मूल्य पर घर बनाए और गरीबों तक उनकी पहुंच को आसान बनाए।

    कोर्ट ने कहा कि-
    ''पारंपरिक तौर पर एक मानव की 3 मूलभूत जरूरतों को स्वीकार किया गया है, जिसमें खाना, कपड़ा व घर शामिल है। एक सभ्य समाज में जीने के अधिकार की गारंटी दी जाती है।यह राज्य का कर्तव्य बनता है कि वह उपयुक्त मूल्य पर घर बनाए और गरीबों तक उनकी पहुंच को आसान बनाए। किसी व्यक्ति को अतिक्रमण करने और अवैध निर्माण करने का अधिकार नहीं है, चाहे वो फुटपाथ हो, अंडरपास हो या सरकारी गली या अन्य कोई ऐसा स्थान जो, आम जनता के उपयोग के लिए हो। यह राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह उपयुक्त सुविधा व मौके देते हुए अपनी संपत्ति व स्रोत का बंटवारा करके रहने के लिए घर उपलब्ध कराए ताकि जीवन के अधिकार का मतलब सार्थक हो सके।''

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