पत्नी को दिया जाने वाला गुजारा भत्ता नहीं है कोई दान या इनाम-दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

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23 May 2019 8:54 AM GMT

  • पत्नी को दिया जाने वाला गुजारा भत्ता नहीं है कोई दान या इनाम-दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

    दिल्ली हाईकोर्ट ने विकास भूषण बनाम राज्य व अन्य के मामले में माना है कि पत्नी को दिया जाने वाला गुजारा कोई दान या इनाम नहीं है। यह राशि उसके गुजर-बसर या उत्तरजीविता के लिए दी गई है।

    जस्टिस संजीव सचदेवा वाली पीठ इस मामले में उस सवाल पर विचार कर रही थी,जिसमें पूछा गया था कि गुजारे भत्ते की राशि जिस दिन अर्जी दायर की गई है उस तारीख से दी जानी चाहिए या जिस दिन गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया है,उस तारीख से।
    कोर्ट ने महिलाओं के लिए बने ''गुजारा भत्ता या रख-रखाव''प्रावधान के उद्देश्य के तहत इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि-
    ''रख-रखाव या गुजारा भत्ता देने का उद्देश्य पत्नी के निर्वाह भत्ते को वहन करना है,जो खुद का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है,इसलिए भत्ते की राशि सामान्य रूप से आवदेन की तारीख दी जानी चाहिए। अगर कोर्ट गुजारे भत्ते की राशि अपने आदेश की तारीख से देना चाहती है तो कोर्ट को ऐसा विचार अपनाने के लिए मजबूर करने वाली परिस्थितियां होनी चाहिए।''
    कोर्ट ने यह भी कहा कि-
    ''पत्नी को दिया जाने वाला गुजारा भत्ता कोई दान या इनाम नहीं है। यह इसलिए दिया जाता है ताकि वह अपना जीवन-यापन कर सके। कोर्ट में अर्जी दायर करने से लेकर गुजारे भत्ते का आदेश देने के बीच में समय बीत जाता है,परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि उसके पास अपना जीवन-यापन करने के लिए पर्याप्त फंड या पैसे है।''
    याचिकाकर्ता पति ने इस मामले में निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। निचली कोर्ट ने अपने आदेश में याचिकाकर्ता पति को निर्देश दिया था िकवह अपनी पत्नी को 40000 रुपए अंतरिम गुजारे भत्ते के तौर पर दे। इस मामले में महिला ने घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत अर्जी दायर की थी।
    याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट के समक्ष दलील दी कि निचली अदालत ने इस बात पर विचार नहीं किया कि प्रतिवादी पत्नी पहले ही सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अर्जी दायर कर चुकी है और अंतरिम गुजारे भत्ते के तौर पर 15000 रुपए देने का आदेश दिया जा चुका है। याचिकाकर्ता प्रतिमाह वह राशि दे भी रहा है।
    हालांकि कोर्ट को सूचित किया गया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर अर्जी को वापिस लिया जा चुका है।
    याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी दलील दी कि निचली अदालत ने गुजारा भत्ता देने का आदेश अर्जी दायर करने की तारीख से देने का कहा है,जबकि गुजारा भत्ता उस तारीख से देने के लिए नहीं कहा गया,जिस दिन ऐसा करने के लिए आदेश दिया गया था। ऐसा करके निचली अदालत ने गलती की है। चूंकि प्रतिवादी पत्नी को पहले ही सीआरपीसी की धारा 125 के तहत 15000 रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता मिल रहा था। उसने यह भी कहा कि गुजारे भत्ते की राशि तय करते समय मामले के तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया।
    कोर्ट ने इन दलीलों को नकारते हुए कहा कि-''जब निचली अदालत मामले की सुनवाई करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि पत्नी रख-रखाव या गुजारा भत्ता पाने की हकदार है तो मूल्यांकन वास्तव में आवेदन की तारीख से संबंधित है।जब मूल्यांकन आवेदन की तारीख से संबंधित होता है,तो अदालत के आदेश की तारीख के बाद की अवधि से गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य करने वाली परिस्थितयां होनी चाहिए।''
    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जयमिनीबेन हिरेनााई व्यास व अन्य बनाम हिरेनभाई रमेश चंद्रा व्यास व अन्य (2015) 2 एससीसी 385 के मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया,यह फैसला भी इसी तरह के मुद्दे से संबंधित था। इसके अलावा हाईकोर्ट द्वारा खुद रेखा सभरवाल व अन्य बनाम जितेंद्र सभरवाल 2018 एससीसी आन लाइन डेल 12448,सीआरएल.एम.सी.3647/2014 में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया। इस फैसले में कोर्ट ने माना था कि गुजारा भत्ते की राशि का मूल्यांकन अर्जी दायर करने की तारीख से संबंधित है ,न कि आदेश देने की तारीख से।
    कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि गुजारे भत्ते की राशि का संबंध आवेदन दायर करने की तारीख से है या उसे तारीख से दिया जाना चाहिए और निचली अदालत द्वारा दिए गए गुजारे भत्ते की राशि को लेकर कोई चुनौती नहीं दी गई थी। इसलिए कोर्ट इस मामले में दायर याचिका को खारिज कर रही है। साथ ही याचिकाकर्ता को निर्देश दे रही है िकवह अर्जी दायर करने की तारीख मार्च 2014 से लेकर प्रतिमाह अपनी पत्नी को 40000 रुपए गुजारे भत्ते के तौर पर दे। हालांकि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दिए गए आदेश के तहत जो राशि वह पहले ही दे चुका है,उस राशि को इस राशि में से घटा सकता है।
    याचिकाकर्ता की तरफ से वकील प्रतीक चतुर्वेद्वी पेश हुए थे और प्रतिवादी की तरफ से एएफपी हिरेन शर्मा(राज्य सरकार की तरफ से) व निशांत सोलंकी(प्रतिवादी महिला की तरफ से) पेश हुए थे।

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