सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी सांसद मनोज तिवारी के खिलाफ दिल्ली के डिप्टी-सीएम मनीष सिसोदिया की मानहानि कार्यवाही पर रोक लगाई

Sparsh Upadhyay

27 Jan 2021 2:18 PM GMT

  • Supreme Court Stays Delhi Dy CM Manish Sisodias Defamation Proceedings Against BJP MP Manoj Tiwari

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री और AAP नेता मनीष सिसोदिया द्वारा भाजपा सांसद मनोज तिवारी के खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि मामले में कार्यवाही पर रोक लगा दी।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने तिवारी द्वारा दायर विशेष अवकाश याचिका, जिसमे दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी, पर नोटिस जारी करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया
    दरअसल दिल्ली उच्च न्यायालय ने सिसोदिया की मानहानि शिकायत में मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए समन आदेश को खारिज करने से इनकार कर दिया था।

    सिसोदिया द्वारा भाजपा नेताओं के खिलाफ 2019 में मानहानि का मुकदमा दायर किया गया था जिनमे संसद सदस्य मनोज तिवारी, हंस राज हंस और प्रवेश वर्मा, विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा, विजेंद्र गुप्ता, और प्रवक्ता हरीश खुराना के नाम शामिल हैं।

    कथित तौर पर इन सभी ने सिसौदिया के खिलाफ, दिल्ली सरकारी स्कूलों में कक्षाओं के निर्माण में लगभग 2,000 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार में शामिल होने के संबंध में अपमानजनक बयान दिए थे।

    28 नवंबर, 2019 को, अतिरिक्त सिटी मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, राउज़ एवेन्यू कोर्ट्स, नई दिल्ली ने तिवारी और अन्य आरोपियों को आपराधिक शिकायत पर समन जारी किया था।

    हालांकि तिवारी ने समन को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा ​​की एकल पीठ ने 17 दिसंबर, 2020 को उनकी याचिका को खारिज कर दिया।

    उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया विचार व्यक्त किया था कि बयानों और आरोपों ने मंत्री (सिसौदिया) की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है और तिवारी के डिफेन्स पर परीक्षण स्तर पर ही विचार किया जा सकता है।

    उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर एसएलपी में यह दलील दी गई थी कि मजिस्ट्रेट ने शिकायत का संज्ञान लेते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 199 (2) को नजरअंदाज कर दिया।

    दरअसल, धारा 199 (2) सीआरपीसी के अनुसार, किसी मंत्री के खिलाफ बयानों के संबंध में मानहानि की शिकायत का केवल सत्र न्यायालय द्वारा ही संज्ञान लिया जा सकता है, वह भी लोक अभियोजक द्वारा की गई शिकायत पर।

    हालाँकि, शिकायत सिसोदिया ने धारा 199 (6) सीआरपीसी के लिए दायर की थी, जो धारा किसी व्यक्ति के अधिकार को प्रभावित नहीं करती है, जिसके खिलाफ अपराध का आरोप लगाया गया है, और जो कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत कर सकता है।

    यह तर्क दिया गया कि एक लोक-सेवक द्वारा धारा 199 (6) का सहारा, धारा 199 (2) के तहत राज्य की मंजूरी की योजना का पालन किए बिना सीधे नहीं लिया जा सकता है। इसलिए, क्षेत्राधिकार के बिना सम्मन आदेश जारी किया गया था।

    आगे यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने शिकायत का संज्ञान लिया, जो कि एक सीडी पर आधारित थी जोकि साक्ष्य में ग्राह्य नहीं है, और जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी (4) के अनुसार प्रमाणित नहीं थी।

    तिवारी ने आगे कहा कि आरटीआई के जवाब के माध्यम से प्राप्त विभिन्न सार्वजनिक दस्तावेजों से सिसोदिया के खिलाफ आरोपों की पुष्टि की गई थी।

    इसलिए, इस तरह के बयानों को भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अनुसार एक लोक सेवक के आचरण के बारे में अच्छी आस्था और निष्पक्ष टिप्पणियों के अपवादों द्वारा कवर किया जाएगा।

    यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने अनुचित सबूतों के आधार पर शिकायत का संज्ञान लिया और उच्च न्यायालय ने भी समन आदेश के साथ हस्तक्षेप नहीं करते हुए त्रुटि की।

    आदेश पढ़ने / डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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