'यौन संबंधों की आदत' बलात्कार के मामलों में जमानत का आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

30 Nov 2019 5:26 AM GMT

  •  यौन संबंधों की आदत बलात्कार के मामलों में जमानत का आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

     यौन हिंसा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि उच्च न्यायालय के पास यौन उत्पीड़न की शिकार महिला को 'यौन संबंधों की आदत' होने का सुझाव देने वाला मेडिकल सबूत बलात्कार के मामले में आरोपी को जमानत देने के लिए कोई आधार नहीं है।

    मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें रिज़वान नामक आरोपी को बलात्कार के एक मामले में जमानत देने का आदेश दिया गया था। इसमें मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर कहा गया था कि अनपढ़ लड़की को यौन संबंधों की आदत थी, अभियुक्त का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और संभवत: यह एक सहमति का रिश्ता हो सकता है।

    मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि 3 अप्रैल, 2018 को रिज़वान को दी गई जमानत रद्द की जाती है। SC ने आरोपी को चार सप्ताह के भीतर मुजफ्फरनगर अदालत में आत्मसमर्पण करने के लिए कहा।

    दरअसल उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में दर्ज किया कि लड़की के पिता की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) अधिनियम की धारा 3/4 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। लड़की की जांच करने वाले डॉक्टरों ने रेडियोलॉजिकल परीक्षण के बाद बताया कि वह 16 साल की थी।

    मजिस्ट्रेट के समक्ष आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत अपने बयान में लड़की ने दावा किया कि उसके सिर पर देशी पिस्तौल रखने के बाद रिज़वान ने उसका यौन उत्पीड़न किया। उसने कहा कि जब उसने शोर मचाया तो उसके पिता मौके पर आए और फिर प्राथमिकी दर्ज कराई।

    हाईकोर्ट ने 3 अप्रैल, 2018 के आदेश में रिज़वान के वकील की प्रस्तुतियां दर्ज कीं, "मेडिकल जांच रिपोर्ट से पता चलता है कि अभियोजन पक्ष ने अपने व्यक्ति पर कोई आंतरिक या बाहरी चोट नहीं की..डॉक्टर द्वारा भी इस बात का विरोध किया गया कि उसे यौन संबंधों की आदत थी।"

    आरोपी ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज की गई क्योंकि लड़की के पिता ने घटना को देख लिया था। उन्होंने तर्क दिया कि लड़की की उम्र में दो साल का अंतर देना कानून के तहत अनुमति के रूप में यह अच्छी तरह से माना जा सकता है कि वह एक सहमति पक्ष थी। आरोपी 8 दिसंबर, 2017 से जेल में था।

    हाईकोर्ट ने "अपराध की प्रकृति, सबूत, अभियुक्त के इतिहास" को ध्यान में रखा और कहा कि यह जमानत देने के लिए एक उपयुक्त मामला था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के आदेश को "सेक्स की आदत"

    के आधार पर माना और रिज़वान को दी गई जमानत को रद्द कर दिया। जमानत देने के लिए आधार के रूप में 'सेक्स की आदत' की अवहेलना करके सुप्रीम कोर्ट पहले भी ये रुख जता चुका है।

    1991 में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को उलट दिया था जिसमें एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ सेक्स वर्कर की शिकायत पर वजन देने से इनकार कर दिया था और उसकी बहाली का आदेश दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "केवल इसलिए कि वह आसानी से उपलब्ध महिला है, उसके सबूतों को पानी में नहीं फेंका जा सकता है।"

    महाराष्ट्र राज्य व अन्य बनाम मधुकर नारायण मर्दीकर [1991 (1) SCC 57] में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिला अपने जीवन के अंधेरे वाले पक्ष को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त ईमानदार थी। यहां तक ​​कि आसानी से प्राप्त होने वाली महिला भी निजता की हकदार है और कोई भी उसकी पसंद के अनुसार उसकी निजता पर आक्रमण नहीं कर सकता है। इसलिए यह भी किसी भी और हर व्यक्ति के लिए खुला नहीं है कि वह अपनी इच्छा के अनुसार उसकी निजता का उल्लंघन करे। यदि कोई उसकी इच्छा के विरुद्ध उल्लंघन करने का प्रयास करती है तो वह अपने व्यक्तित्व की रक्षा करने की हकदार है। वह कानून द्वारा अपनीसुरक्षा के लिए समान रूप से हकदार है।

    

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