सीआरपीसी की धारा 207: अगर दस्तावेज काफी अधिक नहीं हैं, तो मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट के साथ सौंपे गए किसी भी दस्तावेज को रोक नहीं सकता : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
1 Dec 2019 11:54 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जांच अधिकारी ने जो दस्तावेज सौंपे हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट के साथ उनमें से किसी को अदालत के समक्ष रखने से रोक नहीं सकता। ऐसा वह उसी स्थिति में कर सकता है जब रिपोर्ट काफी विस्तृत या मोटी हो।
अदालत ने कहा कि रिपोर्ट या दस्तावेजों के काफी ज्यादा मोटा होने की स्थिति में आरोपी को इन दस्तावेजों को खुद या अपने वकील के माध्यम से देखने की इजाजत दी जा सकती है। पी गोपालकृष्णन @दिलीप बनाम केरल राज्य मामले में अपील पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा।
पीठ केरल के फिल्म अभिनेता दिलीप ने फरवरी 2017 में केरल की अभिनेत्री के खिलाफ यौन अपराध के मामले में विजुअल्स की कॉपी वापस करने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि किसी अपराध से संबंधित मेमरी कार्ड के कंटेंट एक 'दस्तावेज'है कोई 'मटेरियल ऑब्जेक्ट' नहीं है।
अपने फैसले में अदालत ने सीआरपीसी की धारा 207 के स्कोप पर गौर किया जिसमें आरोपी को पुलिस रिपोर्ट की कॉपी और अन्य दस्तावेज देने के प्रावधानों का जिक्र है। इस स्तर पर धारा 207 के तहत मजिस्ट्रेट का काम प्रशासनिक कार्य इस तरह है जिसके तहत उसको यह देखना होता है कि इस धारा के प्रावधानों का पालन किया गया है की नहीं, पीठ ने कहा. जहां तक बयानों की बात है, प्रथम प्रावधान मजिस्ट्रेट को यह इजाजत देता है कि क्लाज़-iii में कही गई किसी भी बात की जानकारी आरोपी को देने से रोक सकता है, अगर इसके बारे में धारा 173 की उपधारा 6 के तहत जांच अधिकारी ने इसके बारे में पर्याप्त कारण दिए हैं।
जहां तक जांच अधिकारी द्वारा पुलिस रिपोर्ट सहित अन्य दस्तावेजों को पेश करने की बात है, मजिस्ट्रेट सिर्फ उन्हीं दस्तावेजों को पेश होने से रोक सकता है जिन्हें क्लाज़ (v)के तहत उसके हिसाब से काफी मोटा (वोलुमिनस) बताया गया है।
अदालत ने कहा,
"उस स्थिति में आरोपी को निजी रूप से या अदालत में उसकी पैरवी करने वाले अपने वकील की मदद से इसको देखने की इजाजत दी जा सकती है। दूसरे शब्दों में, सीआरपीसी 1973 की धारा 207 मजिस्ट्रेट को यह अधिकार नहीं देता कि वह किसी दस्तावेज को पेश किए जाने से रोके, जिसे जांच अधिकारी न पुलिस रिपोर्ट के साथ पेश किया है बशर्ते वह काफी वोलुमिनस न हो।
इसका मतलब यह हुआ कि इसके बावजूद कि जांच अधिकारी किसी दस्तावेज के बारे में नोट लिखा है, मजिस्ट्रेट ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि वह सीआरपीसी की धारा 173 की उपधारा 6 के तहत ही ऐसा कर सकता है।
वर्तमान मामले में यद्यपि अदालत ने कहा कि मेमरी कार्ड के कंटेंट को दस्तावेज माना जाना चाहिए, लेकिन उसने कहा कि अगर इसमें शिकायतकर्ता/गवाह की निजता का मामला जैसा कोई मामला है तो अदालत का आरोपी को इसको देखने की अनुमति देना जायज है ताकि उसके वकील सुनवाई के दौरान प्रभावी बचाव कर सकें। "