सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा

LiveLaw News Network

3 Oct 2019 11:24 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च, 2018 के फैसले को पलटने के उद्देश्य से संसद ने ये संशोधन कर कड़े प्रावधानों को फिर से लागू कर दिया था।

    यह संकेत देते हुए कि संशोधनों को बरकरार रखा जाएगा, जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि न्यायालय इस अधिनियम को कमजोर नहीं करेगा।

    विशेष रूप से जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने ही सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की 2 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा मार्च 20, 2018 के फैसले पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका की अनुमति देकर शर्तों को वापस ले लिया था।

    पीठ का फैसला

    पीठ ने कहा कि डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य में इस न्यायालय द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों के प्रयोग कर जारी किए गए दिशा-निर्देश, संविधान के अनुच्छेद 15 (4) के तहत समाज के दबे-कुचले वर्गों के पक्ष में सुरक्षात्मक भेदभाव की अवधारणा के खिलाफ हैं और निर्धारित मापदंडों के भीतर भी असंगत हैं।

    SC-ST वर्ग के शिकायतकर्ताओं को शक की निगाह से देखना अनुचित

    जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एम. आर. शाह और जस्टिस बी. आर. गवई की पीठ ने कहा था कि इस बात की कोई धारणा नहीं हो सकती है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य वर्ग के रूप में कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग कर सकते हैं। यह सभी मानवीय गरिमा के खिलाफ होगा कि वे सभी को झूठा मानें और हर शिकायतकर्ता की शिकायत को शक की निगाह से देखें।

    वकील पृथ्वीराज चौहान, प्रिया शर्मा और कुछ अन्य लोगों द्वारा दायर याचिकाओं में प्रार्थना की गई है कि वर्ष 1989 के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में वर्ष 2018 में हुआ संशोधन, अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन है और ये संविधान की बुनियादी संरचना के साथ छेड़छाड़ है।

    संशोधन के माध्यम से वर्ष 1989 के कानून में जोड़े गए नए प्रावधान धारा 18A के लागू होने से फिर दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी।

    क्या है धारा 18A

    इस संशोधन के जरिये लायी गयी एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून की धारा 18A यह कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है।

    इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी की धारा 438) का लाभ भी नहीं मिलेगा। यानि उसे अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। संशोधित कानून में यह साफ कहा गया है कि इस कानून के उल्लंघन पर कानून में दी गई प्रक्रिया का ही पालन होगा और अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।

    याचिकाकर्ताओं का यह तर्क है कि संशोधन को "राजनीतिक दबाव" के चलते लागू किया गया है और अग्रिम जमानत के प्रावधान को हटाना, मनमाना और अन्यायपूर्ण है।

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