सुप्रीम कोर्ट ने निजी संस्थाओं को अनुमति देने वाले आधार संशोधन अधिनियम पर केंद्र और UIDAI को नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

22 Nov 2019 8:40 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने निजी संस्थाओं को अनुमति देने वाले आधार संशोधन अधिनियम पर केंद्र और UIDAI को नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आधार और अन्य कानून (संशोधन) अधिनियम 2019 की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को नोटिस जारी किया है जिसमें निजी संस्थाओं को नागरिकों के आधार डेटा का उपयोग करने की अनुमति दी गई है। कोर्ट ने इस मामले को पुरानी याचिका के साथ जोड़ दिया है।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ पूर्व सैनिक एसजी वोम्बाटकेरे और कार्यकर्ता बेजवाडा विल्सन द्वारा संयुक्त रूप से दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें कहा गया है कि ये संशोधन पार्टियों को अनुमति देता है कि वे आधार ईको-सिस्टम का उपयोग कर सकें और इससे नागरिकों की राज्य और निजी निगरानी को सक्षम किया गया है। किए गए प्रावधान व्यक्तिगत और संवेदनशील जानकारी के वाणिज्यिक शोषण की अनुमति देते हैं, जो केवल राज्य के उद्देश्यों के लिए एकत्र और संग्रहीत किया गया है, याचिकाकर्ताओं ने विरोध करते हुए कहा है।

    सबसे पहले, यह तर्क दिया गया है कि संशोधन के जरिए आधार अधिनियम, 2016 के प्रावधानों को फिर से लागू कर दिया गया है जिन्हें विशेष रूप से शीर्ष अदालत के 2018 के संविधान पीठ के फैसले में असंवैधानिक घोषित किया गया था।

    26 सितंबर, 2018 को दिए गए फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम की धारा 57 जिसमें निजी संस्थाओं द्वारा आधार डेटा का उपयोग पहचान के प्रमाणीकरण के लिए करने की अनुमति दी गई थी, को उस हद तक रद्द दिया था कि कि यह निजता के अधिकार के उल्लंघन के समान है।

    दूसरे यह माना गया है कि आधार डेटाबेस में अखंडता का अभाव है क्योंकि नामांकन के समय अपलोड किए गए किसी भी डेटा को किसी के द्वारा सत्यापित नहीं किया जाता है। इस तरह के डेटाबेस को धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के अध्याय IV के तहत प्रदान की जाने वाली सेवाओं के मौजूदा डेटाबेस और भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 4 के तहत देने की अनुमति देना, असत्यापित डेटा को अनुमति देना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।

    तीसरा कहा गया है कि संशोधन 'ऑफ़लाइन सत्यापन 'की एक नई प्रणाली बनाता है जो यूआईडीएआई को बायपास करने के लिए बनाया गया है।

    भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1855 में संशोधन

    दरअसल मानसून सत्र में संसद द्वारा पिछले जुलाई में संशोधन अधिनियम पारित किया गया था। मोबाइल कनेक्शन प्राप्त करने के लिए पहचान सत्यापन के लिए आधार संख्या के "स्वैच्छिक उपयोग" के लिए प्रदान करने के लिए भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1855 में संशोधन किया गया है।

    बैंक खातों को खोलने से पहले बैंकों द्वारा पहचान सत्यापन के लिए आधार के "स्वैच्छिक उपयोग" की अनुमति देने के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम को भी संशोधित किया गया है।

    गौरतलब है कि दूरसंचार विभाग द्वारा मार्च 23,2017 को जारी किए गए परिपत्र में आधार के साथ मोबाइल नंबरों को अनिवार्य रूप से जोड़ना अनिवार्य किया गया था, इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि परिपत्र में कोई वैधानिक समर्थन नहीं है।

    2017 में सरकार द्वारा आधार के साथ बैंक खातों को जोड़ने को अनिवार्य करते हुए PMLA (रिकॉर्ड्स का रख-रखाव) (दूसरा संशोधन) नियम 2018 को भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि मोबाइल कनेक्शन और बैंक खातों के लिए आधार केवाईसी का अनिवार्य उपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    ये संशोधन पहचान के उद्देश्यों के लिए आधार संख्या के ऑफ़लाइन सत्यापन की अनुमति देता है। मूल अधिनियम के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण के बिना आधार नंबर का उपयोग पहचान को सत्यापित करने के लिए नहीं किया जा सकता है।

    याचिका की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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