एनडीपीएस अधिनियम - अभियुक्त के पास से ज़ब्त वर्जित सामग्री अदालत में पेश न करना भी बरी करने का आधार नहीं हो सकता,पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

29 Sep 2019 5:14 AM GMT

  • एनडीपीएस अधिनियम - अभियुक्त के पास से ज़ब्त वर्जित सामग्री अदालत में पेश न करना भी बरी करने का आधार  नहीं हो सकता,पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    ‘‘यदि वर्जित सामग्री की जब्ती अन्य तरीकों से रिकॉर्ड पर साबित हो जाती है और इस बात में कोई संदेह या विवाद शेष नहीं रहता है तो पूरी वर्जित सामग्री को न्यायालय के समक्ष रखने की आवश्यकता नहीं है।’’

    सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि वर्जित सामग्री को अदालत में पेश न करना भी अभियुक्त को बरी करने का आधार नहीं है, यदि इसकी ज़ब्ती अन्य तरीके से सिद्ध हो जाती है।

    इस आधार पर जस्टिस यू.यू ललित और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटैंसेस एक्ट 1985 के तहत एक आरोपी को बरी कर दिया था। राजस्थान राज्य बनाम साही राम मामले में न्यायमूर्ति ललित द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि-

    ''यदि सामग्री की जब्ती अन्य तरीकों से रिकॉर्ड पर साबित हो जाती है तो इस बात में कोई संदेह या विवाद नहीं है कि पूरे वर्जित सामग्री को न्यायालय के समक्ष रखने की आवश्यकता नहीं है। यदि जब्ती किसी अन्य वजह से संदेह में नहीं है तो इस बात की भी कोई आवश्यकता नहीं है कि न्यायालय के समक्ष पूरी सामग्री प्रस्तुत की जाए।''

    इस मामले में आरोप था कि आरोपी व्यक्तियों के पास से 223 किलोग्राम वजन के सात बैग मिले थे, जिनमें पोपी स्ट्रा था। निचली अदालत ने आरोपी को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8 और 15 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया था।

    मामले में दायर अपील में हाईकोर्ट ने इस आधार पर सजा को रद्द कर दिया था कि मामले में पूरी वर्जित सामग्री को पेश न करना केस लिए घातक था। केवल नमूनों वाले दो पैकेट और 2.5 किलोग्राम पोपी स्ट्रा का एक बैग कोर्ट में पेश किया गया था, जबकि संपूर्ण वर्जित सामग्री को अदालत में पेश नहीं किया गया।

    हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए, राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की। प्रतिवादी अभियुक्त ने हाईकोर्ट के फैसले के पक्ष में ''विजय पांडे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य'' और ''विजय जैन बनाम मध्य प्रदेश राज्य'','' जितेन्द्र बनाम मध्य प्रदेश राज्य'' आदि मामलों में दिए गए फैसलों का हवाला दिया।

    सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि माना कि कोर्ट के समक्ष संपूर्ण वर्जित सामग्री को पेश न करने से अभियुक्त को बरी करने का लाभ नहीं दिया जा सकता।

    पीठ ने अपने फैसले में कहा कि-

    किसी मामले में सामग्री भारी हो सकती है, उदाहरण के तौर पर वर्तमान मामले में, जब 7 थैलों का वजन 223 किलोग्राम था, ऐसे में न तो पूरी सामग्री को कोर्ट के समक्ष पेश करना संभव है और न ही व्यवहारिक।

    फैसले में कहा गया है कि-

    ''यदि जब्ती को किसी अन्य तरीके से सिद्ध कर दिया जाता है तो सिर्फ यह साबित करने की आवश्यकता रह जाती है कि जांच के लिए नमूने वर्जित सामग्री से लिए गए थे और उनकी सील बरकरार थी। वहीं जब इन नमूनों को फॉरेंसिक निरीक्षण के लिए दिया गया था, तब भी इनकी सील बरकरार थी। वहीं फॉरेंसिक विशेषज्ञों की रिपोर्ट में वर्जित सामग्री की शक्ति, प्रकृति और गुणवत्ता को दिखाया गया हो और इस तरह की सामग्री के आधार पर आवश्यक तत्व अपराध को साबित करते हों।''

    इस तर्क पर पीठ ने अपील को स्वीकार कर लिया है और निचली अदालत द्वारा दी गई सजा के फैसले को सही ठहराया है।



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