MP में चार साल की बच्ची से रेप मामले में सजायाफ्ता शिक्षक की मौत की सजा पर SC ने लगाई रोक, 2 मार्च को होनी थी फांसी

Live Law Hindi

16 Feb 2019 2:13 PM GMT

  • MP में चार साल की बच्ची से   रेप मामले में सजायाफ्ता शिक्षक की मौत की सजा पर SC ने लगाई रोक, 2 मार्च को होनी थी फांसी

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश के सतना जिले में पिछले साल जून में एक 4 साल की बच्ची से रेप करने वाले एक स्कूल शिक्षक की मौत की सजा पर रोक लगा दी है।

    मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने याचिकाकर्ता महेंद्र सिंह गोंड के खिलाफ 4 फरवरी को सतना अदालत द्वारा जारी "डेथ वारंट" पर रोक लगा दी। इसके तहत जबलपुर जेल में अभियुक्त को 2 मार्च को फांसी देने का वारंट जारी किया गया था।

    पीठ ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ शिक्षक की ओर से दायर अपील पर सुनवाई करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मौत की सजा की पुष्टि पर रोक लगा दी। ट्रायल कोर्ट ने अपील खारिज करने के हाईकोर्ट के फैसले के 8 दिनों के भीतर डेथ वारंट जारी कर दिया था।

    अभियोजन का मामला यह था कि लड़की पर इतनी क्रूरता से हमला किया गया था कि उसे अपनी आंतों की जांच एवं पुनर्स्थापना करवाने के लिए एम्स-दिल्ली में महीनों बिताने पड़े। उसके साथ रेप करने के बाद अभियुक्त शिक्षक ने उसे मरा हुआ समझकर जंगल में फेंक दिया था। राज्य सरकार ने तुरंत मामले में हस्तक्षेप किया और उसे दिल्ली ले जाने के लिए एयरलिफ्ट किया।

    मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 25 जनवरी को ट्रायल कोर्ट द्वारा गोंड को दी गई मौत की सजा की पुष्टि की थी। ट्रायल कोर्ट ने स्कूल शिक्षक को 19 सितंबर, 2018 को दोषी ठहराया था और गोंड को हाल ही में पेश भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (ए) (बी) (12 साल से कम उम्र की नाबालिग से बलात्कार) के तहत मौत की सजा सुनाई थी।

    यह संभवत: पहला ऐसा मामला है जहां एक उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (एबी) के तहत मौत की सजा की पुष्टि की, जिसमें 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कारियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान है। यह प्रावधान पिछले साल आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2018 के माध्यम से भारतीय दंड संहिता (IPC) में जोड़ा गया था।

    शिक्षक ने अपनी अपील में दावा किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ परिस्थितियों की एक पूर्ण और अटूट कड़ी स्थापित करने में विफल रहने के बावजूद सजा को बरकरार रखा गया।उसने कहा कि यह ध्यान दिया जाना जरूरी है कि अभियोजन पक्ष ने अपनी जिरह में कहा कि उस समय अंधेरा हो गया था जब बच्ची को ले जाया गया था और उसने याचिकाकर्ता का चेहरा नहीं देखा था। यह बताना बेहद जरूरी है कि याचिकाकर्ता और उसके वकील को जबलपुर सेंट्रल जेल के जेल अधिकारियों ने 2 फरवरी को सूचित किया कि उसके खिलाफ डेथ वारंट जारी किया गया है और उसकी फांसी की तारीख 2 मार्च निर्धारित है।

    यह नोट किया जाना प्रासंगिक है कि यह डेथ वारंट उच्च न्यायालय के आदेश के निर्णय की तारीख से केवल 8 दिनों के बाद जारी किया गया। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने के लिए 60 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए समय भी नहीं दिया गया। वारंट जारी करने के सेशन जज की यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के जनादेश के विपरीत है।

    Next Story