बीमा कंपनी देर होने को उपभोक्ता फ़ोरम के सामने पहली सुनवाई में इंकार करने का आधार नहीं बना सकती : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
23 Dec 2019 12:17 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बीमा कंपनी पहली ही बार इंकार करने के लिए देरी को आधार नहीं बना सकता अगर उसने सूचनार्थ भेजे गए पत्र में इंकार को विशेष रूप से आधार बनाने की बात नहीं कही है।
सौराष्ट्र केमिकल्ज़ लिमिटेड बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को दो मामलों पर ग़ौर करना था। पहला, प्रतिवादी बीमाकर्ता ने सर्वेयर की नियुक्ति कर सूचना देने और दावे का दावा करने में में देरी को माफ़ करने की बात कही थी कि नहीं। दूसरा, सूचना संबंधित पत्र में देरी के बारे में किसी भी तरह का ज़िक्र नहीं करना जो कि पॉलिसी की आम शर्तों में से क्लाज़ 6(i) का उल्लंघन है, क्या इसे एनसीडीआरसी के समक्ष अपने बचाव के रूप में पेश कर सकती है।
गलाडा पावर एंड टेलीकम्यूनिकेशन लिमिटेड बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में यह कहा गया था कि चूंकि इंकार के पत्र में कहीं से भी देरी से सूचना का कोई ज़िक्र नहीं है, जैसा कि क्लाज़ 6(i) में कहा गया है तो इसे दावे में अपने बचाव के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा कि सोनेल क्लॉक्स एंड गिफ़्ट्स लिमिटेड बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने गलाडा पावर्ज़ को तथ्यों के आधार पर विशिष्ट माना और कहा कि क़ानून के तहत सर्वेयर की नियुक्ति को बीमा नीतियों की शर्तों और स्थितियों में छूट नहीं माना जा सकता, इसलिए दूसरे मुद्दे के बारे में पीठ ने कहा,
"सोनेल के मामले में इस अदालत इस बात पर ग़ौर नहीं कर पाई कि बीमा कंपनी उपभोक्ता मंच के समक्ष पहली बार देरी को इंकार के रूप में पेश कर सकती है, इसलिए हमारी राय में गलाडा मामले में दूसरे मुद्दे को लेकर जिस क़ानून का निर्धारण हुआ वह क़ायम है। यह अब तय बात है कि कोई बीमा कंपनी इंकार के पत्र की सीमा से आगे नहीं जा सकती। अगर बीमाकर्ता ने देरी के बारे में सूचना पत्र में ज़िक्र नहीं किया है वह इसे इंकार के पत्र में विशिष्ट आधार के रूप में प्रयोग करेगा, तो एनसीडीआरसी के समक्ष उपभोक्ता शिकायत की सुनवाई में वह इसका प्रयोग नहीं कर सकता।"
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें