शिकायतकर्ता की जेठानी के मामा नहीं हैं पति के रिश्तेदार, दिल्ली हाईकोर्ट ने बताया 498ए के तहत पति के रिश्तेदार शब्द का मतलब

LiveLaw News Network

9 Sep 2019 4:17 AM GMT

  • शिकायतकर्ता की जेठानी के मामा नहीं हैं पति के रिश्तेदार, दिल्ली हाईकोर्ट ने बताया 498ए के तहत पति के रिश्तेदार शब्द का मतलब

    दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ किया है कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत "पति के रिश्तेदार" शब्द का मतलब पति के उन रिश्तेदारों से है, जिनसे उसका रिश्ता खून के रिश्ते से, शादी से या गोद लेने से जुड़ा है। इसमें शिकायकर्ता के पति के बड़े भाई की पत्नी के मामा आदि को शामिल नहीं किया जा सकता।

    क्या था मामला

    याचिकाकर्ता अख्तर मलिक व हनीफ मलिक ने अपने वकील सुनील शर्मा के जरिए इस मामले में हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी व दायर आरोप पत्र को खारिज करने की मांग की थी। इनके खिलाफ निचली अदालत के समक्ष आईपीसी की धारा 498ए के तहत आरोप पत्र दायर किया गया था। इस मामले में दूर की रिश्तेदार रूबी नामक महिला शिकायतकर्ता है।

    आईपीसी की धारा 498ए के अनुसार पति या पति के कोई भी रिश्तेदार, जो महिला को प्रताड़ित करते है, उन्हें तीन साल तक की सजा दी जा सकती है और साथ में जुर्माना भी किया जा सकता है।

    दलीलें

    शिकायतकर्ता ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ कई आरोप लगाने के अलावा यह भी आरोप लगाया था कि उसकी जेठानी याचिकाकर्ताओं के नाम से उसे धमकाती थी। आरोप है कि उसकी जेठानी कहती थी कि याचिकाकर्ता उसके पिता का जीना दूभर कर देंगे और उसे किसी झूठे केस में फंसवा देंगे। शिकायतकर्ता ने अपने पति की दूसरी शादी का आरोप भी याचिकाकर्ताओं पर ही लगाया था और कहा था कि याचिकाकर्ता उसे पति के घर से निकालने का दबाव बना रहे थे ताकि नई दुल्हन आ सके।

    याचिकाकर्ता मामले की शिकायतकर्ता की जेठानी के मामा है। "अख्तर मलिक एंड अदर्स बनाम दिल्ली सरकार'' नामक इस मामले में याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील दी गई कि उनको शिकायतकर्ता की जेठानी के रिश्तेदार माना जा सकता है, परंतु यह कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि वह शिकायतकर्ता के पति के भी रिश्तेदार हैं।

    दलील दी गई कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत "पति के रिश्तेदार'' शब्द का मतलब यह नहीं है कि इसमें वह सभी शामिल है ,जो मामले के मुख्य पात्रों से दूर से भी जुड़े हो। उनको गलत तरीके से फंसाया गया है।

    उन्होंने यह भी दलील दी कि वह किसी भी तरीके से खून के रिश्ते से,शादी से या गोद लेने से,शिकायकर्ता के पति से नहीं जुड़े है। इसके लिए यू.सुवेथा बनाम राज्य, इंस्पेक्टर ऑफ़ पुलिस एंड अन्य के जरिए (2009) 3 एससीसी सीआरएल.36 व अन्य कई फैसलों का हवाला भी दिया गया जिनमें सुप्रीम कोर्ट मान चुका है कि 'रिश्तेदार' शब्द का अर्थ कानून की प्रकृति पर निर्भर करेगा, जिसमें सैद्धांतिक तौर पर खून से जुड़े रिश्ते,शादी या गोद लेने से जुड़े रिश्तों को शामिल किया गया है।''

    कोर्ट का फैसला या निष्कर्ष

    जस्टिस अनु मल्होत्रा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को उचित माना। पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 498ए एक दंडात्मक प्रावधान था, जिसमें किसी भी वैधानिक परिभाषा के अभाव में 'रिश्तेदार' शब्द की सख्त व्याख्या दी जानी चाहिए और इसे आम समझ के अनुसार अर्थ सौंपा जाना चाहिए था। इस प्रकार 'रिश्तेदार' शब्द में खून से जुड़े रिश्ते, शादी या गोद लेने से जुड़े व्यक्तियों को ही शामिल किया गया है। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही मान चुकी है।

    उपरोक्त विचार को देखते हुए पीठ ने माना कि- "मामले के याचिकाकर्ता जेठानी के मामा है, जो कि शिकायकर्ता के पति के बड़े भाई की पत्नी है। ऐसे में वह दोनों किसी भी तरह से शिकायतकर्ता के पति के 'रिश्तेदार' की परिभाषा के तहत नहीं आते है,चूंकि न तो उनका रिश्ता खून का है,ना शादी से जुड़ा है और न ही गोद लेने से जुड़ा है।''

    राज्य सरकार की तरफ से एपीपी रघुवेंद्र वर्मा पेश हुए थे।



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