दिल्ली हाई कोर्ट ने सांकेतिक भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की PIL खारिज की

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9 July 2019 2:00 PM GMT

  • दिल्ली हाई कोर्ट ने सांकेतिक भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की PIL खारिज की

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा ​​है कि भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) को मान्यता, संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए दिव्यांग अधिकार अधिनियम (पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज़ एक्ट) 2016 के तहत पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं। हालांकि अदालत ने सरकार को ISL को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने का निर्देश देने के याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया।

    दरअसल याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया था कि भारतीय सांकेतिक भाषा के बारे में अपर्याप्त जागरूकता के कारण, श्रवण दिव्यांग व्यक्तियों को भारी असुविधा होती है और इससे उनके साथ भेदभाव होता है। स्पष्ट सरकारी मान्यता की कमी भाषा के प्रचार और संरक्षण को प्रभावित करती है। इसलिए सरकार को भारतीय सांकेतिक भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए निर्देश दिया जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति पटेल और न्यायमूर्ति शंकर की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे का उल्लेख करते हुए कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए वर्ष 2016 के अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत पर्याप्त प्रावधान हैं।

    उदाहरण के लिए, धारा 16 शिक्षा के उद्देश्य के लिए भारतीय सांकेतिक भाषा को संरक्षित और बढ़ावा देती है जबकि धारा 42 में सांकेतिक भाषा में इलेक्ट्रॉनिक जानकारी तक पहुंच सुनिश्चित की गई है। अदालत ने यह भी कहा कि भाषा को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा भारतीय सांकेतिक भाषा प्रशिक्षण और अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई है। इसलिए अदालत ने सरकार को उक्त भाषा को बढ़ावा देने के लिए कोई अन्य कदम उठाने के निर्देश देने में कोई कारण नहीं देखा। भारतीय सांकेतिक भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने के सवाल पर अदालत ने कहा कि यह एक ऐसा फैसला है जिसे सरकार द्वारा लिया जाना है न कि इस न्यायालय द्वारा।

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