गोरखालैंड मामला : सुप्रीम कोर्ट ने GJM नेताओं को कलकत्ता हाई कोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी, चार दिनों के लिए गिरफ्तारी से सरंक्षण

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3 April 2019 3:02 PM GMT

  • गोरखालैंड मामला : सुप्रीम कोर्ट ने GJM नेताओं को कलकत्ता हाई कोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी, चार दिनों के लिए गिरफ्तारी से सरंक्षण

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के नेताओं-बिमल गुरुंग और रोशन गिरी को यह निर्देश दिया कि वो अपनी अग्रिम जमानत के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय में 4 दिनों के भीतर याचिका दाखिल करें। उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं।

    जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एम. एम. शांतनगौदर और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने यह भी कहा कि 10 दिसंबर, 2018 के उनके पहले के अंतरिम आदेश में कहा गया है कि राज्य द्वारा जीजेएम नेताओं के खिलाफ एनआईए से संबंधित दर्ज मामलों में कठोर कार्रवाई की नहीं जाएगी, वो अगले आदेश तक जारी रहेगा।

    पश्चिम बंगाल पुलिस अब नहीं कर सकेगी गिरफ्तार
    बुधवार को दिए फैसले का प्रभाव ये रहेगा कि पश्चिम बंगाल पुलिस कम से कम 4 दिन तक उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकेगी। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत की अर्जी का निपटारा कानून के अनुसार शीघ्रता से किया जाए।

    शीर्ष अदालत ने उन याचिकाओं का निपटारा करते हुए ये निर्देश पारित किया जिनमें गोरखा जनमुक्ति मोर्चा नेताओं ने कहा था कि उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के कारण आगामी आम चुनाव में भाग लेने से उन्हें रोका जा रहा है और उन्हें डर है कि अगर वे पश्चिम बंगाल राज्य में प्रवेश करेंगे तो वे गिरफ्तार कर लिए जाएंगे।

    याचिकाकर्ता का दावा, आम चुनाव के मद्देनजर की गई गई कार्यवाही
    सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि बिमल गुरुंग और रोशन गिरी के खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज हैं और उन्हें आगामी आम चुनाव में प्रभावी रूप से भाग लेने से रोका जा रहा है। ये मामले राजनीतिक प्रतिशोध और उत्पीड़न के लिए दर्ज किए गए हैं।ऐसे में याचिकाकर्ताओं को अंतरिम सरंक्षण मिलना चाहिए ताकि वो चुनाव प्रक्रिया में भाग ले सकें और कानून के अनुसार अग्रिम जमानत के लिए उपयुक्त न्यायालय का रुख कर सकें।

    राज्य सरकार ने किया अग्रिम जमानत का विरोध
    वहीं राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने प्रस्तुत किया कि यह एफआईआर गंभीर हैं और इस तरीके से उनको अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। दोनों को सक्षम न्यायालय के समक्ष उपाय करने के लिए जरूरत से ज्यादा समय उपलब्ध कराया गया। भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उन्हें अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।

    याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत के लिए जा सकते हैं उच्च न्यायालय
    पीठ ने फैसले में कहा कि केस में अजीबोगरीब तथ्य और मामले की परिस्थिति के अनुसार याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत के लिए कानून के अनुसार उच्च न्यायालय से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं। पीठ ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया कि वो अग्रिम जमानत के लिए 4 दिनों के भीतर दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई कर कानून के अनुसार उन्हें निपटाए।
    पीठ ने कहा, "हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमने इस मामले की योग्यता पर अपनी कोई राय नहीं व्यक्त की है। अंतरिम राहत का निस्तारण हमारे द्वारा दिए गए 10.12.2018 (एनआईए मामलों के संबंध में) के अंतरिम आदेश अगले आदेश तक जारी रहेंगे।"

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