" मुझे भी जानने का हक है" : CJI के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला ने पैनल से मांगी रिपोर्ट की प्रति

Sukriti

7 May 2019 3:41 PM GMT

  •  मुझे भी जानने का हक है : CJI के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला ने पैनल से मांगी रिपोर्ट की प्रति

    भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी ने न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े पैनल द्वारा CJI को क्लीन चिट देने पर "हैरानी" व्यक्त की है। पैनल द्वारा यह कहा गया है कि कथित रूप से पीड़ित महिला की शिकायत में कोई सबूत नहीं मिला है।

    "रिपोर्ट देखने का है अधिकार"

    जांच समिति को मंगलवार को लिखे गए एक पत्र में, जिसमें 2 महिला जज न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं, जांच रिपोर्ट की प्रति मांगते हुए कहा गया है कि उन्हें इस रिपोर्ट तक पहुंचने का अधिकार है।

    पत्र में कहा गया है कि पीड़ित महिला ने विस्तृत हलफनामे, पर्याप्त सबूत और स्पष्ट बयानों में यौन उत्पीड़न के अपने अनुभव को दोहराया है और इसके बावजूद समिति को उसकी शिकायत और हलफनामे में "कोई पदार्थ नहीं" मिला है।

    जस्टिस अरुण मिश्रा को सौंपी गयी है रिपोर्ट

    दरअसल इन-हाउस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 5 मई 2019 को जस्टिस अरुण मिश्रा को इन-हाउस प्रक्रिया के अनुसार सौंपी है और इसकी एक प्रति CJI को भी भेजी है। गौरतलब है कि इन-हाउस कमेटी ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय की एक पूर्व कर्मचारी के शिकायत दिनांक 19.4.2019 में शामिल आरोपों में कोई पदार्थ नहीं पाया है।

    शिकायतकर्ता ने जताई हैरानी
    शिकायतकर्ता ने कहा, "मैं इस बात को लेकर हैरान हूं कि समिति की रिपोर्ट इस तथ्य के बावजूद मेरे खिलाफ आई है कि, मैं समिति के सामने उपस्थित न होने के लिए मजबूर हो गई क्योंकि समिति ने प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का भी पालन नहीं किया। शुरुआत से ही मुझे एक बाहरी व्यक्ति के रूप में माना गया है। मुझे प्रक्रिया के बारे में सूचित नहीं किया गया है, मुझे जांच की कार्यवाही के संबंध में मेरे मूल अधिकारों और दायित्वों के बारे में भी सूचित नहीं किया गया है।"

    उसने आगे कहा, "शुरू से ही समिति के कामकाज में पारदर्शिता की कमी रही है और मेरे लिए बार-बार बहुत पूर्वाग्रह पैदा किए जा रहे हैं। जबकि समिति से प्राप्त पहली नोटिस में और पहली सुनवाई में, समिति से बार-बार पूछने के बावजूद, मुझे इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं दी गई कि वर्तमान कार्यवाही इन-कैमरा कार्यवाही है या नहीं। हालांकि, इन-हाउस कार्यवाही नियमों का उपयोग अब मुझे और जनता को रिपोर्ट के अधिकार से वंचित करने के लिए किया जा रहा है।"

    प्रेस विज्ञप्ति में थी रिपोर्ट की गोपनीयता की बात
    SC के सेकेट्री जनरल के प्रेस नोट का हवाला देते हुए (जिसमें कहा गया था कि इन-हाउस पैनल की जांच रिपोर्ट को इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के कारण सार्वजनिक नहीं किया जाएगा), उसने कहा कि "प्रेस विज्ञप्ति से यह प्रकट होता है कि शिकायतकर्ता को भी रिपोर्ट की प्रति प्रदान नहीं की जाएगी।"

    "रिपोर्ट प्राप्त करने का है अधिकार"
    उसने कहा कि उसे रिपोर्ट प्राप्त करने का अधिकार है, इसके कारणों के साथ-साथ किसी भी गवाह, किसी अन्य व्यक्ति या समिति द्वारा विचार किए गए किसी भी अन्य सबूत की प्रतियों के साथ।

    इसके अलावा जैसा कि मीडिया द्वारा रिपोर्ट किया जा रहा है, यदि रिपोर्ट की प्रति CJI को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी जा रही है तो वह (पीड़ित महिला) भी एक प्रति की हकदार है।

    महिला ने कहा, "मुझे यह अजीब लगता है कि यौन उत्पीड़न के एक मामले में शिकायतकर्ता को रिपोर्ट की प्रति प्रदान नहीं की जाती जिसमें उसकी शिकायत को बिना सबूत के एवं निराधार पाया गया है।"

    "प्रति उपलब्ध न कराना है प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों का उल्लंघन"


    आगे उसने कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 की धारा 13 में यह प्रावधान है कि दोनों पक्षों को रिपोर्ट की प्रति प्राप्त करने का अधिकार है। शिकायतकर्ता को प्रति उपलब्ध नहीं कराना, उसकी शिकायत को निराधार ठहराना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन और न्याय का पूर्ण आघात है।
    "RTI के अंतर्गत ऐसी रिपोर्ट नागरिकों के लिए होनी चाहिए सुलभ"
    पत्र में यह भी सम्मानपूर्वक कहा गया है कि रिपोर्ट की सामग्री का खुलासा नहीं करने के लिए सेकेट्री जनरल द्वारा उद्धृत सूचना अधिकार अधिनियम के लागू होने से पहले दिया गया था। यहां तक ​​कि संपत्ति का खुलासा मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के फैसले के अनुसार, इस तरह की रिपोर्ट आरटीआई के तहत किसी भी नागरिक के लिए सुलभ होनी चाहिए।

    पूर्ण पीठ ने यह माना था कि यहां तक ​​कि न्यायाधीशों की संपत्ति की जानकारी भी किसी भी नागरिक को आरटीआई के तहत सुलभ होगी। इन परिस्थितियों में, उसने कहा, "मैं आपसे यह अनुरोध करती हूं कि कृपया मुझे रिपोर्ट की एक प्रति प्रदान करें क्योंकि मुझे यह जानने का अधिकार है कि कैसे, क्यों और किस आधार पर लार्डशिप ने मेरी शिकायत में 'कोई पदार्थ नहीं' पाया है।"

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