प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना याचिका : सुप्रीम कोर्ट अब जुलाई में करेगा AG की याचिका पर सुनवाई

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4 April 2019 8:46 AM GMT

  • प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना याचिका : सुप्रीम कोर्ट अब जुलाई में करेगा AG की याचिका पर सुनवाई

    अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल द्वारा वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ दाखिल अवमानना की याचिका पर अब जुलाई में सुनवाई होगी।

    न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने गुरुवार को होने वाली सुनवाई को उस वक्त टाल दिया जब पीठ को यह बताया गया कि अटॉर्नी जनरल और प्रशांत भूषण संविधान पीठ के समक्ष चल रही सुनवाई में व्यस्त हैं।

    प्रशांत भूषण ने ट्वीट को माना 'वास्तविक गलती'

    इससे पहले वकील प्रशांत भूषण ने 7 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्वीकार किया था कि उन्होंने ये ट्वीट करके "वास्तविक गलती" की है कि सरकार ने एम. नागेश्वर राव को सीबीआई के अंतरिम निदेशक के तौर पर नियुक्ति के लिए उच्चस्तरीय चयन समिति की बैठक के गढे़ हुए ब्यौरे को प्रस्तुत किया था।

    इसी दौरान अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था कि भूषण के बयान के मद्देनजर वह वकील के खिलाफ दायर अपनी अवमानना याचिका वापस लेना चाहेंगे। हालांकि भूषण ने बिना शर्त माफी मांगने से भी इनकार कर दिया था।

    पीठ ने कहा था कि वह इस मुद्दे पर विचार करेगी कि क्या कोई व्यक्ति जनता की राय को प्रभावित करने के लिए किसी उप-न्यायिक मामले में अदालत की आलोचना कर सकता है।

    सुनवाई से न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को अलग करने की मांग

    इस सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने वेणुगोपाल द्वारा दायर अवमानना याचिका पर न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को सुनवाई से अलग करने के लिए भी अर्जी दी थी लेकिन न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने इससे इनकार कर दिया। इस दौरान वेणुगोपाल ने अदालत को यह बताया था कि वह अपने पहले के बयान पर हैं कि वह भूषण को मामले में कोई सजा नहीं दिलाना चाहते और वो अपनी अर्जी वापस ले रहे हैं।

    लेकिन पीठ ने कहा था कि एक बार अदालत किसी मुद्दे पर संज्ञान ले लेती है तो फिर अदालत ही तय करती है कि केस की सुनवाई बंद हो या नहीं।

    क्या था यह पूरा मामला१

    दरअसल 6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ दायर उन याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था जिनमें कहा गया था कि अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को यह कहकर गुमराह किया है कि अंतरिम सीबीआई निदेशक एम. नागेश्वर राव की नियुक्ति को हाई पॉवर कमेटी ने मंजूरी दी थी।

    ये अवमानना याचिका अटार्नी जनरल और केंद्र सरकार ने दाखिल की हैं। पीठ ने इस बड़े मुद्दे पर विचार करने के लिए अपनी सहमति जताई थी कि जब मामला अदालत में लंबित हो तो वकील कैसे उस मामले पर टिप्पणी कर सकते हैं। अदालत में मौजूद प्रशांत भूषण ने नोटिस स्वीकार किया और अदालत को यह आश्वासन दिया कि वह 3 हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करेंगे।

    मामले की सुनवाई में AG एवं SG की दलीलों में था अंतर
    हालांकि इस सुनवाई में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल और AG की दलीलों में अंतर देखा गया था। एक तरफ जहां AG ने कहा कि वो अवमानना के तहत सजा नहीं चाहते तो दूसरी ओर SG ने कहा कि भूषण को अवमानना ​​के लिए दंडित किया जाए।

    हालांकि AG वेणुगोपाल ने यह जोर देकर कहा कि वह किसी सजा को लागू करने के लिए दबाव नहीं डाल रहे। अदालत को यह तय करना चाहिए कि एक वकील अदालत में लंबित किसी मामले में किस हद तक सार्वजनिक बयान दे सकता है।

    "क्या एक वकील को लंबित मामलों पर देना चाहिए सार्वजनिक बयान१", सुप्रीम कोर्ट
    पीठ ने तब इस मुद्दे पर AG से पूछा, "इस मुद्दे पर कोई कानून क्या है? हमें उप-न्यायिक मामले में वकीलों से क्या उम्मीद करनी चाहिए और क्या उप-न्यायिक मामले में टीवी बहस जैसी सार्वजनिक चर्चा हो सकती है?" पीठ ने कहा, "हम अदालती कार्यवाही पर मीडिया रिपोर्टिंग के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन एक मामले में शामिल वकीलों को लंबित मामले में सार्वजनिक बयान देने से बचना चाहिए।"

    न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, "हम एक बड़े मुद्दे पर हैं। इस मुद्दे को सुलझाने का समय अब आ गया है। यह देखा गया है कि कभी-कभी वकील मीडिया पर जाने के प्रलोभन को नियंत्रित नहीं कर पाते। पहले बार संस्थान की रक्षा कर रहा था लेकिन अब यह अलग है।"

    भूषण पर बैठक के गलत ब्यौरे देने का आरोप
    दरअसल AG ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना ​​याचिका दायर की है जिसमें कहा गया कि भूषण ने जानबूझकर सुनवाई के दौरान हाई पावर कमेटी की बैठक के ब्यौरे को गलत बताया जिससे उनकी ईमानदारी और निष्ठा पर सवाल उठे। इसके बाद केंद्र सरकार ने एक और अवमानना ​​याचिका में कहा कि सार्वजनिक मंच पर झूठे और गैर-जिम्मेदाराना आरोप लगाने वाले वकील पर दंडनीय कार्रवाई होनी चाहिए।

    भूषण के समर्थन में आये सामाजिक कार्यकर्ता
    इस बीच अरुणा रॉय, अरुंधति रॉय और शैलेश गांधी सहित 10 सामाजिक कार्यकर्ता भी शीर्ष अदालत में भूषण के समर्थन में सामने आए हैं। उन्होंने कहा है कि उनके खिलाफ शुरू की गई अवमानना ​​कार्यवाही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी सहित 5 वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा भी शीर्ष अदालत में एक अलग हस्तक्षेप अर्जी दाखिल की गई है।

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