सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को भी पुरुषों के साथ मस्जिद में नमाज अदा करने की याचिका पर नोटिस जारी किया

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16 April 2019 12:32 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को भी पुरुषों के साथ मस्जिद में नमाज अदा करने की याचिका पर नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया है जिसमें भारत में मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करने की प्रथाओं को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और 29 के उल्लंघन के लिए अवैध और असंवैधानिक घोषित किए जाने का अनुरोध किया गया है।

    महाराष्ट्र के एक मुस्लिम दंपत्ति की याचिका पर नोटिस
    जस्टिस एस. ए. बोबड़े और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने केंद्र सरकार, केंद्रीय वक्फ बोर्ड और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को नोटिस जारी किए हैं। महाराष्ट्र के एक मुस्लिम दंपति द्वारा दायर इस याचिका में सबरीमला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया है जिसमें मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु के महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को हटा दिया था।

    "सबरीमला फैसले के कारण इस याचिका को सुना जा रहा"
    मंगलवार को इस मामले पर विचार करते हुए पीठ में शामिल जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या नॉन स्टेट एक्टर या किसी दूसरे नागरिक के खिलाफ समानता का मौलिक अधिकार लागू किया जा सकता है। जस्टिस बोबड़े ने कहा, "एकमात्र कारण जिसके चलते हम आपको सुन सकते हैं, वह सबरीमला मामले में हमारे फैसले के कारण है।" पीठ ने विदेशों में मस्जिदों की प्रथा पर भी पूछताछ की।

    याचिकाकर्ता के आरोप एवं शिकायतें
    याचिकाकर्ताओं ने यह आरोप लगाया कि उन्होंने महिलाओं के लिए पुणे की मोहम्मदी जामा मस्जिद में प्रार्थना/नमाज की पेशकश करने की अनुमति के संबंध में एक पत्र लिखा था। लेकिन मस्जिद प्रशासन ने याचिकाकर्ता के अनुरोध का जवाब देते हुए कहा था कि पुणे और अन्य क्षेत्रों में मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश की कोई भी प्रथा की अनुमति नहीं है, फिर भी उन्होंने दाउद कजा और दारुलूम देववंद को पत्र लिखा है और वो याचिकाकर्ता के अनुरोध का जवाब देंगे।

    उक्त पत्र के जवाब में जामा मस्जिद, पुणे के इमाम ने लिखा था कि चूंकि ऐसी कोई अनुमति नहीं दी जा सकती और उन्हें मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश के बारे में निश्चित ज्ञान नहीं है, इसलिए उन्होंने याचिकाकर्ता के अनुरोध पर विचार करने के लिए उच्च अधिकारियों को लिखा है। उपरोक्त प्रतिक्रिया से दुखी होकर याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

    याचिकाकर्ता की ओर से दी गयी दलीलें
    याचिकाकर्ताओं के अनुसार महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का कृत्य शून्य और असंवैधानिक है, क्योंकि इस तरह की प्रथाएं न केवल एक व्यक्ति के रूप में एक महिला की बुनियादी गरिमा के लिए बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के तहत मूलभूत गारंटी की गारंटी का उल्लंघन करने वाली भी हैं।

    याचिका में कहा गया है कि कुरान पुरुष और महिला के बीच ऐसा कोई अंतर नहीं करता। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि पवित्र कुरान और पैगंबर मुहम्मद ने महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश करने और नमाज अदा करने का विरोध किया हो।

    याचिका में कहा गया है कि, "पुरुषों की तरह, महिलाओं को भी अपने विश्वास एवं आस्था के अनुसार पूजा की पेशकश करने का संवैधानिक अधिकार है। वर्तमान में महिलाओं को जमात-ए-इस्लामी और मुजाहिद संप्रदायों के तहत मस्जिदों में नमाज अदा करने की अनुमति है जबकि उन्हें प्रमुख सुन्नी गुट के तहत मस्जिद से रोक दिया जाता है।"

    यह प्रस्तुत किया गया है कि मस्जिदों में भी जहाँ महिलाओं को अनुमति दी जाती है, वहाँ पुरुषों और महिलाओं के लिए नमाज के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार और बाड़े हैं। इस प्रकार का एवं किसी भी प्रकार का लैंगिक भेदभाव नहीं होना चाहिए और मुस्लिम महिलाओं को सभी मस्जिदों में नमाज अदा करने की अनुमति देनी चाहिए।

    याचिका में ऐसा प्रस्तुत किया गया है कि पवित्र शहर मक्का में पूजा करने के लिए ऐसा कोई लैंगिक भेदभाव मौजूद नहीं है। पुरुष और महिला दोनों मिलकर काबा का चक्कर लगाते हैं। पैगंबर के समय में भी महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश की अनुमति थी।

    याचिका में खासतौर पर कहा गया है कि, "मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है क्योंकि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करते हुए मस्जिदों के मुख्य प्रार्थना कक्ष में प्रवेश करने और प्रार्थना करने की अनुमति नहीं है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक सुरक्षा के दायरे में अतिक्रमण है।"

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि मुसलमानों के लिए दुनिया की सबसे पवित्र मस्जिद महिलाओं और पुरुषों दोनों को गले लगाती है। "इसके अलावा, मक्का में मस्जिद-अल-हरम पर मुस्लिम समुदाय पूरी तरह से एकमत है। ये दुनिया में सभी मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र मस्जिद है और प्रत्येक सक्षम मुस्लिम को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार इसे देखने की आवश्यकता होती है। मस्जिद-मक्का में हर-हरम ने हमेशा दुनिया के हर हिस्से से मुस्लिम महिलाओं को इसमें प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित किया है। यह पुरुषों और महिलाओं के बीच ऐसा कोई भेदभाव नहीं करता है क्योंकि किसी भी तरह का भेदभाव कुरान का उल्लंघन करेगा," याचिकाकर्ताओं ने कहा है।

    सबरीमला मंदिर पर फैसले को बनाया गया है आधार
    दावे का समर्थन करने के लिए सबरीमला मामले में संविधान पीठ के फैसले को आधार बनाया गया है। याचिका में कहा गया, "महिलाओं को पूजा के अधिकार से वंचित करने के लिए धर्म को कवर के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और यह मानव गरिमा के खिलाफ भी है। महिलाओं पर प्रतिबंध गैर-धार्मिक कारणों से है और यह सदियों से चले आ रहे भेदभाव की गंभीर छाया है।"

    याचिकाकर्ताओं द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया है कि विधायिका सामान्य रूप से और विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं में महिलाओं की गरिमा और समानता सुनिश्चित करने में विफल रही है। इसलिए यह अदालत यूनिफार्म सिविल कोड को लागू करने के निर्देश जारी करे।

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