पुलवामा हमले के बाद कश्मीरियों की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका, शुक्रवार को हो सकती है सुनवाई

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21 Feb 2019 10:21 AM GMT

  • पुलवामा हमले के बाद कश्मीरियों की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका, शुक्रवार को हो सकती है सुनवाई

    पुलवामा की घटना के बाद देश भर में रह रहे कश्मीरी नागरिकों पर हमले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कश्मीरी छात्रों व नागरिकों की सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है।

    वकील तारिक अदीब जिन्होंने ये याचिका दाखिल की है, उन्होंने गुरुवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई से इस विषय पर जल्द सुनवाई की मांग की है। चीफ जस्टिस ने कहा कि वो शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई कर सकते हैं।

    अपनी याचिका में अदीब द्वारा अलग- अलग इलाकों में कश्मीरी नागरिकों पर हो रहे हमलों संबंधी मीडिया रिपोर्ट और मेघालय के राज्यपाल तथागत रॉय के सोशल मीडिया पर बयानों का हवाला भी दिया गया है।

    वहीं उरी और पुलवामा हमलों की जांच की मांग वाली एक अन्य याचिका पर जल्द सुनवाई के आग्रह पर चीफ जस्टिस ने कहा कि दिन में शुक्रवार को होने वाली सुनवाई की सूची का इंतजार करें।

    दरअसल इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें सरकार को उरी और पुलवामा हमले की जांच करने के लिए सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग का गठन करने का दिशानिर्देश मांगा गया है।

    साथ ही सेना, खुफिया विभाग और स्थानीय प्रशासन को भी इसमें शामिल कर उरी और पुलवामा हमले को अंजाम देने में पाकिस्तान से आए आतंकवादियों की मदद करने में स्थानीय स्तर पर भारतीय नागरिकों द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में भी जांच कराने का अनुरोध किया गया है।

    वकील विनीत ढांडा द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया कि उरी हमले में भारत सरकार और सेना ने जांच के बाद कई प्रक्रियागत खामियां पाईं लेकिन इस तरह की प्रक्रियात्मक खामियों के पीछे के कारण और लोगों को ना तो तलाशा गया और ना ही उन्हें दंडित करने का प्रयास किया गया। बावजूद इसके कि कुछ स्थानीय लोगों द्वारा पाकिस्तानी आतंकियों की मदद की गई।

    याचिका में ये भी कहा गया है कि उरी हमले की गहराई में जाने के लिए कभी भी कोई कार्रवाई नहीं की गई जिसके परिणामस्वरूप जैश-ए-मोहम्मद जैसे इन आतंकवादी संगठनों का आत्मविश्वास बढ़ गया। और यह आत्मविश्वास इस हद तक बढ़ गया कि 14 फरवरी 2019 को उसी संगठन ने CRPF के बहादुर सैनिकों पर आत्मघाती हमला किया जिसके परिणामस्वरूप 40 से अधिक सैनिक शहीद हो गए।

    "पुलवामा हमले में हमारे 40 से अधिक सैनिकों के बहुमूल्य जीवन का नुकसान हुआ जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का परिणाम है, लेकिन पाकिस्तानी आतंकवाद के समर्थन में स्थानीय (भारतीय) सहायता शामिल भी है क्योंकि ये असंभव है कि एक स्थानीय व्यक्ति अपने दम पर 350 किलोग्राम आरडीएक्स की व्यवस्था करे और फिर सीआरपीएफ जवानों के काफिले पर बमबारी करने का एक कायरतापूर्ण कार्य करे। भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल लोग पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का समर्थन करते हैं, विशेष रूप से उन राजनीतिक दल के नेता जो न केवल आतंकवाद का समर्थन कर रहे हैं, बल्कि युवाओं को आतंकवाद के प्रति गुमराह करने में भी सक्रिय रूप से शामिल हैं और इससे सैनिकों को गंभीर अशांति और बहुमूल्य जान का नुकसान हो रहा है। जिसके परिणामस्वरूप न केवल जम्मू और कश्मीर राज्य बल्कि महान देश भारत को भी अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है।"

    याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि जम्मू और कश्मीर की राज्य सरकार ने राज्य में अराजकता को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त सख्त कार्रवाई नहीं की है और राज्य सरकार ने राज्य में सशस्त्र बलों पर पथराव की घटनाओं को बढ़ावा देने में मदद की है।

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