राम जन्मभूमि-बाबरी विवाद: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या में गैर-विवादित भूमि को वापस करने की इजाजत मांगी

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15 Feb 2019 1:05 PM GMT

  • राम जन्मभूमि-बाबरी विवाद: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या में गैर-विवादित भूमि को वापस करने की इजाजत मांगी

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वर्ष 1993 के अयोध्या अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ को भेज दिया है जिसके तहत केंद्र ने विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर और आस-पास के क्षेत्रों सहित 67.703 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने निर्देश दिया, "पीठ के सामने इसे सूचीबद्ध करें।" वहीं अयोध्या विवाद मुकदमे की अपील में मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने अदालत से कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दे पर वर्ष 1994 में इस्माइल फारुकी फैसले में संविधान पीठ द्वारा निर्णय लिया जा चुका है। इसलिए 27 साल बाद इस पर पुर्नविचार नहीं किया जा सकता।

    "हम इसे उस बेंच को भेज रहे हैं। इसे वहां आने दें," चीफ जस्टिस गोगोई ने जवाब दिया। वर्तमान याचिका इस तथ्य के बावजूद दायर की गई है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस्माइल फारुकी मामले में अपने वर्ष 1994 के फैसले में पहले ही धारा 4 की उपधारा (3) को छोड़कर अयोध्या अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा था।

    राम लला के भक्त होने का दावा करने वाले लखनऊ के 2 वकीलों सहित कई व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका में भूमि का अधिग्रहण करने की संसद की विधायी क्षमता को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वर्ष 1993 के अधिनियम ने संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता, अभ्यास और धर्म के प्रचार) के तहत संरक्षित हिंदुओं के धर्म के अधिकार का उल्लंघन किया है।

    याचिका में अदालत और केंद्र सरकार से उत्तर प्रदेश सरकार को हस्तक्षेप करने से रोकने की मांग की गई है, जिसमें विशेष रूप से राम से संबंधित भूमि पर अधिनियम के तहत 67.703 एकड़ भूमि के भीतर स्थित पूजा स्थलों पर पूजा, दर्शन और अनुष्ठान में हस्तक्षेप करने से रोक दिया गया है।

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