सूचना का अधिकार भाग -३

सुरभि करवा

10 May 2019 6:29 AM GMT

  • सूचना का अधिकार भाग -३

    पिछले दो लेखों में हमने ये जाना कि सूचना का अधिकार क्या है (भाग -१), सूचना पाने के लिए कैसे आवेदन करना होता है आदि (भाग-२). आज हम जानेंगे कि सूचना न मिलने पर क्या कार्यवाही करनी होती है.

    सूचना देने की समय सीमा-

    सूचना आवेदन के ३० दिनों के भीतर उपलब्ध करवाना अनिवार्य हैं. अगर किसी व्यक्ति की जीवन या स्वतंत्रता से सम्बंधित मामला है तो सूचना ४८ घंटों के भीतर देना अनिवार्य है. (धारा -७)

    आवेदन के पश्चात् क्या होता है?

    आवेदन के पश्चात्, लोकसूचना अधिकारी को ३० दिन के भीतर एप्लीकेशन पर एक्शन लेना होगा। अधिनियम की धारा -७ के तहत वह निम्नलिखित में से कोई भी एक्शन ले सकता है-

    १. आपको आपके आवेदन के अनुसार सूचनाएँ दे सकता है.

    २. आपकी एप्लीकेशन अस्वीकार कर सकता है

    लोकसूचना इस आधार पर सूचना देने से मना कर सकता है कि माँगी गयी सूचना, अधिनियम के अनुसार सुरक्षित सूचना है, वह उपलब्ध नहीं करवाई जा सकती. एप्लीकेशन रिजेक्ट करने का यह आधार लोक सूचना अधिकारी को बताना होगा.

    यहां पर एक बात ध्यान देने लायक यह भी है कि अगर माँगी गयी सूचना का कुछ हिस्सा ऐसा है जो धारा-8 के तहत सुरक्षित सूचना है तो भी पूरी सूचना से आवेदक को वंचित नहीं रखा जा सकता। सूचना अधिकारी ऐसे में सूचना को पृथक करेगा, सूचना की छंटनी करेगा और उतनी सूचना आपको देगा जो सुरक्षित सूचना नहीं है, और वो सूचना नहीं देगा जो सुरक्षित सूचना है.

    ३. लोक सूचना अधिकारी आपको फोटोकॉपी आदि के लिए अतिरिक्त फीस देने को कह सकता है-

    लोक सूचना अधिकारी आपको फोटोकॉपी आदि के लिए अतिरिक्त फीस देने को कह सकता है. अतिरिक्त फीस कैसे जोड़ी गयी, यह भी लोक सूचना अधिकारी को बताना होगा. गौरतलब है कि अगर सूचना देने में देरी की गयी है या सूचना मांगने वाला गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाला व्यक्ति है तो उससे किसी तरह की फीस नहीं ली जाएगी.

    4. अगर वह ३० दिन में उपर्युक्त कोई एक्शन ले तो ऐसा माना जायेगा कि लोक सूचना अधिकारी ने आपकी अर्ज़ी खारिज कर दी है.

    किन-किन स्थितियों में कर सकते है अपील ?

    अगर आप लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से असंतुष्ट है तो आप आगे अपील कर सकते है. अपील सिर्फ सूचना न देने पर ही नहीं और भी मुद्दों में की जा सकती है. जैसे-

    १. लोक सूचना अधिकारी ने आपको कोई जवाब ही नहीं दिया है.

    2. या फोटोकॉपी आदि के लिए आपसे अकारण अत्यंत अधिक फीस मांगी गयी है.

    3. या आधी-अधूरी, झूठी जानकारी दी गयी है.

    4. आप कमीशन के पास तब भी अपील कर सकते है जब विभाग में कोई लोक सूचना अधिकारी ही नहीं था और इसीलिए आप सूचना नहीं पा सके.

    आगे अपील किसे करे?

    यहाँ आपके पास दो विकल्प है -

    a. या तो आप सीधे राज्य/ केंद्रीय सूचना आयोग को अपील करे.

    b. या फिर आप पहले उस सरकारी संस्था के अपील प्राधिकारी से अपील कर सकते है, और फिर भी अगर संतोषजनक रूप से सूचना न मिले तो आप फिर दूसरी अपील राज्य/ केंद्रीय सूचना आयोग को कर सकते है. हर सरकारी संस्था का कर्तव्य है कि वह अपने विभाग में एक सूचना अधिकारी के अलावा एक सीनियर रैंक अधिकारी को अपील अधिकारी के तौर पर घोषित करें. उदहारण के तौर पर एक यूनिवर्सिटी में अस्सिटेंट रजिस्ट्रार सूचना अधिकारी हो सकता है और VC अपील अधिकारी हो सकता है.

    ध्यान रखिये कि राज्य सूचना आयोग का मतलब यह नहीं है कि राज्य सूचना आयोग के निर्णय के विरोध में अपील केंद्रीय सूचना आयोग को जाती है. केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग दो अलग -अलग तरह की संस्थाओं के विरुद्ध मामले सुनते है. जहाँ केंद्र सूचना आयोग केंद्र सरकार और राज्य सूचना आयोग सम्बंधित राज्य सरकार की मामले सुनाता है. अत: राज्य सूचना आयोग से अपील केंद्र सूचना आयोग को नहीं जाती है.

    कौन होते है केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग के सदस्य?

    केंद्र सूचना आयुक्त में एक मुख्य सूचना आयुक्त और कुछ अन्य सूचना आयुक्त होते है. इन्हें राष्ट्रपति एक समिति की सिफारिश पर चुनता है. इस समिति में प्रधान मंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधान मंत्री द्वारा नामित एक मंत्री होता है. आयुक्त विज्ञानं, विधि, समाज सेवा आदि क्षेत्रों से जुड़े व्यक्ति होते है. इनका कार्यकाल ५ वर्ष या ६५ वर्ष के उम्र तक होता है. राज्य सूचना आयोग के सन्दर्भ में भी समान नियम है.

    सूचना आयोग क्या - क्या आर्डर पास करने की शक्ति है?

    सूचना आयोग के पास एक सिविल कोर्ट जैसी पावर होती है. आयोग किसी मामले में सूचना नहीं दिए जाने की जांच करने का हक़ रखता है और इसके लिए आयोग किसी को समन जारी कर सकती है, ओथ पर एफिडेविट ले सकती है आदि. केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग किसी भी अपील में निम्नलिखित आर्डर पास कर सकते है-

    १. विभाग आवेदक को सूचना उपलब्ध करवाए.

    २. आवेदन को नामंजूर करना।

    ३. विभाग सरकारी रिकॉर्ड के रखरखाव के लिए अपनाई गयी पद्धतियों में सुधार लावें.

    ४. आवेदक को हुई किसी भी तरह की हानि की भरपाई के लिए मुआवज़ा.

    ५. कुछ पेनल्टी पावर भी आयोग के पास है.

    हिन्दुस्थान का सूचना का अधिकार अधिनियम विश्व के सबसे शक्तिशाली सूचना का अधिकार कानूनों में से एक है. सूचना के अधिकार का प्रयोग कर भारतीय नागरिकों ने काम का अधिकार सुनिश्चित करने , अपने इलाकों में सड़कें बनवाने , पहचान पत्र पाने आदि कई महत्वपूर्ण कामों के लिए किया है.

    हाल ही में सूचना के अधिकार को कमजोर करने के कई प्रयोग किये गए है. सूचना कमिश्नर के पद पर नियुक्ति न करना, किसी भी कमिश्नर को हटाने के सम्बन्ध में सरकार की दखलंदाज़ी बढाने का प्रयास आदि से सूचना आयोग की स्वतंत्रता को हानि पहुंची है. सूचना आयोग में मामलों की संख्याएँ इतनी बढ़ती जा रही है कि अपीलों की सुनवाई लम्बे- लम्बे समय तक नहीं होती और नागरिक सूचना पाने के लिए भटकता रहता है. देश के भविष्य के लिए जरुरी है कि सूचना के अधिकार अधिनियम को प्रभावी बनाये रखा जाए.

    (लेखक सुरभि करवा राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली की छात्रा है.)

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