आइये जाने पैरा लीगल वालंटियर के बारे में

  • आइये जाने पैरा लीगल वालंटियर के बारे में

    हमने विधिक सहायता से जुड़े पिछले दो लेखों में विधिक सहायता के अधिकार और लोक अदालतों के बारे में जाना। आज के लेख में हम विधिक सहायता की एक अन्य मुख्य कड़ी पैरा लीगल वालंटियर के बारे में जानेंगे. साथ ही हम विधि विश्विद्यालयों में चलने वाले लीगल एड केंद्रों की भी जानकारी करेंगे।

    कौन होते हैं पैरा-लीगल वालंटियर"(PLV) ?
    राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का शुरुआत से ही लक्ष्य रहा है कि "न्याय" को आपके दरवाज़े तक बिना रोक-टोक के पहुँचाया जाये। इसी बात को ध्यान में रखतेहुये वर्ष 2009 से प्राधिकरण द्वारा पैरा-लीगल वालंटियर नाम की एक स्कीम शुरू की गयी। जिसके अंतर्गत समाज के विभिन्न क्षेत्रों से आये लोगों का चयन करके उन्हें न्यायिक प्रशिक्षण दिया जाता है। इन्हीं चयनित एवं प्रशिक्षित लोगों को हम आम भाषा में "पैरा-लीगल वालंटियर"(PLV) बोलते हैं। "पैरा-लीगल वालंटियर" का मतलब यह है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसे क़ानून का बुनियादी ज्ञान तो है लेकिन वह पूर्ण रूप से वक़ील नहीं है। इनका मुख्य काम समाज और न्याय संस्थाओंके बीच की दुरी को कम करना है
    वह समूह जिनसे PLV चुनें जा सकते हैं
    निम्न लिखित समूह के लोग PLV बनने के योग्य समझे जायेंगे;
    1. शिक्षक (सेवानिवृत्त शिक्षकों सहित)।
    2. सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी और वरिष्ठ नागरिक।
    3. M.S.W(मास्टर इन सोशल वर्क) के छात्र और शिक्षक।
    4. आंगनवाड़ी कार्यकर्ता।
    5. डॉक्टर्स / फिजिशियन।
    6. छात्र और विधि छात्र (जब तक वे वकीलों के रूप में नामांकन नहीं करते हैं)।
    7. गैर-राजनीतिक, सेवा उन्मुख गैर सरकारी संगठनों और क्लबों के सदस्य।
    8. महिला पड़ोस समूह, मैत्री के सदस्य संघ और अन्य स्वयं सहायता समूह।
    9. लम्बे समय से जेलों में सज़ा काट रहे अच्छे व्यवहार वाले क़ैदी।
    नोट: इसके अलावा कोई अन्य व्यक्ति जिसे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या तालुक कानूनी सेवा समिति PLV के रूप में सही समझती है।
    चयन कैसे होता है?
    जिला स्तर एवं तहसील स्तर पर स्थित विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा चयन प्रक्रिया का कार्यान्वयन किया जाता है। जो कि इस प्रकार है-
    साधारण रूप से विज्ञापन एवं नोटिस के द्वारा लोगों को सूचित किया जाता है, जिसके अंदर फॉर्म भरने का समय और बाकी जरुरी योग्यताओं के बारे में बतायाजाता है। आज के समय में यह जानकारी आपको प्राधिकरण की वेबसाइट के साथ-साथ जिला न्यायालय, जिला पंचायत कार्यालय एवं तहसील कार्यालय के नोटिस बोर्ड पे मिल जाएगी। एवं इसके अलावा आप सम्बंधित कार्यालय में जा के भी पता कर सकते हैं।
    इसका मतलब आप अपनी सहूलियत के हिसाब से जिला या तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण दोनों में से किसी एक जगह पर जा के PLV वाला फ़ॉर्म भर सकते हैं। आवेदन पूरा होने के बाद जिला और तहसील स्तर पर विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा बनायी गयी चयन समिति PLV बनने के योग्य जो भी आवेदक होंगे उनको साक्षात्कार के लिए बुलाएगी। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के दिशानिर्देषों के अनुसार महिला आवेदक को वरीयता दी जायेगी, इसी के साथ-साथ SC/ST, OBC एवं अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित किया जायेगा।
    प्रशिक्षण
    चयनित PLV समूह का प्रशिक्षण जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष की निगरानी में होगा। एक बार में ज़्यादा से ज़्यादा 50 लोगों को ही प्रशिक्षण दिया जायेगा।पूरे प्रशिक्षण को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार दो से तीन चरणों में पूरा किया जायेगा। जिसमें की लगभग एक महीने का समय लगेगा। इसके बाद जो आवेदक सफलता पूर्वक प्रशिक्षण को पूरा कर लेंगे उनको प्राधिकरण द्वारा PLV पहचान पत्र दे दिया जायेगा।
    तैनाती, वेतन एवं कार्यकाल
    PLV का काम करने के लिए आप अपनी सुविधा के अनुसार अपने क्षेत्र का चयन कर सकते हैं, जैसे कि आप अगर चाहें तो जिला स्तर पर काम करें या फिर तहसील या गाँव स्तर पर। अब अगर वेतन की बात की जाये तो यहाँ पर सरकारी कर्मचारियों की तरह वेतन पाने का प्रावधान नहीं है, लेकिन आपको प्राधिकरण द्वारा मानदेय दिया जायेगा, जिससे कि आपके आने-जाने का ख़र्च इत्यादि जो भी है उसको पूरा किया जायेगा। सभी "पैरा-लीगल वालंटियर" का कार्यकाल एक वर्ष का रहेगा, जिसके बाद अगर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण आपके कार्य से संतुष्ट है, तब वह आपके कार्यकाल को एक और वर्ष के लिए बढ़ा सकता है।
    "पैरा-लीगल वालंटियर" के दायित्व क्या हैं?
    1. पैरा-लीगल वालंटियर लोगों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करेगा, विशेष रूप से उन लोगों को जो समाज के कमजोर वर्ग से आते हैं।
    2. पैरा-लीगल वालंटियर्स लोगों को उनके विवाद / मुद्दे / समस्यों के बारे में जागरूक करने के साथ-साथ सम्बंधित प्राधिकरण में सम्पर्क करेंगे,जिससे की समय रहते उनका समाधान किया जा सके।
    3. पैरा-लीगल वालंटियर्स लगातार अपने संचालन के क्षेत्र में नज़र रखेंगे और अगर कहीं पर कोई अन्याय या क़ानून का उल्लंघन करता है, तो वह इसकी सूचना प्राधिकरण में जा के दे सकते हैं।
    4. अगर PLV किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के बारे में जानकारी प्राप्त करता है, तो वह पुलिस स्टेशन जा के निकटतम कानूनी सेवा संस्थान के माध्यम से गिरफ्तार व्यक्ति को कानूनी सहायता मिले यह बात सुनिश्चित करेगा।
    5. PLV यह भी सुनिश्चित करेगा कि अपराध से पीड़ित व्यक्ति की उचित देखभाल हो साथ ही Cr.P.C. की धारा 357A के तहत उसको मुआवजा मिले।
    6. PLV, DLSA / TLSC की अनुमति से जेल में बंद कैदियों को भी क़ानूनी सहायता प्रदान कर सकता है। इसके अलावा वह बाल सुधार गृह भी जा सकता है।
    7. PLV बाल अधिकारों को लेकर समाज को जागरूक करेगा साथ ही बाल श्रम, बच्चों और लड़कियों की तस्करी इत्यादि के बारे में पता चलने पर निकटम क़ानूनी संस्था या फिर प्राधिकरण की बाल कल्याण समिति को सूचित करेगा।
    8. PLV अपने क्षेत्र में कानूनी जागरूकता शिविर आयोजन के लिए DLSA(जिला विधिक सेवा प्राधिकरण) / TLSC (तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण) की सहायता करेंगे।
    9. पैरा-लीगल वालंटियर्स लोगों में लोक अदालतों, सुलह, मध्यस्थता के माध्यम से आपसी विवादों को सुलझाने के लिए जागरूकता पैदा करेंगे।
    10. पैरा-लीगल वालंटियर्स अपनी इन्हीं सब गतिविधियों की मासिक रिपोर्ट जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या फिर तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण को एक उचित प्रारूप में प्रस्तुत करेंगे।
    PLV को कब हटाया जा सकता है?
    निम्नलिखित कारणों की वज़ह से PLV को हटाया जा सकता है;
    1. कार्यक्रम में रूचि न लेने पर।
    2. किसी भी अपराध का आरोपी होने पर।
    3. शारीरिक या मानसिक रूप से असक्षम हो जाना।
    विधि विश्वविद्यालयों में चलने वाले लीगल एड क्लीनिक-
    विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा ४(क) के तहत कानून के विद्यार्थियों और लॉ कॉलेजों की सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने और लीगल एड उपलब्ध करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका मानी गयी है. इसी दृष्टि से बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया ने भी प्रत्येक विधि-विश्वविद्यालय के लिए यह अनिवार्य किया है कि वे अपने विश्वविद्यालय में क्लिनिक की स्थापना करें.
    इन क्लीनिकों पर नालसा द्वारा बनाये गए 'लीगल एड क्लिनिक नियम २०११ लागू होते है. इन नियमों के तहत विधि विश्वविद्यालयों और जिला विधिक सहायता समिति को आपसी सहयोग से कार्य करना होता है. जिला विधिक सहायता समिति का कर्तव्य है कि वह विधि विश्वविद्यालयों में क्लिनिक स्थापित करवाए और हर तरह का टेक्निकल सहयोग मुहैया करवाए. जिला विधिक सहायता समिति का यह भी कर्तव्य है कि वह लीगल एड क्लिनिक में आने वाले मामलों में विद्यार्थियों के सहयोग हेतु अपने पेनल वकील उपलब्ध करवाए। इस दृष्टि से नालसा ने २०१३ में एक स्कीम भी लागू की है जिसके तहत विधि-विश्वविद्यालयों में चल रहे क्लीनिकों के लिए प्रति माह के खर्चे हेतू आर्थिक सहयोग उपलब्ध करवाने का प्रावधान है.
    क्लिनिक में विद्द्यार्थी अपने शिक्षकों के मार्गदर्शन में कार्य करते है. विद्यार्थोयों का कार्य सरकारी कागज़ बनवाने , किसी सरकारी योजना का लाभ उठाने के लिए जरुरी कार्यवाही करने में मदद करना भी है.
    दुर्भाग्य से कई विधि विश्वविद्यालयों में क्लिनिक नहीं स्थापित हुए है. जहाँ हुए भी है वहां व्यवस्थाऍ असंतोषजनक है. आज बहुत बड़ी संख्या में विधि-विश्वविद्यालय और कानून के विद्द्यार्थी है. विधि विश्वविद्यालयों के ये क्लिनिक सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है बशर्ते जिला विधिक सहायता समिति, राज्य विधिक सहायता समिति और विधि-विश्वविद्यालय मिल कर काम करें.
    (शोभित डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ और सुरभि राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली में अध्ययनरत है.)

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