लोक अभियोजक कौन होता है एवं दंड प्रक्रिया संहिता में इससे सम्बंधित पदों की क्या है व्यवस्था?

SPARSH UPADHYAY

25 Feb 2019 6:01 AM GMT

  • लोक अभियोजक कौन होता है एवं दंड प्रक्रिया संहिता में इससे सम्बंधित पदों की क्या है व्यवस्था?

    जब बात आती है किसी अपराध की, तो यह कॉमन लॉ का एक सिद्ध प्रिंसिपल है कि एक अपराध हमेशा समाज के खिलाफ होता है। भले ही वह अपराध चोरी हो, हत्या हो, या किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से चोट पहुंचना हो, घटना भले किसी एक व्यक्ति के खिलाफ अंजाम दी गयी हो लेकिन उस घटना से समाज को भी नुकसान होता है। लोगों के बीच भय, दहशत फैलता है और समाज की शांति भंग होती है।

    जब भी किसी अपराध को अंजाम दिया जाता है, तो किसी अभियुक्त के खिलाफ मामले को स्टेट के जरिये अदालत तक पहुंचाया जाता है। क्यूंकि एक स्टेट इस बात की जिम्मेदारी को समझता है कि किसी भी अपराध का होना उसके (स्टेट) अस्तित्व के खिलाफ होता है और चूँकि समाज में अपराध की रोकथाम भी उसी के जिम्मे होती है (पुलिस के जरिये) इसलिए ऐसी घटनाओं को एक न्यायोचित परिणाम तक पहुँचाना भी उसकी ही जिम्मेदारी बनती है। अपराध की सूचना प्राप्त होने के बाद जहाँ राज्य की पुलिस (अन्वेषण शक्तियों का प्रयोग करते हुए) मामले की तहकीकात में जुट जाती है, वहीँ समय समय पर स्थानीय अदालतों से मामले को उचित रूप से अन्वेषित करने में मदद भी ली जाती है।
    जब एक बार मामले की तहकीकात एक ठोस अंजाम तक पहुँचती है और पुलिस अपनी फाइनल रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करती है (देखें सेक्शन 173 दण्ड प्रक्रिया संहिता)। इसके अलावा जब पुलिस द्वारा इस बात के संतुष्ट होने पर, कि किसी अभियुक्त के खिलाफ ठोस सबूत हैं कि वो जांच किये गए अपराध में शामिल रहा है, तो ऐसे अभियुक्त को मजिस्ट्रेट की कस्टडी में भेज दिया जाता है (देखें सेक्शन 173 दण्ड प्रक्रिया संहिता)। अब यहाँ से शुरू होती हैं ट्रायल की प्रक्रिया। लेकिन चूँकि यह मामला अदालत में ट्रायल के लिए स्टेट द्वारा लाया गया है, इसलिए इस मामले का अदालत में प्रतिनिधित्व करने के लिए स्टेट का पब्लिक प्रासीक्यूटर (लोक अभियोजक) मौजूद होता है (देखें
    सेक्शन 24/25
    दण्ड प्रक्रिया संहिता)।
    लोक अभियोजक की स्थिति

    एक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक स्टेट की ओर से ट्रायल में पेश होने वाला वकील होता है। उसका मुख्य कार्य स्टेट की ओर से अदालत में अभियोजन कार्यवाही को संचालित करना होता है। एक लोक अभियोजक, स्टेट की तरफ से क्रिमिनल अपील, रीविजन एवं सत्र न्यायालय या हाई कोर्ट में अन्य ऐसे मामलों में उपस्थित होता है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि एक लोक अभियोजक कभी भी अभियुक्त की तरफ से पेश नहीं हो सकता है।

    लोक अभियोजक की शक्तियां
    - किसी मामले के प्रभारी लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक किसी भी अदालत के समक्ष, बिना किसी लिखित अधिकार के उपस्थित हो सकते हैं और उस मामले की याचना कर सकते हैं जो पूछताछ, परीक्षण या अपील के अधीन है (देखें सेक्शन 301 दण्ड प्रक्रिया संहिता)।
    - लोक अभियोजक या किसी मामले के प्रभारी लोक अभियोजक, न्यायालय की सहमति से, किसी भी समय मामले में निर्णय सुनाए जाने से पहले, किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन को वापस ले सकते हैं। यह वापसी या तो आम तौर पर पूरे मामले के लिए हो सकती है, या उस अभियुक्त के खिलाफ किसी ख़ास अपराध से सम्बंधित हो सकती है (जिसके लिए अभियोजन चलाया जा रहा था)। (देखें
    सेक्शन 321
    दण्ड प्रक्रिया संहिता)
    - इसके अलावा एक लोक अभियोजक, पुलिस या दूसरे सरकारी विभागों को किसी व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन के मामले में अपनी राय दे सकता है (अगर उसकी राय मांगी जाती है)।
    - लोक अभियोजक, एडिशनल लोक अभियोजक, स्पेशल लोक अभियोजक एवं सहायक लोक अभियोजक
    जहाँ लोक अभियोजक (एडिशनल लोक अभियोजक एवं स्पेशल लोक अभियोजक शामिल) अभियोजन एवं अन्य आपराधिक कार्यवाही को सत्र अदालत एवं हाई कोर्ट में सँभालते हैं वहीँ सहायक लोक अभियोजक, मजिस्ट्रेट की अदालत में यह सभी कार्यवाही का सञ्चालन करते हैं।
    - अमूमन, पुलिस रिपोर्ट के जरिये शुरू होने वाले मामलों का अभियोजन, सहायक लोक अभियोजक करता है वहीँ प्राइवेट कंप्लेंट के मामलों को या तो शिकायतकर्ता स्वयं या उसके द्वारा नियुक्त वकील देखता है।
    अभियोजक के मुख्य कार्य
    हमारी संहिता में एक लोक अभियोजक को क्या करना चाहिए इस सम्बन्ध में ज्यादा बातें नहीं बताई गयी हैं। लेकिन इस विषय में कुछ सिद्धांत अवश्य प्रतिपादित किये गए हैं, जिन्हे हम संक्षेप में आपको यहाँ समझा रहे हैं। किसी भी आपराधिक ट्रायल का मुख्य उद्देश्य सच को जानना (किसी घटना से सम्बंधित) एवं दोषियों को सजा देना होता है। हालाँकि जरुरी नहीं की हर ट्रायल के अंत में हमे दोषी ही मिलें, हो सकता है अदालत अभियुक्त को बरी कर दे या हो सकता है उसे दोषी करार दे।
    घिराओ बनाम एम्परर (1933) के मामले में अदालत ने यह साफ़ किया था कि एक अभियोजक का कार्य केवल अभियुक्त को हर हाल में सजा दिलाना नहीं होता बल्कि उसका कार्य अदालत के समक्ष वो सभी सबूत रखना है जो अभियोजन पक्ष के पास मौजूद हैं। ये सबूत अभियुक्त के खिलाफ भी हो सकते हैं और उसके पक्ष में भी। एक बार अदालत एक समक्ष अभियोजक द्वारा पारदर्शिता से सबूत रख दिए जाएँ, इसके बाद यह काम अदालत का है कि वो अभियुक्त को दोषी मानती है या नहीं।
    कई मामलों में अभियोजक की तटस्थता पर भी जोर दिया गया है। यह भी आमतौर पर माना जाता है कि लोक अभियोजक को केवल सत्य के साथ खड़े रहने की जरुरत है, उसका कार्य किसी भी हालत में अभियुक्त को दोषी सिद्ध करवाना नहीं है, जबकि वह इस बात को जानता है कि अभियुक्त के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। उसका कार्य किसी अभियुक्त को गलत प्रकार से दोषी सिद्ध करवाना नहीं है, बल्कि लोक अभियोजक न्याय के लिए लड़ता है और वह न्याय दिलाने में अदालत की मदद करता है।
    लोक अभियाजक एवं सम्बंधित अभियोजन अधिकारीयों की भूमिका:-

    A - उच्च न्यायालय में लोक अभियोजक एवं एडिशनल लोक अभियोजक
    - कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय में लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त होने के लिए पात्र केवल तभी होगा, जब उसके पास कम से कम 07 साल या उससे अधिक तक के लिए एक वकील के रूप में कार्य करने का अनुभव रहा हो। हालाँकि दी गयी यह अवधि के दौरान अगर वह एक प्लीडर के तौर पर कार्य कर चुका हो, या (इस कोड के शुरू होने से पहले या बाद में) सार्वजनिक रूप में अभियोजक या एक अतिरिक्त लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक या अन्य अभियोजन अधिकारी के रूप में, या ऐसे ही अन्य किसी नाम से सेवाएं दे चुका हो, तो उस अवधि को इस नियुक्ति के लिए जोड़ा जाएगा, जिस अवधि के दौरान ऐसा व्यक्ति एक वकील के रूप में कार्य कर चुका हो (देखें
    सेक्शन 24 (9)
    दण्ड प्रक्रिया संहिता)।
    - प्रत्येक उच्च न्यायालय के लिए, केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय से परामर्श के बाद, एक लोक अभियोजक की नियुक्ति की जा सकती है और इस तरह के न्यायालय में किसी भी अभियोजन, अपील या अन्य कार्यवाही के लिए एक या एक से अधिक अतिरिक्त लोक अभियोजक की नियुक्ति भी की जा सकती है (देखें सेक्शन 24 (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता)।
    - इसके अलावा, केंद्र सरकार या राज्य सरकार किसी भी मामले या मामलों के एक खास प्रकार या वर्ग के उद्देश्यों के लिए एक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है, यह व्यक्ति जो एक विशेष लोक अभियोजक के रूप में कार्य करेगा उसे कम से कम 10 साल या उससे ज्यादा का अनुभव, एक वकील के तौर पर होना चाहिए (देखें
    सेक्शन 24 (8)
    दण्ड प्रक्रिया संहिता)।
    B - जिले में लोक अभियोजक एवं एडिशनल लोक अभियोजक
    - कोई व्यक्ति किसी जिले में लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त होने के लिए पात्र केवल तभी होगा, जब उसके पास कम से कम 07 साल या उससे अधिक तक के लिए एक वकील के रूप में कार्य करने का अनुभव रहा हो। (देखें सेक्शन 24 (7) दण्ड प्रक्रिया संहिता)। ठीक वही शर्तें यहं भी लागु होंगी जो उच्च न्यायालय में अभियोजक की नियुक्ति पर लागू हैं।
    - जिला मजिस्ट्रेट, सत्र न्यायाधीश के परामर्श से, ऐसे व्यक्तियों के नामों का एक पैनल तैयार करेगा, जो उनकी राय में, जिले के लिए लोक अभियोजक या अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए उपयुक्त होंगे (देखें सेक्शन 24 (4) दण्ड प्रक्रिया संहिता)। लेकिन यहाँ इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि राज्य सरकार द्वारा किसी भी व्यक्ति को तब तक जिले के लिए लोक अभियोजक या अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा जबतक कि उस व्यक्ति का नाम जिला मजिस्ट्रेट द्वारा तैयार किए गए नामों के पैनल में उपस्थित नहीं है (देखें
    सेक्शन 24 (5)
    दण्ड प्रक्रिया संहिता)।
    - प्रत्येक जिले के लिए, राज्य सरकार एक लोक अभियोजक की नियुक्ति करेगी। इसके अलावा किसी जिले के लिए एक या एक से अधिक अतिरिक्त लोक अभियोजक भी नियुक्त किये जा सकते हैं। इसके अलावा एक जिले के लिए नियुक्त लोक अभियोजक या अतिरिक्त लोक अभियोजक को एक दूसरे जिले के लोक अभियोजक या अतिरिक्त लोक अभियोजक नियुक्त किया जा सकता है (देखें सेक्शन 24 (3) दण्ड प्रक्रिया संहिता)।
    - इसके अलावा, केंद्र सरकार या राज्य सरकार किसी भी मामले या मामलों के एक खास प्रकार या वर्ग के उद्देश्यों के लिए एक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है, यह व्यक्ति जो एक विशेष लोक अभियोजक के रूप में कार्य करेगा उसे कम से कम 10 साल या उससे ज्यादा का अनुभव, एक वकील के तौर पर होना चाहिए (देखें सेक्शन 24 (8) दण्ड प्रक्रिया संहिता)।
    सहायक लोक अभियोजक कौन होता है?
    जैसा की हमने ऊपर बताया कि एक पुलिस रिपोर्ट के जरिये शुरू होने वाले मामलों का अभियोजन, सहायक लोक अभियोजक मजिस्ट्रेट की अदालत में करता है। इसके अलावा हमे कोड में मौजूद
    सेक्शन 25
    भी सहायक लोक अभियोजक के बारे में कुछ जानकारी देता है। दरअसल, मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों में अभियोग चलाने के लिए राज्य सरकार, प्रत्येक जिले में एक या एक से अधिक सहायक लोक अभियोजकों की नियुक्ति करती है (देखें सेक्शन 25 (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता)। इसके अलावा न्यायालय मजिस्ट्रेट के न्यायालय में किसी भी खास मामले या खास वर्ग के मामले के संचालन के उद्देश्य से केंद्र सरकार एक या एक से अधिक सहायक लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है (देखें
    सेक्शन 25 (1-A)
    दण्ड प्रक्रिया संहिता)।
    कभी कभार ऐसी परिस्थिति भी आती है जब किसी खास मामले के लिए सहायक लोक अभियोजक उपलब्ध नहीं होता है, ऐसी परिस्थिति में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट किसी दूसरे व्यक्ति को उस मामले के लिए सहायक लोक अभियोजक नियुक्त कर सकता है। हालाँकि ऐसा व्यक्ति 2 शर्तों को पूर्ण करता हुआ होना चाहिए। पहली शर्त, जिस मामले को लेकर अभियुक्त के खिलाफ अभियोजन कार्यवाही शुरू हुई है, उस मामले के अन्वेषण में इस व्यक्ति ने कोई हिस्सा न लिया हो। दूसरा, वह व्यक्ति इंस्पेक्टर से कम की रैंक का न हो देखें सेक्शन 25 (3) दण्ड प्रक्रिया संहिता ।
    हालाँकि कई मामलों में अदालतें और लॉ कमीशन की रिपोर्ट भी इस बात को रेखांकित कर चुकी हैं कि सहायक लोक अभियोजक की नियुक्ति सरकारों को बेहद जिम्मेदारी के साथ करनी चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि ऐसी नौबत न आये जहाँ कोई भी सहायक लोक अभियोजक उपलब्ध न हो।

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