लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम अपने आप में पूर्ण संहिता, परिसीमन अधिनियम उस पर लागू नहीं होता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

24 April 2024 9:32 AM GMT

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम अपने आप में पूर्ण संहिता, परिसीमन अधिनियम उस पर लागू नहीं होता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 86(1) के तहत दायर चुनाव याचिका, जिसे अधिनियम की धारा 81 के तहत निर्धारित सीमा अवधि के बाहर दायर किया गया है, सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 एक पूर्ण और स्व-निहित संहिता है, जो परिसीमन अधिनियम को अनुपयुक्त बना देता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 81 निर्वाचित उम्मीदवार के चुनाव की तारीख से 45 दिनों की अवधि प्रदान करती है और यदि चुनाव की तारीखें अलग-अलग हैं तो चुनाव याचिका दायर करने के लिए बाद की तारीख दी जाती है।

    अधिनियम की धारा 86 उच्च न्यायालयों के लिए उन चुनाव याचिकाओं को खारिज करना अनिवार्य बनाती है, जो अधिनियम की धारा 81, 82 और 117 का अनुपालन नहीं करती हैं। परिसीमा अधिनियम की धारा 17 में यह प्रावधान है कि जहां परिसीमा अधिनियम के तहत किसी मुकदमे के लिए परिसीमा की अवधि का वर्णन किया गया है तो परिसीमा की अवधि उस दिन से शुरू होगी, जब तक उचित परिश्रम के साथ धोखाधड़ी का पता नहीं लगाया जा सका।

    मामले मे याचिकाकर्ताओं ने सफलतापूर्वक निर्वाचित उम्मीदवार, प्रतिवादी संख्या एक के खिलाफ चुनाव याचिका दायर की, जिसमें आरोप लगाया कि उसने अपनी मूल जाति, जो 'भदौरिया ठाकुर' थी, छिपाकर निर्वाचन क्षेत्र के सदस्यों के साथ धोखाधड़ी की थी। यह आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी संख्या एक ने अपने जाति प्रमाण पत्र के अनुसार अनुसूचित जाति 'कोरी' के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ा था। याचिका 655 दिन की देरी से दायर की गई थी।

    एमिकस एडवोकेट नियामी दास ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि चूंकि कार्यवाही एक विशेष क़ानून से उत्पन्न हुई है, इसलिए निर्णय क़ानून के नुस्खे से परे नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि चुनाव याचिका दायर करने की अवधि "कठोर" है और इसे माफ नहीं किया जा सकता। आगे यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ताओं ने विलंब माफी के लिए कोई आवेदन दायर नहीं किया था।

    कोर्ट ने के वेंकेरेस्वरा राव और अन्य बनाम बेक्कम नरसिम्हा रेड्डी और अन्य पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम एक पूर्ण और स्व-निहित संहिता होने के कारण, परिसीमन अधिनियम उस पर लागू नहीं होगा। यह माना गया कि 1951 के अधिनियम में विभिन्न संशोधनों के बावजूद, धारा 86(1) को बरकरार रखा गया था। धारा 86(1) के तहत पिछले चुनावों में अपनाए गए भ्रष्ट आचरण का प्रश्न अंततः विधायिका को तय करना था।

    इसके अलावा, कोर्ट ने हुकुमदेव नारायण यादव बनाम ललित नारायण मिश्रा पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 4 से 24, 1951 के एक्ट के तहत कार्यवाही पर लागू नहीं होंगी। तदनुसार, न्यायालय ने माना कि सीमा अधिनियम की धारा 17 में प्रदान की गई सीमा का विस्तार 1951 के अधिनियम के तहत कार्यवाही पर लागू नहीं है।

    चुनाव याचिका की योग्यता के आधार पर, अदालत ने माना कि प्रथम दृष्टया आधार पर भी यह दिखाने के लिए कोई दलील नहीं थी कि धोखाधड़ी की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने यह नहीं दिखाया कि कथित धोखाधड़ी का पता उन्हें पहले कैसे नहीं चल सका। कोर्ट ने पल्लव शेठ बनाम कस्टोडियन और अन्य पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि "वादी द्वारा गौर किए गए" उचित परिश्रम "के बावजूद, धोखाधड़ी की खोज होने तक परिसीमा की अवधि शुरू नहीं हो सकती है।" इन्हीं टिप्पणियों के सा‌थ चुनाव याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटलः जय प्रकाश और अन्य बनाम अंजुला सिंह माहौर और अन्य [ELECTION PETITION NUMBER- 1 of 2024]

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