सीलिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मनोज तिवारी को ‘ बिना उद्देश्य के लड़ाके’ बताते हुए फटकार लगाई, अवमानना केस बंद किया

LiveLaw News Network

22 Nov 2018 9:47 AM GMT

  • सीलिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मनोज तिवारी को ‘ बिना उद्देश्य के लड़ाके’ बताते हुए फटकार लगाई, अवमानना केस बंद किया

    दिल्ली के गोकलपुरी में मकान की सीलिंग तोड़ने पर अदालत में पेश हुए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना मामले को बंद कर दिया लेकिन उन्हें ‘ बिना उद्देश्य के लड़ाके’ बताते हुए फटकार लगाई।

    जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि हमें बहुत दुख है कि मनोज तिवारी ने सील तोड़कर कानून को अपने हाथ में लिया। ये कार्य गलत कार्य कर बहादुरी दिखाने जैसा है। पीठ ने कहा कि इसके लिए उनका पार्टी कार्रवाई करना चाहे तो कर सकती है।

    पीठ ने ये भी कहा कि तिवारी ने बेवजह मॉनीटरिंग कमेटी के बारे में गलत बयानी की।

    इससे पहले सुनवाई में मनोज तिवारी ने कहा था कि उन्होंने लोगों की भावनाओं को देखते हुए ये काम किया था। भाजपा सांसद ने तो सुप्रीम कोर्ट में यहां तक कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट अपनी मॉनिटरिंग कमेटी भंग करें और वो सीलिंग अफसर बनने को तैयार हैं।मनोज तिवारी के वकील की ओर  से कोर्ट को कहा गया कि उन्होंने जो सीलिंग  तोड़ी है वो कोर्ट की अवमानना नहीं हुई है क्योंकि जिस जगह को सील किया गया वो कोर्ट के आदेश के अनुसार ‌नही किया गया था। मॉनिटरिंग कमेटी सीलिंग का काम सिर्फ पब्लिसिटी के लिए ये कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने तिवारी से कहा कि आप एक जिम्मेदार नागरिक है जब वह जगह सील हो गई थी तो उस सील क्यों तोड़ी। एक तरफ तो आप कानून की बात कर रहे हैं दूसरी तरफ आप खुद कानून तोड़ रहे हैं।

     मनोज तिवारी की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा था कि सीलिंग के विरोध में एक बड़ी सँख्या में लोग इकट्ठे हो गए थे, कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती थी इसलिए मनोज तिवारी को आगे आना पड़ा था। इस पर जस्टिस अब्दुल नजीर ने टोकते हुए कहा था कि देश में  क्या भीड़ का कानून चलेगा या फिर नियम का कानून।एक जनप्रतिनिधि होने के नाते आपकी क्या जिम्मेदारी है। तिवारी के वकील विकास सिंह ने जवाब दिया कि आप जज सुविधानक जगह पर बैठे है, आपसे कोई सवाल पूछने वाला नहीं है, जनप्रतिनिधि होने के नाते सांसद को जवाब देना होता है।

    दूसरी तरफ मॉनिटरिंग कमेटी ने सुप्रीमकोर्ट से कहा था कि कोर्ट की अवमानना के अपराध में मनोज तिवारी को जेल न भेजा जाए।उन्हें सिर्फ़ जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाए।

    गौरतलब है कि 25 सितंबर को दिल्ली के गोकलपुरी में मकान की सीलिंग तोड़ने पर अदालत में पेश हुए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी को सुप्रीम कोर्ट ने एक हफ्ते के भीतर हलफनामे के जरिए जवाब देने के निर्देश दिए थे।

    जस्टिस मदन बी लोकुर, एस अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की पीठ ने मनोज तिवारी पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि सासंद कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते।

    वहीं सासंद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा था कि सांसद ने जिस मकान की सील तोड़ी वो गाय की डेयरी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का दुरुपयोग हो रहा है।

    इस पर पीठ ने कहा था कि  हमने भाषण की सीडी देखी है, आपने कहा है कि ऐसी हजार से ज्यादा जगह हैं जो सील होनी चाहिएं, आप इस सूची को हमें दीजिए, हम आपको ही सीलिंग ऑफिसर नियुक्त कर देंगे।

    19 सितंबर को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी द्वारा पूर्वी दिल्ली में जबरन सीलिंग तोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की अवमानना का नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों ना उनके खिलाफ अवमानना का मामला चलाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मनोज तिवारी को पेश होने का आदेश भी जारी किया है।

    जस्टिस मदन बी लोकुर, एस अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुने गए प्रतिनिधि ही कोर्ट के फैसले की अवमानना करते हैं।

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