अगर एक बच्चा को गोद दे दिया गया है तो भी उड़ीसा ग्राम पंचायत अधिनियम के तहत “दो से ज्यादा बच्चे” का अयोग्यता नियम लागू होगा : सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

28 Oct 2018 6:16 PM GMT

  • अगर एक बच्चा को गोद दे दिया गया है तो भी उड़ीसा ग्राम पंचायत अधिनियम के तहत “दो से ज्यादा बच्चे” का अयोग्यता नियम लागू होगा : सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]

    कुछ मलयालम समाचार पोर्टलों की खबर के बाद यह खबर सोशल मीडिया में वायरल हो गया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिन लोगों के दो से अधिक बच्चे हैं वे पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकते। इन खबरों में यह कहा गया था कि यह फैसला केरल पर भी लागू होगा जहां इस तरह का कोई कानून नहीं है। पर क्या कोर्ट ने ऐसा कुछ कहा है जो केरल पर भी लागू होगा? नहीं, ऐसा नहीं है।

    सुप्रीम क्रोट ने मीनासिंह माझी बनाम कलक्टर, नुआपाड़ा ने उड़ीसा ग्रामपंचायत अधिनियम, 1965 के एक प्रावधान की सिर्फ व्याख्या की है। इसके तहत एक अगर किसी व्यक्ति को दो से ज्यादा बच्चे हैं तो वह पंचायत की सदस्यता के अयोग्य हो जाता है। कोर्ट ने कहा कि अगर एक बच्चे को गोद के लिए दे दिया जाता है तो भी यह कानून लागू होगा।

    एक निर्वाचित सरपंच ने सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में आवेदन दिया था। सरपंच ने कहा था कि सरपंच बनने के बाद उसको तीसरा बच्चा पैदा हुआ था। उड़ीसा ग्राम पंचायत अधिनियम, 1965 की धारा 25 (1) (v) के तहत वह इस पद पर बने रहें के अयोग्य हो जाता है। उसने इस प्रावधान को उच्च न्यायालय में चुनौती दी पर वहाँ कोई राहत नहीं मिलने के बाद उसने सर्वोच्च न्यायालय में आवेदन दिया।

    मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की पीठ के समक्ष मीनासिंह माझी की एकमात्र दलील यह थी कि उनके पहले बच्चे को किसी को गोद लेने के लिए दे दिया में गया था, और यह बच्चा अब उनके परिवार का सदस्य नहीं है।

    हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम, 1956 की धारा 12 के प्रावधानों का हवाला देते हुए माझी ने तर्क दिया कि हालांकि वह तीन बच्चों के जैविक पिता थे, पर असल में अब वह दो बच्चों के ही पिता हैं और इस प्रकार उड़ीसा अधिनियम के प्रावधानों का कोई उल्लंघन नहीं किया है कि उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाए।

    सुप्रीम कोर्ट ने माझी की दलील को खारिज करते हुए कहा कि उड़ीसा अधिनियम का विधायी इरादा उन लोगों के बच्चों की संख्या को प्रतिबंधित करना है जो ग्राम पंचायत का निर्वाचित सदस्य बनना चाहते हैं।

    अदालत ने यह भी कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम की धारा 2 (2) अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों पर लागू नहीं होता है जिसके तहत सरपंच आता है।

    "इसलिए, हम इस आधार पर आगे बढ़ेंगे कि 1956 अधिनियम के प्रावधान अपीलकर्ता के मामले में लागू नहीं होते हैं...”, कोर्ट ने कहा। इस तरह पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को बहाल रखा।


     
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