सुप्रीम कोर्ट ने दूरस्थ माध्यम से इंजीनीयरिंग की डिग्री को वैध करने के आग्रह को ठुकराया [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

25 Sep 2018 6:02 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने दूरस्थ माध्यम से इंजीनीयरिंग की डिग्री को वैध करने के आग्रह को ठुकराया [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन सात याचिकाकार्ताओं को कोई राहत देने से मना कर दिया जिन्होंने 2004 और 2005 में खुला दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम के तहत इंजीनियरिंग के डिग्री कोर्स में दाखिला लिया था। यह कोर्स एक डीम्ड विश्वविद्यालय का था और इसने कोर्ट से अपने डिग्री कोर्ट को वैध करार दिये जाने और एआईसीटीटी के अनुमोदन की जरूरत नहीं होने और उनकी डिग्री को देश के किसी अन्य परंपरागत/एआईसीटीई द्वारा अनुमोदनप्राप्त संस्थान के समतुल्य माने जाने का आग्रह किया था।

     न्यायमूर्ति एएम सप्रे और यूयू ललित ने कहा कि उड़ीसा लिफ्ट इरीगेशन कार्पोरेशन लिमिटेड बनाम रबी शंकर पात्रो एवं अन्यमामले में यह कहा गया कि एआईसीटीई के विनियमन उन डीम्ड विश्वविद्यालयों पर लागू होता है जो एआईसीटीई के अनुमोदन के बिना तकनीकी शिक्षा में किसी भी तरह का कोर्स शुरू नहीं करते हैं।

    कोर्ट ने इस विश्वविद्यालय को मिली यूजीसी की अनुमति को भी निरस्त कर दिया जिसके बाद इस डीम्ड विश्वविद्यालय द्वारा दी गई इंजीनियरिंग की सभी डिग्री निलंबित हो गई।

     जहां तक वर्तमान याचिका की बात है जिसमें याचिकाकार्ताओं ने वर्ष 2004 और 2005 में इस विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था, पीठ ने कहा कि यह उड़ीसा लिफ्ट इरीगेशन द्वारा जारी निर्देश के तहत आते हैं जिसमें कहा गया है कि “...जहां तक उन छात्रों की बात है जिनका प्रवेश 2001-2005 सत्र के बाद लिया गया है, संबन्धित डीम्ड विश्वविद्यालय द्वारा दूरस्थ शिक्षा माध्यम से दी गई उनकी इंजीनियरिंग की डिग्री को वापस लिया और रद्द माना जाए...”

    इस मामले में, याचिकाकर्ताओं को एक ऐसे कोर्ट में प्रवेश दिया गया था जिसमें जनार्दन राय नगर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड विश्वविद्यालय) द्वारा खुला दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम के तहत इंजीनियरिंग की डिग्री देने की बात थी।

     पीठ ने याचिकाकर्ताओं की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सोली सोराबजी की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं का मामला जवाहरलाल नेहरू तकनीकी विश्वविद्यालय बनाम चेयरमैन एंड मैनिजिंग डाइरेक्टर, मामले में आए फैसले के तहत आता है जिसमें कहा गया कि चूंकि आवेदनकर्ता विश्वविद्यालय की स्थापना राज्य के कानून के तहत हुई है सो इसको एआईसीटीई के अनुमोदन की जरूरत नहीं है।


     
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