सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रभावशाली उद्योगपति को हाईकोर्ट से मिली जमानत को रद्द किया; कहा, जमानत की अर्जी पर गौर करने के दौरान कोर्ट को मामले की गहराई में जाने की जरूरत नहीं है [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

19 Sep 2018 10:47 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रभावशाली उद्योगपति को हाईकोर्ट से मिली जमानत को रद्द किया; कहा, जमानत की अर्जी पर गौर करने के दौरान कोर्ट को मामले की गहराई में जाने की जरूरत नहीं है [निर्णय पढ़ें]

    कानून की प्रक्रिया को धता बताने के विगत के आचारण और अपने समुदाय में उसके प्रभाव को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रभावशाली उद्योगपति का जमानत रद्द कर दिया। हत्या का आरोप झेल रहे इस उद्योगपति को हाईकोर्ट ने जमानत दी थी।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौदर ने उड़ीसा राज्य बनाम महिमानन्द मिश्रा मामले में कहा कि कोर्ट को जमानत की अर्जी पर सुनवाई के दौरान अवश्य ही मामले की गहराई में जाने की जरूरत नहीं है और सिर्फ यह देखने की जरूरत है कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है कि नहीं।

    महिमानन्द मिश्रा पर अपने प्रतिद्वंद्वी कंपनी के ब्रांच मैनेजर की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोप है। जांच के दौरान पता चला की वह चेन्नई, दिल्ली और नेपाल के रास्ते थाईलैंड चला गया और उसके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करने के बाद ही उसे गिरफ्तार किया जा सका। नोटिस जारी करने के बाद उसके थाईलैंड में होने का पता चला जहाँ से उसका प्रत्यर्पण कराया गया जिसके बाद उसे गिरफ्तार किया गया। इसके बावजूद कि ये सारे तथ्य हाईकोर्ट के समक्ष रखे गए, उसने उसको जमानत दे दी।

    जमानत के आदेश में हाईकोर्ट ने कहा कि अपने जान को खतरा होने के बारे में पुलिस के नाम मृतक के ऐसे पत्र को जिसमें कोई तारीख दर्ज नहीं है, मरने से तुरंत पहले का बयान नहीं माना जा सकता; जो दस्तावेज़ पेश किए गए हैं उसमें प्रतिवादी की ओर से किसी भी तरह के मंतव्य का पता नहीं चलता है कि उसने संबंधित हत्या को अंजाम देने के लिए षड्यंत्र रचा और यह भी कि एक सह-अभियुक्त के कबूलनामे का प्रयोग उसके खिलाफ नहीं किया जा सकता है।

    राज्य की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को इतनी गहराई में जाकर रेकॉर्ड की जांच करने की जरूरत नहीं थी क्योंकि यह आरोपी को दंड मिलने की संभावना की जांच करने जैसा हो जाता है।

    कोर्ट ने अनिल कुमार यादव बनाम दिल्ली राज्य (एनसीटी) के मामले का हवाला देते हुए कहा, “यह पूर्णतः स्थापित है कि जमानत की अर्जी पर गौर करने के समय कोर्ट को आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है कि नहीं, उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों की गंभीरता, आरोपी की स्थिति और उसके रसूख, आरोपी का न्याय से भागने की आशंका और दुबारा इसी तरह का अपराध करने की आशंका जैसी कुछ बातों का अवश्य ही खयाल रखना चाहिए। यह भी पूर्णतया स्थापित है कि कोर्ट को जमानत की अर्जी पर गौर करते हुए मामले की गहराई में जाने की जरूरत नहीं है। सिर्फ यह निर्धारित करना है कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है कि नहीं।

    कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपी पैसे और ताकत के हिसाब से अपने इलाके का एक प्रभावशाली व्यक्ति है। “इस बात की  मुनासिब आशंका है कि वह चल रही जांच को प्रतिकूलतः प्रभावित करने की कोशिश करे या उसके साथ छेड़छाड़ करे या मामले की सुनवाई के दौरान या उससे पहले गवाहों को धमकाने का प्रयास करे। हाईकोर्ट ने कहा है कि आरोपी के गायब हो जाने की आशंका नहीं है क्योंकि वह एक स्थानीय व्यापारी है। पर हाईकोर्ट ने न केवल कानून की प्रक्रिया को धता बताने के विगत के उसके प्रयास को नजरंदाज किया है बल्कि व्यापारिक समुदाय में उसका जिस तरह का रसूख है उसके परिणामों को भी नजरंदाज किया है,” पीठ ने उद्योगपति को हिरासत में लिए जाने का आदेश देते हुए यह कहा।


     
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