मॉब लिंचिंग: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, नए कानून पर विचार करने के लिए GoM गठित

LiveLaw News Network

7 Sep 2018 1:40 PM GMT

  • मॉब लिंचिंग: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, नए कानून पर विचार करने के लिए GoM गठित

    केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मॉब लिंचिंग को लेकर नए कानून बनाने पर विचार करने के लिए ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ( GoM) का गठन किया गया है और पांच सितंबर को इसकी पहली बैठक हुई है। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ को बताया कि इसमें राज्यों की भी राय लेनी है। वहीं 17 जुलाई को जारी गाइडलाइन पर नौ राज्यों व एक केंद्र शासित प्रदेश द्वारा अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने पर नाराज कोर्ट ने कहा है कि अगर शेष राज्यों ने रिपोर्ट दाखिल नहीं की तो गृह सचिव को तलब कर लिया जाएगा।

    वहीं राजस्थान के अलवर में गोरक्षा के नाम पर रकबर की भीड़ द्वारा हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि लापरवाह पुलिसवालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है।

    राज्य सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है और ट्रायल कोर्ट में शुक्रवार को ही चार्जशीट दाखिल की जानी है। एक आरोपी फरार है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि मामले में लापरवाही करने वाले कुछ पुलिसकर्मियों को ट्रांसफर किया गया है जबकि एक को निलंबित किया गया है।

    याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पुलिसकर्मियों के खिलाफ उकसाने का मामला बनना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 24 सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया है।

    इससे पहले गोरक्षा के नाम पर राजस्थान के अलवर जिले में रकबर नामक शख्स की पीट-पीटकर हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के प्रमुख सचिव ( गृह )को नोटिस जारी कर पूछा था कि मॉब लिंचिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर अमल करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। सुनवाई के दौरान  याचिकाकर्ता  की ओर से से पेश वरिष्ठ वकील

    इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश जारी करने के कुछ दिन बाद ही ये घटना हुई। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को राज्य के प्रमुख सचिव को कोर्ट में तलब करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने कहा कि प्रमुख सचिव हलफनामा दाखिल कर इस संबंध में जवाब दाखिल करें।

    रकबर की हत्या की घटना के बाद इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की याचिका दाखिल की गई है।

    17 जुलाई को गोरक्षकों और भीड़ द्वारा हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कठोर टिप्पणियां करते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को दिशा निर्देश जारी किए थे। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भीड़तंत्र को किसी भी सूरत में क़बूल नहीं किया जा सकता। किसी भी स्वयंभू समाज रक्षक को क़ानून हाथ में लेने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। ऐसे मामलों से सख़्ती से निबटा जाए। केंद्र सरकार इसके लिए क़ानून लेकर आए जिसमें सख्त सजा का प्रावधान हो और राज्य सरकारें देश का धर्मनिरपेक्ष और क़ानूनी ढांचा कायम रखें।

    गोरक्षा या बच्चा चोरी के नाम पर लगातार हो रही घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। पीठ ने निरोधक, उपचारात्मक और दंडात्मक दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा कि राज्य सरकार हर जिले में एसपी स्तर के अधिकारी को नोडल अफसर नियुक्त करें। जो स्पेशल टास्क फोर्स बनाए. DSP स्तर का अफसर मॉब हिंसा और लिंचिंग को रोकने में सहयोग करेगा। एक स्पेशल टास्क फोर्स होगी जो खुफिया सूचना इकठा करेगी जो इस तरह की वारदात अंजाम देना चाहते हैं या फेक न्यूज, या हेट स्पीच दे रहे हैं। राज्य सरकार ऐसे इलाकों की पहचान करें जहां ऐसी घटनाएं हुई हों और पांच साल के आंकडे इकट्ठा करे। केंद्र और राज्य आपस मे समन्वय रखे। सरकार  भीड़ द्वारा हिंसा के खिलाफ प्रचार प्रसार करें। ऐसे मामलों में 153 A या अन्य धाराओं में  तुरंत केस दर्ज हो और वक्त पर चार्जशीट दाखिल हो और नोडल अफसर इसकी निगरानी करे। राज्य सरकार CrPC की धारा 357 के तहत भीड़ हिंसा पीड़ित मुआवजा योजना बनाएं और चोट के मुताबिक मुआवजा राशि तय करे। ये मामले फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चले और संबंधित धारा में ट्रायल कोर्ट अधिकतम सजा दे। लापरवाही बरतने पर पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हो। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से चार हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था।

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