भीमा कोरेगांव : महाराष्ट्र पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस से नाराज सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार कार्यकर्ता 12 सितंबर तक हाउस अरेस्ट रहेंगे

LiveLaw News Network

6 Sep 2018 12:52 PM GMT

  • भीमा कोरेगांव : महाराष्ट्र पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस से नाराज सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार कार्यकर्ता 12 सितंबर तक हाउस अरेस्ट रहेंगे

    भीमा- कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नक्सल से जुडे होने के आरोप में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को 12 सितंबर तक हाउस अरेस्ट ही रखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई उसी दिन करेगा।

    गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस पर सवाल उठाए और नाराजगी जताई। पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “ मैंने खुद वो प्रेस कांफ्रेंस देखी, पुलिस ऐसा कह सकती है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। ये मामला कोर्ट में लंबित है तो पुलिस ऐसा क्यों कह रही है ?

    वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ सबूत हैं और उन्हें हाउस अरेस्ट नहीं रखा जाना चाहिए। वो जांच को प्रभावित कर सकते हैं। वहीं  पुलिस के सामने शिकायत करने वाले की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि पुलिस जांच आगे बढ़ने की इजाजत दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 12 सितंबर तक टाल दी।

    इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि ये याचिका सुनवाई योग्य नही है और याचिकाकर्ताओं का आरोपियों से कोई लेना-देना नहीं है।

    वकील निशांत कातनेश्वरकर के माध्यम से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि आरोपियों को मतभेद सोच या विचारों से असहमति की वजह से गिरफ्तार नहीं किया गया है बल्कि आपराधिक मामले की जांच और भरोसेमंद सबूतों के आधार पर कार्रवाई की गई है।

    महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि गिरफ्तार किए गए पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ता समाज मे अशांति फैलाने की योजना बना रहे थे।  इस बात के सबूत पुलिस को मिले हैं कि पांचों प्रतिबंधित माओवादी संगठन के सदस्य हैं। इनके पास से आपत्तिजनक सामग्री भी बरामद की गई है।

    पुलिस इन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है।साथ ही इनमें से कुछ का आपराधिक इतिहास भी रहा है।

    गौरतलब है कि 29 अगस्त को भीमा- कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नक्सल से जुडे होने के आरोप में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए उन्हें 6 सितंबर तक उनके घरों में ही हाउस अरेस्ट रखने के आदेश जारी किए थे।

     देर शाम चली सुनवाई में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा था।

    सुनवाई के दौरान उस वक्त सुप्रीम कोर्ट नाराज हुआ जब महाराष्ट्र सरकार के वकील ने कहा कि ये आरोपी नहीं हैं ये तीसरा पक्ष हैं। ये याचिका तो सुनवाई योग्य ही नहीं है। इस पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि ये दलील बकवास है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति की आवाज़ लोकतंत्र का प्रेशर वाल्व है। अगर आप इसे दबाएंगे तो प्रैशर कुकर फट जाएगा।

    वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ सबूत हैं उनके माओवादियों से लिंक पाए गए हैं।

    इसके अलावा याचिकाकर्ता आरोपी नहीं हैं। वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कल देशभर में गिरफ्तारियां हुईं। FIR मराठी में थी। 2017 की मीटिंग में ये लोग मौजूद नहीं थे। FIR में नाम नहीं था। इनकी गिरफ्तारी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।याचिकाकर्ता की तरफ से कहा कि दो आरोपियों की तरफ से हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल की गई है।ये याचिका रोमिला थापर, देवकी जैन, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे और माया दारूवाला की ओर से दाखिल की गई है।

    दरअसल  हैदराबाद में वामपंथी कार्यकर्ता और कवि वरवरा राव, मुंबई में कार्यकर्ता वेरनोन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा, छत्तीसगढ़ में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और दिल्ली में रहनेवाले गौतम नवलखा के घरों की तलाशी ली गई और उन्हें गिरफ्तार किया गया। गौतम के ट्रांजिट रिमांड पर दिल्ली हाईकोर्ट ने और सुधा भारद्वाज के ट्रांजिट रिमांड पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने रोक लगाई है।

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