MP/MLA के आपराधिक मामलों का आंकड़ा ना देने पर नाराज सुप्रीम कोर्ट ने कहा, केंद्र अधूरी तैयारी कर कोर्ट आया

LiveLaw News Network

30 Aug 2018 10:26 AM GMT

  • MP/MLA के आपराधिक मामलों का आंकड़ा ना देने पर नाराज सुप्रीम कोर्ट ने कहा, केंद्र अधूरी तैयारी कर कोर्ट आया

    सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों/ विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों को एक साल में निपटाने के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के मुद्दे पर केंद्र सरकार के हलफनामे पर असंतोष जाहिर करते हुए कहा कि केंद्र सरकार कोर्ट में अधूरी तैयारी के साथ आई है।

    जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत ने 1 नवंबर 2017 को आपराधिक मामलों को ब्यौरा मांगा था जो अभी तक नहीं दिया गया है। केंद्र सरकार ने जो दाखिल किया है वो कागज का टुकड़ा भर है। पीठ को बताया गया कि अभी कई हाईकोर्ट ने ब्यौरा नहीं दिया है। सरकार पूरे आंकड़े इकट्ठा कर रही है। इस पर कोर्ट ने कहा कि सरकार ने हलफनामे में कोई जानकारी नहीं दी है। इसके साथ ही 5 सितंबर को अगली सुनवाई तय की गई है।

    पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि कितने MP/MLA के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले लंबित है और उन मामलों की स्थिति क्या है? फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का क्या हुआ? लेकिन केंद्र सरकार ने कोर्ट में आपराधिक मामलों से संबंधित जानकारी नहीं दी।

    केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि कि 11 राज्यों में 12 स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का नोटिफिकेशन जारी हो चुका है। इनमें से दो दिल्ली में हैं। इसके लिए आवंटित 7.80 करोड़ रुपये राज्यों को दिए जा रहे हैं

    दरअसल वकील और दिल्ली भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए देश में सांसदों व विधायकों के आपराधिक मामलों के ट्रायल के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के आदेश दिए थे।

    याचिका में  दोषी राजनेताओं पर आजीवन चुनाव लडने पर पाबंदी  की मांग की  गई है।

    इसके लिए उन्होंने जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए  चुनौती दी है, जो कि दोषी राजनेताओं को जेल की अवधि के बाद छह साल की अवधि के लिए चुनाव लडने से अयोग्य करार देता है।

    इस मामले की सुनवाई के दौरान  सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल 1 नवंबर को फास्ट ट्रैक न्यायालयों की तर्ज पर, नेताओं के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों के निपटारे के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना के लिए केंद्र को निर्देश दिया था।

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