ताजमहल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अगर उद्योगों की सूची गलत तो विजन डाक्यूमेंट भी गलत

LiveLaw News Network

28 Aug 2018 2:26 PM GMT

  • ताजमहल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अगर उद्योगों की सूची गलत तो विजन डाक्यूमेंट भी गलत

    सुप्रीम कोर्ट ने एेतिहासिक ताजमहल के सरंक्षण को लेकर उत्तर प्रदेश द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ पैनल को ताज पर एक महीने के भीतर फाइनल विजन डाक्यूमेंट देने का निर्देश दिया है।

    जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने ताज क्षेत्र में  वन कवर को बढ़ाने जैसे सभी सुझावों को शामिल करने वाले एक विजन दस्तावेज तैयार करने के लिए विशेषज्ञ पैनल से कहा है।

    वहीं मीनाक्षी धोते, विशेषज्ञ सदस्य जिन्होंने ड्राफ्ट विजन दस्तावेज तैयार किया, ने पीठ  को बताया कि ताज ट्रैपेज़ियम जोन में उद्योगों की सूची गलत है। उन्होंने कहा कि यूपी सरकार ने हमें उद्योगों की सूची दी और बाद में राज्य ने कहा कि यह एक गलत सूची है।

    इस पर पीठ ने कहा, "यदि आंकड़ा गलत है तो विजन डाक्यूमेंट गलत है।”

    इससे पहले यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया कि टीटीजेड क्षेत्र में 1167 उद्योग हैं और ये विशेषज्ञ पैनल सदस्य द्वारा विवादित किया गया।

    न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने यूपी को बताया, "1 996 में ताज पर फैसले में अदालत ने टीटीजेड में 511 उद्योगों की पहचान की। अब यह 1167 तक बढ़ गया है और यह भी विवादित है कि ज़ोन में कितने रेस्तरां हैं? याचिकाकर्ता एमसी मेहता से सुझाव भी लिया जाए।”

    दिल्ली स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में पर्यावरण अध्ययन की प्रोफेसर मीनाक्षी धोते उस पैनल के सदस्यों में से एक है जो ताज को संरक्षित करने के लिए विजन डाक्यूमेंट  तैयार कर रहा है।

    उन्होंने पीठ को बताया कि वन कवर 6% है और इसमें वृद्धि नहीं हुई है, घनत्व भी कम हो गया है और यह एक प्रमुख चिंता है।

    केंद्र ने पीठ को सूचित किया कि ताज को विरासत शहर बनाने का प्रस्ताव राज्य से आना है और यूपी को तदनुसार सूचित किया गया है। पीठ ने विशेषज्ञ सदस्य से कहा, "हमने समस्या की पहचान की है और समाधान अभी तक लागू नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट एक महीने बाद मामले की सुनवाई करेगा।

     इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने ताजमहल के संरक्षण के संबंध में विभिन्न दिशानिर्देशों का पालन ना करने पर यूपी सरकार, एएसआई और केंद्र सरकार को जोरदार फटकार लगाई थी और कहा था कि प्रतिष्ठित हाथीदांत-सफेद संगमरमर के मकबरे का रखरखाव एक मजाक बन गया है।

    न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने यह भी कहा था कि यदि यूनेस्को ताज को  विश्व धरोहर टैग वापस ले लेता है तो यह बड़ी शर्मिंदंगी होगी।

    अदालत खास तौर पर इसलिए गुस्से में थी क्योंकि अभी भी ताज ट्रैपेज़ियम जोन (टीटीजेड)में कई आदेशों के बावजूद अभी भी  1,167 प्रदूषणकारी उद्योग चल रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करने की जिम्मेदारी कोई विभाग नहीं ले रहा है।

    "हमें आशा है कि ऐसा नहीं होगा लेकिन अगर वर्तमान स्थिति को देखते हुए अगर यूनेस्को ताज के विश्व धरोहर टैग को वापस ले लेता है तो क्या होगा ? यह कितनी बड़ी शर्मिंदगी होगी। कौन ज़िम्मेदार है?

     अदालत बहुत गुस्से में थी क्योंकि  उपस्थित वकीलों की एक बड़ी संख्या जिसमें केंद्र के शीर्ष वकील अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल भी शामिल थे, के बावजूद कोई ठोस जवाब नहीं मिला कि ताजमहल के रखरखाव और ताज ट्रैपेज़ियम जोन (टीटीजेड) से संबंधित अदालत के आदेशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कौन प्रभारी है।

    न्यायमूर्ति लोकुर इसलिए भी गुस्से में थे क्योंकि यूपी सरकार ने ताज को अपनी प्राचीन महिमा में बहाल करने के लिए विजन डाक्यूमेंट के मसौदे पर काम करने के दौरान एएसआई से परामर्श नहीं लिया और जस्टिस लोकुर ने  ताजमहल और ताज ट्रैपेज़ियम जोन के हर पहलू पर अधिकारियों द्वारा एक- दूसरे पर ज़िम्मेदारी थोपने पर फटकार लगाई।

    न्यायमूर्ति लोकुर ने संकेत दिया कि वो निजी पार्टियों और संरक्षणविदों को ताजमहल के रखरखाव को आउटसोर्स भी कर सकते हैं।पीठ ने यूपी सरकार से विजन डाक्यूमेंट की  प्रतियां INTAC, आगा खान फाउंडेशन, ICOMOS  को देने के लिए कहा और उनकी  टिप्पणियां आमंत्रित कीं।

    यूपी सरकार ने अपने विजन दस्तावेज में कहा था कि उनकी प्रत्येक परियोजना में दो से तीन साल लग सकते हैं।

     यूपी सरकार ने 24 जुलाई को एक विजन दस्तावेज प्रस्तुत किया था और सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि मुगलकालीन स्मारक के पूरे परिसर को नो-प्लास्टिक क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए और इस क्षेत्र में सभी प्रदूषणकारी उद्योग बंद किए जाने चाहिएं। यूपी सरकार ने 17 वीं शताब्दी के स्मारक के  संरक्षण पर एक विजन दस्तावेज की पहली मसौदा रिपोर्ट दायर की थी। मसौदा विजन दस्तावेज में यह भी कहा गया कि यमुना नदी के किनारे सड़कों की योजना बनाई जानी चाहिए ताकि यातायात सीमित किया जा सके और लोगों के पैदल चलने को प्रोत्साहित किया जा सके।

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