कुष्ठ रोग : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया सुझाव, एक ही व्यापक कानून बनाने पर हो विचार

LiveLaw News Network

20 Aug 2018 3:18 PM GMT

  • कुष्ठ रोग : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया सुझाव, एक ही व्यापक कानून बनाने पर हो विचार

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल को कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों और लाभ से निपटने के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में एक ही कानून लागू करने का सुझाव दिया।

    चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने एजी को कहा कि विधायिका को ऐसा कानून को पारित करना चाहिए और उसके खिलाफ चलने वाले सभी कानून, नियमों या विनियमों को निरस्त कर दिया जाना चाहिए जो इस बीमारी के लिए सामाजिक कलंक लगाते हैं।

    अदालत कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास और चिकित्सा उपचार से निपटने के लिए  एनजीओ-विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा दायर पीआईएल सुन रही है। इसमें कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों को खत्म करने की मांग की गई है। यह कहा गया है कि हिंदू विवाह अधिनियम समेत कई कानून तलाक लेने के लिए एक पीड़ित को मौका प्रदान करते हैं यदि कोई भी पति/ पत्नी कुष्ठ रोग से पीड़ित है। दोनों केंद्रीय और राज्य सरकार भी सार्वजनिक रोजगार  से कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों को रोकते हैं।

    एजी ने बेंच को बताया कि केंद्र एक व्यापक कानून के लिए सुझाव पर विचार करेगा जबकि यह स्वीकार करते हुए कि भारत में दुनिया भर के 52 प्रतिशत से अधिक कुष्ठ रोगी हैं और प्रति वर्ष 1.24 लाख से अधिक लोगों को सूची में जोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस बीमारी का प्रकटीकरण कम प्रतिरक्षा, गरीबी और रहने की खराब स्थितियों के कारण है जो जागरूकता की कमी के कारण फैल गई है। हालांकि पीठ ने कहा कि जब तक प्रस्तावित कानून लंबित है, अदालत केंद्र और राज्यों को दिशानिर्देशों के रूप उचित आदेश जारी कर सकती है।

    अदालत ने एजी को उपयुक्त सुझावों के साथ आने के लिए दो सप्ताह का समय दिया ताकि वो अधिकारियों को उचित दिशानिर्देश दे सके।

    अदालत को सूचित किया गया कि बहु-औषधि थेरेपी के तहत पहले इंजेक्शन के प्रशासन पर कुष्ठ रोग संक्रामक हो जाता है और जिन लोगों ने अपने अंग खो दिए हैं उन्हें प्लास्टिक सर्जरी और कृत्रिम अंगों के माध्यम से जीवन और समाज के मुख्यधारा में पुनर्वास किया जा सकता है। कुष्ठ रोगियों की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए एजी ने कहा  कि कुछ मामलों में कोई विकृति नहीं है। कोई भी यह नहीं बता सकता कि व्यक्ति कुष्ठ रोग से पीड़ित है ... हालांकि ऐसे लोग भी हैं जिनकी  नाक नहीं है सिर्फ  छेद हैं,किसी की उंगलियां नहीं हैं बल्कि केवल ठूठ हैं।

    उनसे भेदभाव को रोका जाना है ... तमिलनाडु में 15-20 कॉलोनियां हैं जो अलग-थलग हैं। इस बहिष्कार को दूर किया जाना चाहिए और इन लोगों को मुख्यधारा में वापस लाया जाना है ... सर्जरी ही कुछ मामलों में पुनर्वास का एकमात्र माध्यम है। सीजेआई ने कहा , "यदि कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति मुख्यधारा में आते हैं तो राज्य का संरक्षण होना चाहिए। यह सामूहिक समाज का कर्तव्य है। इस बीमारी से पीड़ित लोगों के बीच एक प्रवृत्ति है जिसके परिणामस्वरूप रोग आगे बढ़ता है जिससे गंभीर विकृतियां होती हैं। उन्हें इसे छिपाना नहीं चाहिए। इस मानसिकता को बदलना है। "बेंच ने इस मामले को 10 सितंबर को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

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