इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के इंटीग्रल विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसरों की पदावनति को खारिज किया; कहा, वीसी ने सभी तरह के नियमों का उल्लंघन किया [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
24 July 2018 7:31 AM GMT
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के इंटीग्रल विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसरों को पदावनति दिए जाने के निर्णय को निरस्त कर दिया और कहा कि वीसी ने इस मामले में सभी तरह के नियमों का उल्लंघन किया।
न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति रंग नाथ पाण्डेय की पीठ ने विश्वविद्यालय के कुलपति के 7 जून के आदेश को निरस्त कर दिया जिसके द्वारा विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसरों की पदावनति की गई थी। इन्हें एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद से जूनियर एसोसिएट प्रोफ़ेसर बना दिया गया था।
प्रोफेसरों ने हाईकोर्ट में अपील की जहां उनके वकील गौरव मेहरोत्रा ने कहा कि सेवा नियम 2016 के तहत किसी के पद को नीचे कर देना एक बहुत बड़ी सजा है और इस तरह की सजा नियम के तहत सारी प्रक्रियाओं का पालन किये बिना नहीं दी जा सकती।
मेहरोत्रा ने कहा कि याचिकाकर्ता वास्तुशिल्प के प्रोफ़ेसर हैं और उनकी पदावनति इसलिए की गई क्योंकि आधिकारिक रूप से कहीं और व्यस्त होने के कारण वे लोग एक साक्षात्कार में मौजूद नहीं रह पाए।
“...इस आदेश पर गौर करने पर यह साफ़ है कि कुलपति द्वारा जारी आदेश में स्वाभाविक न्याय के सिद्धांतों को ताक पर रखा गया और याचिकाकर्ताओं को दण्डित करने से पहले उनका पक्ष नहीं सुना गया,” पीठ ने कहा।
पीठ ने विश्वविद्यालय के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं ने जो अपराध किया है वह बहुत ही गंभीर है और अदालत को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
“इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि इस आदेश को जारी करने के पहले विश्वविद्यालय प्राधिकरण द्वारा किसी भी तरह की कोई जांच की गई ताकि प्रोफेसरों के दुर्व्यवहार का पता चल सके। 2016 के नियम भी किसी अधिनियम के तहत बनाए गए हैं और इसलिए ये नियम वैधानिक प्रकृति के हैं। अगर ये नियम उप-आदेशात्मक हैं तो भी ये उतने ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इनको भी राज्य की विधायिका के सहमति से पास किया गया है...इन वैधानिक नियमों का उल्लंघन विश्वविद्यालय प्राधिकरण के किसी भी कार्य को सही नहीं ठहरा सकता है।
"इंटीग्रल यूनिवर्सिटी की स्थापना राज्य की विधायिका की सहमति से हुआ है और इसके नियमों का पालन क़ानूनी कर्तव्य है...ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय ने आदेश पास करते हुए नियम, 2016 का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया और उन्होंने विधायिका के प्रति थोड़ा भी आदर नहीं दिखाया है।