महिला और उसके बलात्कारी के बीच लंबी अवधि से यौन संबंध के कारण क्या ‘सहमतिपूर्ण संबंध’ को वैध शादी माना जा सकता है?, सुप्रीम कोर्ट करेगा इसकी जांच [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

3 July 2018 3:14 PM GMT

  • महिला और उसके बलात्कारी के बीच लंबी अवधि से यौन संबंध के कारण क्या ‘सहमतिपूर्ण संबंध’ को वैध शादी माना जा सकता है?, सुप्रीम कोर्ट करेगा इसकी जांच [आर्डर पढ़े]

    बलात्कार के कुछ मामलों में आरोपी और महिला के बीच लंबे समय से शारीरिक संबंध होने और यह सब सहमति से होने के कारण आरोपी को इस अपराध का दोषी नहीं माना जा सकता। ऐसी स्थिति में  सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में इस बात पर गौर करना चाहती है कि क्या लम्बे सहवास के कारण क्या उसको दीवानी उत्तरदायित्व से बांधा जा सकता है या नहीं।

    न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोएल और न्यायमूर्ति एस अब्द्दुल नजीर की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर गौर करते हुए कहा ‘वैध विवाह’ की इस तरह की व्याख्या पर विचार करना पड़ सकता है ताकि किसी लड़की का शोषण रोका जा सके और आपराधिक मामला नहीं ठहरने के कारण ऐसा न हो कि उसको न्याय नहीं मिल सके।

    हाईकोर्ट ने इस मामले में अपने खिलाफ आपराधिक मामला समाप्त करने के आरोपी की याचिका खारिज कर दी थी। उसकी दलील यह थी कि लड़की यह भलीभांति जानती थी कि इस यौन संबंध के परिणाम क्या होंगें और आरोपी का शादी करने का झांसा देकर उससे यौन संबंध बनाने का सवाल ही नहीं उठता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के पिता द्वारा दायर आपराधिक मामले में उसने कहा था कि आरोपी और यह लड़की छह साल तक एक साथ रहे। कोर्ट ने एक जुड़े हुए मामले में दायर विशेष अनुमति याचिका के साथ इस मामले को जोड़कर इस मामले में आगे की कार्यवाही अभी स्थगित कर दी है। यह मामला भी कर्नाटक हाईकोर्ट से ही जुड़ा है।

    पीठ ने कहा, “ सुनवाई के दौरान इस प्रश्न पर गौर करने का निर्णय लिया गया है कि लंबे समय तक सहवास के कारण, इसके बावजूद कि ऐसा सहमति से हुआ, अगर संबंध आपसी सहमति से बने और याचिकाकर्ता को इस अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, इस संबंध को वैध शादी का दर्जा देकर याचिकाकर्ता को दीवानी दायित्व से बांधा जा सकता है। इस व्याख्या पर गौर करना होगा ताकि लड़की का आगे और शोषण नहीं हो सके और अगर इसमें कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है तो लड़की को न्याय से वंचित नहीं होना पड़े। लगभग इसी तरह का मामला विद्याधरी बनाम सुखराना बाई, पयला मुत्यालम्मा उर्फ सत्यवती बनाम पयला सूरी देमुदु आदि का भी है।

    इस मामले में वरिष्ठ एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी को अमिकस क्यूरी बनाया गया है और अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल की मदद भी मांगी गई है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 सितंबर को होगी।

     

    Next Story